- इतिश्री सिंह राठौर (श्री)
अब तुम मान जाओ कि तुम मर चुके हो मोहनदास
वरना बड़े-बड़ों की लाख कोशिशों के बावजूद
आज किसी गली से इकलौता पागल न गुजरता राम धुन गाते हुए
गांधीवाद को यूं न घसीटा जाता सरेआम
आक्रोश को अहिंसा का मुखौटा पहनाते हुए
न बेची जाती दो टके में ईमान, भरे बाजार में
तुम्हारे आदर्शों का चादर चढ़ाते हुए
वरना दो अक्टूबर को ही केवल याद न किया जाता
तुम्हें दिलों में जिंदा रखने की झूठी कसमें खाते हुए
यूं रोज हजार बार तुम्हें दफनाया जाता है
तुम्हें अभिदान के तख्ते पर चढ़ाते हुए इसीलिए
अब मान जाओ कि तुम मर चुके हो मोहनदास
और यह वादा है हमारा कि हम चंद लम्हों में ही
तुम्हारे वजूद को खत्म कर देंगे
तुम्हारी जय-जयकार करते हुए
अब तुम मान भी जाओ कि तुम मर चुके हो मोहनदास।