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Last Modified: शनिवार, 27 दिसंबर 2014 (13:50 IST)

निप्पल्स को लेकर इतने भयभीत क्यों?

निप्पल्स को लेकर इतने भयभीत क्यों? - Nipples
तमाम तरह के प्रचार माध्यमों में निप्पल्स को लेकर तरह-तरह की बातें छापी जाती हैं और आमतौर पर प्रतिदिन ही ऐसा होता है। शायद आपको इस बात पर भरोसा नहीं हो, लेकिन हफिंगटन पोस्ट के एक प्रसंग पर नजर डालिए। प्रसंग का विषय है- 'फ्री द निप्पल' (वक्षाग्रों को मुक्त करें) और इस विषय पर आप डायरेक्टर लीना एस्को के विचार जान सकते हैं। विदित हो कि इस बारे में सुश्री एस्को का कहना है कि निप्पल्स ही हमारा भविष्य हैं।
स्वाभाविक है कि यह बात महिला अधिकारों और विशेष रूप से उनके शरीर को लेकर अधिकारों को लेकर केन्द्रित है। इस मामले में वे अमेरिका का उदाहरण देती हैं। देश के 50 में से 37 राज्यों में अभी भी महिलाओं का टॉपलेस घूमना अपराध है। कुछ स्थानों पर तो मांओं को अपने बच्चों को दूध पिलाने तक की मनाही है। लुसियाना में प्रावधान है कि अगर कोई महिला अपने निप्पल्स का प्रदर्शन करती है तो उसे तीन वर्ष की जेल में डाला जा सकता है और 2500 डॉलर का जुर्माना किया जा सकता है।
 
न्यूयॉर्क शहर में महिलाओं का टॉपलेस होना 1992 में वैधानिक हुआ, लेकिन इसके बाद भी न्यूयॉर्क पुलिस डिपार्टमेंट महिलाओं को गिरफ्तार करती है। इससे छुटकारा पाने के लिए महिलाओं ने कैमरों का सहारा लिया और पुरातनपंथी सोच के खिलाफ अपना अभियान चलाया। इस अभियान के अंत में 'फ्री द निप्पल' मनोरंजन की दुनिया से निकलकर वास्तविक जीवन में आई। प्रसिद्ध ग्राफिटी कलाकारों, समर्पित महिलाओं की फौज और मिली साइरस से लेकर लाइव टेलर और लेना डनहम तक ने मीडिया में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। 
 
यह अमेरिका का एक ताकतवर आंदोलन बन गया। एस्को का कहना है कि यह आंदोलन महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी वैधानिकता का विस्तृत प्रभाव पड़ेगा। इसका मात्र इतना उद्देश्य नहीं है कि बड़े शहरों में महिलाएं अर्द्धनग्न होकर घूम सकें। इसके लेकर एस्को ने एक फिल्म भी बनाई है, जिसे आप बारह दिसंबर को आईएफसी थिएटर्स में देख सकते हैं। विदित होकि यह आईट्यून्स पर भी उपलब्‍ध है।