शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. अंतरराष्ट्रीय
  4. Pakistan Temples
Written By

पाक मंदिर जिन्हें मदरसा बना दिया...

पाक मंदिर जिन्हें मदरसा बना दिया... - Pakistan Temples
पाकिस्तान में कई ऐसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिर ऐसे हैं जिन्हें मुस्लिम कट्‍टरपंथियों ने मदरसों में बदल दिया है। अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस होने के बाद कट्‍टरपंथी छात्रों ने भीड़ को भड़का दिया जिसने उन इमारतों को तोड़फोड़ दिया गया जो कि किसी समय हिंदुओं और अन्य समुदायों की आस्था का केन्द्र थे।
 
इस लेख के लेखक हारून खालिद का कहना है कि हम मंदिर के दरवाजे पर खड़े थे और इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं थे कि क्या हमें अंदर जाने दिया जाएगा। दरवाजे पर खड़े होकर हम केवल यही सोच रहे थे कि अंदर से इमारत कितनी खूबसूरत होगी, लेकिन मुश्किल यह थी ‍कि यह इमारत खाली नहीं थी।
यह मंदिर खाली नहीं था वरन एक मदरसे में बदल चुका था। इस पर किसी एक परिवार ने कब्जा नहीं किया था जैसा कि ऐसे बहुत सारे मामलों में हो चुका है। अगर इस पर किसी एक परिवार का कब्जा हो चुका होता तो हम उनसे अनुरोध कर सकते थे कि वे हमें इमारत को अंदर से देख लेने दें।  
 
लेकिन, अब इस पर एक इस्लामी धार्मिक संगठन मिन्हाज उल कुरान की महिला शाखा का कब्जा था। गौरतलब है कि इस संगठन की स्थापना मौलाना और नेता ताहिर उल कादिरी ने की है। मैंने घंटी का बटन दबाया लेकिन सुनिश्चित नहीं था कि अंदर के लोगों का क्या जवाब होगा। दरवाजे पर एक लड़का आया और हमारी बात सुनकर अंदर चला गया।
 
थोड़ी देर बाद वह बाहर आया और बोला कि पुरुषों को अंदर नहीं जाने दिया जा सकता है लेकिन साथ आई महिलाएं अंदर जा सकती हैं। हमने विनती की लेकिन उत्तर अंतिम था। अंदर कुरान का पाठ चल रहा था। आंगन में केवल महिलाएं मौजूद थीं। मेरी दोस्त रिदा और पत्नी अनम उस मंदिर के अंदर चली गईं जो कि कभी एक मंदिर हुआ करता था।  
यहीं मिला था हीर-रांझा की कहानी को नया स्वरूप... पढ़ें अगले पेज पर...
 
 
 

हम लाहौर से 200 किमी दूर मल्का हंस के ऐतिहासिक शहर में थे और हम इस शहर में वारिस शाह की ऐतिहासिक मस्जिद देखने आए थे। वारिस शाह पंजाब के एक प्रसिद्ध लोक कवि थे जिन्होंने हीर-रांझा जैसी लोककथा को नया स्वरूप दिया था। समझा जाता है कि इस कथा को उन्होंने मलका हंस की मस्ज‍िद के तलघर में बैठकर लिखा था। वे इस मस्जिद में तब इमाम का काम करते थे।
 
यह मंदिर तब मस्जिद के सामने की सड़क के पार था। उस जमाने यानी की 18वीं सदी में एक मस्जिद और मंदिर की दीवारों का एक होना असामान्य बात नहीं थी। हालांकि आज यह एक दुर्लभ बात मानी जा सकती है। इस मंदिर और मस्जिद को लेकर बहुत सारी कहानियां हैं और इसी तरह वारिस शाह और उनकी‍ हिंदू प्रेमिका के बारे में भी जो कि तब नियमित तौर पर मंदिर आया करती थी। यह मंदिर हिंदू भक्तों के एक संप्रदाय छज्जू भगत के अनुयायियों का था जो कि 17वीं सदी के लाहौर के हिंदू संत थे।
  
तब इस गली में बहुत सारे मकान थे जो कि यहां रहने वाले हिंदू परिवारों के थे। मुझे सोचकर आश्चर्य होता है कि उन्हें 1947 में किन हालातों में अपने मकानों को छोड़ना पड़ा होगा। तब उन्होंने अस्थायी समय के लिए दरवाजों, खिड़कियों को बंद किया होगा क्योंकि उन्हें उम्मीद रही होगी कि वे एक दिन अपने घर में फिर से लौटेंगे। उन्होंने अपनी धन सम्पति को जमीन में दबाया होगा। लेकिन वे फिर कभी नहीं लौट सके लेकिन उन्होंने अपने परिजनों को अपने छोडे गए घरों और मंदिरों के बारे में बताया होगा और उनके जीवित रिश्तेदारों, परिजनों को उनके मंदिरों के बारे में कहानियां हल्की सी याद रही होंगी।
 
कुछ देर बाद रिदा और अनम वापस लौट आईं और वे बहुत खुश थीं। रिदा का कहना था कि 'यह एक सपने जैसा अनुभव था।' 'मंदिर के चारों ओर लकड़ी की मूर्तियां थीं जो कि संभवत: देवदूतों की रही होंगी। इन मूर्तियों के नीचे बुर्का पहने महिलाएं बैठी थीं और कुरान पढ़ रही थीं। दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां थीं जबकि ये महिलाएं ईश्वर के एक होने का पाठ पढ़ रही थीं। दीवारों पर बनी आकृतियों या मूर्तियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया था।' इस कारण से इन महिलाओं को एक हिंदू मंदिर में कुरान में किसी विरोधाभास का अनुभव नहीं हुआ। 
 
यहां कभी जैन मंदिर हुआ था, अब मदरसा है... पढ़ें अगले पेज पर...
 
 

मलका हंस के करीब दो सौ किलोमीटर दूर एक और प्राचीन शहर मुल्तान है जिस पर कभी भक्त प्रह्लाद का पिता हिरण्यकशिपु राज्य करता था। यहां भी हमें एक विचित्र समानता देखने को मिली। ऊंची-ऊंची दीवारों से घिरे इस शहर में हमें एक जैन मंदिर मिला।
 
हमारे मंदिर के मुख्य कक्ष तक पहुंचने से पहले बच्चों के कुरान के पढ़ने की आवाजें सुनीं। वे कुरान को याद कर रहे थे। हॉल के अंदर बहुत सारी चटाइयां लाइनों में बिछीं दिख रखी थीं जिनके सामने छोटी-छोटी मेजें लगी हुई थीं। इन पर छात्रों ने कुरान की प्रतियां रखी थीं और जब वे अपने पाठ को दोहरा रहे थे तो उनके शरीर आगे पीछे की ओर लयबद्ध तरीके से गतिशील हो रहे थे।
 
उनके सामने उनका अध्यापक बैठा हुआ था जो कि काली दाढ़ी वाला एक युवा आदमी था जिसके कंधे पर चौकोर डिजाइन वाला कपड़ा पड़ा था। एक बच्चा उसके कंधे की मालिश कर रहा था। जैसे ही हम अंदर आए बच्चों की आवाज एकाएक बंद हो गई। सभी की नजरें हम पर ठहर गईं। हमने कहा, 'अस्सलामवालेकुम' और सभी ने इस सुर से जवाब दिया, 'वालेकुमअस्लाम।' मैंने पूछा कि 'क्या हम आपके मंदिर को देख सकते हैं और इसकी तस्वीरें ले सकते हैं।' इस बार अध्यापक ने कहा, 'यह सब आपकी इच्छा पर‍ निर्भर करता है।' इसके बाद बच्चे फिर से कुरान को कंठस्थ करने लगे। 
 
मंदिर की छत (सीलिंग) लकड़ी से बनी हुई थी जिसे कांच के छोटे-छोटे टुकड़ों से सजाया गया था। दीवारों पर सुंदर ज्यामितीय आकार के भित्तिचित्र बने थे। कमरे की एक ओर भव्य दरवाजा था जो कि प्रमुख गर्भगृह की ओर जाता था। दरवाजे के पास ही  24 तीर्थंकरों की मूर्तियां थीं जिन्हें कि जैन ब्रह्मांड विज्ञान के ब्रह्मांड समय चक्र में जन्म लेने के लिए जाना जाता है। मैं मंदिर की सुंदरता में इतना डूबा था कि मैंने ध्यान ही नहीं दिया कि बच्चों का कुरान पाठ समाप्त हो गया था। सभी बच्चों और उनके शिक्षक ने संभवत: अपना सबक पूरा कर लिया था और वे परिसर को छोड़कर चले गए थे। 
 
कुछ समय बाद मेरे मित्र इकबाल कैसर और मैं एक दुकान पर मंदिर के बाहर के कंगूरों को देखते हुए पेप्सी पी रहे थे। तभी हमें दुकानदार ने बताया कि यह मंदिर भी पाकिस्तान के अन्य मंदिरों की तरह 1992 में मुस्लिम कट्‍टरपंथियों का शिकार बना था। हालांकि तब मंदिर के प्रशासन ने किसी तरह उपद्रवी भीड़ को दूर कर‍ दिया था लेकिन अब यह मंदिर नहीं वरन एक मदरसा है।
और यहां था मुल्तान के संरक्षक संत का मंदिर... पढ़ें अगले पेज पर...
 
 

मुल्तान के शहर से थोड़ा दूर बाहर मिट्टी की एक टेकरी पर भक्त प्रह्लाद का मंदिर था। उन्हें मुल्तान का संरक्षक संत माना जाता था और उनके मंदिर की एक दीवार एक मुस्लिम संत शाह रुक्न-ए-आलम के धर्मस्थल से जुड़ी हुई थी। पाकिस्तान के बनने के बाद भी यह मंदिर मदरसे में बदल गया है।
 
स्थानीय लोगों का कहना है कि जब बाबरी मस्जिद की घटना के बाद की प्रतिक्रिया में कट्‍टरपंथियों ने इमारत में प्रवेश किया और इसे गिराना शुरू किया तब भी यहां कक्षाएं लगी हुई थीं। लेकिन कट्‍टरपंथियों की कार्रवाई के बाद मंदिर को इतना अधिक नुकसान पहुंचा था कि अंतत: मदरसे को भी स्थायी तौर पर बंद करना पड़ा।
 
ठीक ऐसी ही कहानी शीतला मंदिर, लाहौर की है। मंदिर के टूटे कंगूरे उसी दिन की कहानी सुनाते हैं जब भारत में विवादित ढांचे को तोड़ा गया था। मंदिर के शीर्ष पर एक ताक में एक पटिया लगा हुआ है जिस पर 'अल्लाह' लिखा हुआ है मानो उसकी मौजूदगी की जानकारी देना भी जरूरी समझा गया हो। इसी इमारत में एक मदरसा चलाया जा रहा है और इसी मदरसे के छात्रों ने म‍ंदिर में आकर 1992 में तोड़फोड़ की थी। जब उनका पागलपन थमा तो वे उसी इमारत में पढ़ने के लिए एकत्र होने लगे जिसे उन्होंने ध्वस्त कर दिया था।
 
लेखक हारून खालिद एक स्कूल अध्यापक हैं जो कि इस्लामाबाद में रहते हैं और एक पुस्तक 'ए व्हाइट ट्रेल' के लेखक हैं। 'इन सर्च ऑफ शिवा' नाम से उनकी एक और किताब आने वाली है।