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Last Modified: शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016 (17:16 IST)

जिहादी नीति से पाकिस्तान को रणनीतिक फायदा : मसूद अजहर

जिहादी नीति से पाकिस्तान को रणनीतिक फायदा : मसूद अजहर - Masood Azhar, terrorist organization, Pakistan
लाहौर। आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर ने जिहादी गुटों से कश्मीर में अपनी सक्रियता बढ़ाने के लिए संगठन की साप्ताहिक पत्रिका 'अल-कलाम' में प्रकाशित अपनी एक अपील में कहा है कि 'निर्णायक फैसला लेने में दिखाई गई देरी' से पाकिस्तान कश्मीर में 'ऐतिहासिक मौका' खो सकता है। अजहर की ये अपील ऐसे समय में आई है, जब उड़ी हमले और भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते तल्ख हैं। 
अब तक तो भारत ही पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों के गुटों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करता रहा है लेकिन अब पाकिस्तान के राजनीतिक दलों और मीडिया ने नवाज सरकार से पूछा है कि भारत विरोधी जिहादी गुटों पर कार्रवाई के मसले पर उसने क्या किया है? आतंकवादियों की कार्रवाइयों को समर्थन देने को लेकर पाकिस्तानी सरकार और सेना के बीच भी मतभेद भी गहरा गए हैं। कई राजनीतिक दलों ने आतंकवादियों के खिलाफ बोलते हुए कहा है कि आतंकवादी पाकिस्तान को कश्मीर दिलाने की कूबत नहीं रखते हैं। 
 
इसके जवाब में पत्रिका के पहले पन्ने पर अजहर ने लिखा है, 'अगर पाकिस्तान सरकार थोड़ी हिम्मत दिखाए तो कश्मीर की मुश्किल और पानी की समस्या एक बार में हमेशा के लिए हल हो जाएगी। कुछ और नहीं तो (पाकिस्तानी) सरकार को मुजाहिद्दीनों के लिए रास्ता साफ कर देना चाहिए। फिर अल्लाह की मर्जी रही तो 1971 की सभी कड़वी यादें 2016 की फतह की खुशी में गायब हो जाएंगी।' सीधे पाकिस्तानी सरकार को संबोधित करते हुए मसूद अजहर ने लिखा है कि '1990 से जारी जिहादी नीति से पाकिस्तान को रणनीतिक फायदा हुआ है।' 
 
अजहर ने यह भी लिखा है कि 'भारत, अखंड भारत बनाना चाहता है लेकिन जिहादियों की मौजूदगी के कारण उसके मंसूबे पूरे नहीं हो रहे हैं, क्योंकि जिहादियों ने उसके हर अंग को घायल कर दिया है।' अजहर ने लिखा है, भारत की 'सैन्य क्षमता की पोल पठानकोट और उड़ी में खुल चुकी है।'
 
अजहर ने लिखा है, 'भारत इस बार पाकिस्तान पर दबाव डाल रहा है जबकि कश्मीर के हालात को देखते हुए यह काम पाकिस्तान को करना चाहिए था।' 
 
आतंकी सरगना का कहना है कि कश्मीर हमारे लिए जीवन-मरण का सवाल है इसलिए दक्षेस सम्मेलन और नियंत्रण रेखा पर संघर्षविराम हमें रद्द करना चाहिए था। कश्मीर में पिछले 90 दिनों में कितने मुस्लिम शहीद हो गए और कितने घायल हो गए? अजहर के अनुसार जिहादियों के आतंकी हमलों से कश्मीर में भारतीय सेना को गहरा धक्का लगा है। अजहर ने लिखा है, 'कश्मीर में जिहाद से पहले और बाद के भारत के बारे में सोचें। आपको नाटकीय अंतर दिखेगा। इस दौर में मैंने अपनी आंखों से भारत को सांप से केंचुए में बदलते देखा है।'
 
अजहर ने अपने लेख में जैश-ए-मोहम्मद के फैलाव के बारे में लिखा है कि 'जब हमने जिहाद शुरू किया था तो कश्मीर में हमारी कोई शाखा नहीं थी। न ही सीरिया और इराक में कोई रोशनी की किरण थी। केवल अफगानिस्तान और फिलीस्तीन में दो मोर्चे थे। उनमें से एक सक्रिय था और दूसरा बंद था।' अजहर ने आगे लिखा है, 'हमने जिहाद को एक अंगारे से सूरज बनते देखा है, एक छोटे से चहबच्चे से नदी में बदलते देखा है और अब ये समंदर बनने वाला है।'
 
पाकिस्तानी अखबार 'द डॉन' में इसी हफ्ते आई रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की अध्यक्षता में हुई एक मीटिंग में पाक विदेश सचिव एजाज़ चौधरी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी संगठनों को लेकर काफी नाराज है। बैठक में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ ने कहा था कि सरकार आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने में अक्षम है, क्योंकि उन्हें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद हासिल है। 
 
उल्लेखनीय है कि 'इंडियन एक्सप्रेस' ने इसी साल मई में अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि पठानकोट हमले के बाद जैश-ए-मोहम्मद ने अपना मुख्यालय बदल लिया है। पहले उसका मुख्यालय बहावलपुर में था, जो वहां से 62 किलोमीटर दूर चोलिस्तान के किला मौजगढ़ में ले जाया जा चुका है। इसी साल जुलाई में 'इंडियन एक्सप्रेस' ने कराची की एक मस्जिद के बाहर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों द्वारा जिहाद के लिए चंदा जुटाने की खबर भी प्रकाशित की थी। यह सब आतंकी गिरोहों से दुनिया का ध्यान बंटाने के लिए किया जा रहा है लेकिन अब पाकिस्तान के मीडिया में ही मांग उठने लगी है कि हाफिज और मसूद अजहर पर कार्रवाई करने में सरकार के कौन से हित आड़े आ रहे हैं? 
 
'द नेशन' ने बुधवार को सरकार और सेना दोनों से पूछा कि आखिर मसूद अजहर और हाफिज सईद के खिलाफ कार्रवाई करना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए 'खतरा' क्यों और कैसे है? अहम बात यह है कि यह सख्त सवाल पूछने वाला अखबार 'द नेशन' सरकार और सेना का करीबी माना जाता है।
 
यह सवाल ऐसे वक्त में पूछा गया है, जब अखबार 'डॉन' के पत्रकार सिरिल अलमीडा को निशाना बनाने को लेकर सेना और सरकार सवालों के घेरे में हैं। सेना और सरकार के बीच तनातनी की खबर छपने के बाद अलमीडा के देश छोड़ने पर रोक लगा दी गई है। 
 
अलमीडा ने डॉन में लिखा था कि किस तरह हक्कानी नेटवर्क, तालिबान और लश्कर जैसे आतंकी संगठनों को समर्थन पर सेना और सरकार में तनातनी चल रही है। 'द नेशन' ने अपने संपादकीय में कहा है कि मीडिया, अलमीडा के साथ मजबूती से खड़ा है। इससे पहले 'डॉन' ने भी अपने संपादकीय में कहा था कि वह अलमीडा की खबर पर कायम है और अखबार ने गलत रिपोर्टिंग के आरोपों को खारिज किया है। कराची प्रेस क्लब ने उनके खिलाफ प्रतिबंध हटाने की मांग की है। 
 
वहीं अमेरिका ने पाकिस्तान में पत्रकारों के सामने मौजूद खतरों पर चिंता जताई है और आशंका जाहिर की है कि अलमीडा के साथ कुछ भी अप्रिय घटना हो सकती है। समाचार पत्रों ने कहा है कि पठानकोट हमले का मास्टरमाइंड मसूद अजहर और 26/11 मुंबई हमले का गुनाहगार हाफिज सईद पाकिस्तानी सेना के संरक्षण में खुलेआम घूम रहे हैं। सीनेट में पीएमएल के एक सीनेटर ने इनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। 
 
संसद की स्थायी समिति की बैठक में राणा मोहम्मद अफजल ने कहा था कि हाफिज कौन से अंडे दे रहा है कि पाकिस्तानी सरकार उसका संरक्षण कर रही है? 'द नेशन' ने अपने संपादकीय में कहा है, सरकार और सेना हाफिज और मसूद पर कार्रवाई करने की बजाय प्रेस को पढ़ा रही है। यह परेशान करने वाली बात है कि सरकार और सेना के लोग मीडिया को बता रहे हैं कि उसे कैसे अपना काम करना है? मंगलवार को हुई सरकार और सेना की बैठक में अलमीडा की रिपोर्ट को तो काल्पनिक करार दिया गया लेकिन यह नहीं बताया गया कि पाकिस्तान में प्रतिबंधित संगठन कैसे चल रहे हैं? 
 
बैठक में यह पूछा गया कि मसूद और सईद के खिलाफ कार्रवाई राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा क्यों है? अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में पाकिस्तान क्यों अलग-थलग पड़ रहा है? हम इनका जवाब जानने को उत्सुक हैं। एक पत्रकार के साथ अपराधी जैसा बर्ताव करने की हिम्मत आखिर सरकार की कैसे हुई? पाकिस्तान के राष्ट्रीय हित क्या हैं और क्या नहीं, यह तय करने वाले वे कौन होते हैं? इससे पहले 'द नेशन' ने अपने लेख में नवाज सरकार और आर्मी से सवाल पूछा था कि जमात-उद-दावा के सरगना हाफिज सईद और जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं लिया जाता जबकि ये दोनों ही पाकिस्तान की नेशनल सिक्यूरिटी के लिए एक बड़ा खतरा हैं? 
 
मीडिया को नसीहत क्यों? : ‘द नेशन’ ने बुधवार को सवाल उठाया कि सरकार और आर्मी मसूद अजहर और हाफिज सईद पर तो कोई एक्शन लेती नहीं है, उल्टे मीडिया को लेक्चर दे रही है कि उसे अपना काम कैसे करना चाहिए? ये दोनों आतंकी सरगना पाकिस्तान में खुलेआम घूमते हैं। अखबार के मुताबिक, दोनों को ही सेना व आईएसआई का संरक्षण हासिल है। अखबार ने यह भी लिखा, 'यह अफसोस वाली बात है कि सरकार और सेना मीडिया को उसका काम सिखाने की कोशिश कर रही हैं?'
 
इस बीच पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमान बेचने पर रोक लगाने में अहम भूमिका निभाने वाले अमेरिकी सांसद बॉब कोरकर ने पाकिस्तान को कड़ी नसीहत दी है। उन्होंने कहा कि पाक को पत्रकारों पर नहीं, बल्कि हक्कानी नेटवर्क को निशाना बनाने की जरूरत है। अमेरिका सांसद का यह बयान ऐसे समय पर आया है, जबकि पाकिस्तान ने 'डॉन' के वरिष्ठ पत्रकार के देश से बाहर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। 
 
अमेरिका के रिपब्लिकन पार्टी के सांसद बॉब कोरकर ने ट्वीट किया कि पाकिस्तान को मीडिया का दमन करने के बजाए पनाह दिए हक्कानी नेटवर्क के दमन पर काम करना चाहिए। इसके अलावा अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा, ‘मुझे सिरिल अल्मीड़ा के मुल्क छोड़ने पर लगे प्रतिबंध की जानकारी है। प्रेस की स्वतंत्रता स्पष्ट रूप से वह मुद्दा है, जो हम पाकिस्तान की सरकार के समक्ष नियमित उठाते रहे हैं। हम पत्रकारों की ओर से कठिनाइयों और खतरों का सामना किए जाने पर भी चिंता जाहिर करते रहे हैं।’ 
 
किर्बी ने कहा कि हम प्रेस की स्वतंत्रता को या अत्यंत महत्वपूर्ण काम करने के लिए पत्रकारों की क्षमता को सीमित करने के सभी प्रयासों को लेकर चिंतित हैं।