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Last Updated :बॉन , बुधवार, 13 जनवरी 2016 (14:49 IST)

#InsideStory : जर्मनी में किसने की महिलाओं के साथ सामूहिक यौन हिंसा और लूटपाट

#InsideStory : जर्मनी में किसने की महिलाओं के साथ सामूहिक यौन हिंसा और लूटपाट - Inside Story of Sexual Assaults in Germany
दुनिया स्तब्ध है कि अनुशासन और सुशासन के पर्याय जर्मनी में नववर्ष का आगमन देश के तीन प्रमुख शहरों में महिलाओं को लूटने और यौनदुराचार के साथ कैसे हुआ!   
 
कोलोन में विरोध प्रदर्शन

दिसंबर 2012 में नई दिल्ली के निर्भया बलात्कार कांड को लेकर भारत को आज तक यूरोप में एक ''सड़ी-गली हिंदू संस्कृति'' वाले ''बलात्कारियों का देश'' कहा जाता है। जर्मनी में तो यहां तक हुआ है कि विश्वविद्यालयों की कुछेक महिला प्रोफ़सरों ने डॉक्टर की उपाधि के लिए भारतीय शोधकों का गाइड बनने से मना कर दिया। अपनी गिरेबां में झांकने के बदले यूरोपीय मीडिया तथा बुद्धिजीवी भी भारत में बलात्कार की हर बड़ी घटना को महिलाओं के प्रति भेदभावी हिंदू समाज'' से जोड़ कर देखने और लंबे-चौड़े उपदेश देने से कभी नहीं चूकते।
जबकि तथ्य यह है कि यूरोप के लगभग सभी देशों के पुरुष महिलाओं के साथ छेडछाड़, यौनदुराचार और बलात्कार में उससे कहीं अधिक व्यस्त हैं, जितना भारत को ग्रस्त बताया जाता है। अंतर इतना ही है कि यूरोप के मीडिया ऐसी ख़बरों से जनता को बेखबर रखना ही बेहतर समझते हैं।


 लेकिन, नववर्ष के आगमन वाली 31 दिसंबर की रात को जर्मनी के तीन बडे शहरों कोलोन, हैम्बर्ग और श्टुटगार्ट में एक ही समय और एक ही ढर्रे पर जो कुछ हुआ, उसका आयाम इतना नया, बड़ा और भयावह था कि वह छिपाए छिप नहीं सकता था। उस रात इन तीनों शहरों में हज़ारों की भीड़ ने सैकड़ों महिलाओं को घेर कर उनके साथ न केवल छेड़छाड़ और दुराचार किया, कम से कम दो महिलाओं के साथ बलात्कार भी किया। इस बम को फूटने में देर इसलिए लगी, क्योंकि, जैसाकि सभी जगह होता है, महिलाओं ने पुलिस के पास धीरे-धीरे अपनी शिकायतें दर्ज कराईं। इसके बाद तो चांसलर (प्रधानमंत्री) अंगेला मेर्कल से लेकर सभी पार्टियों के छोटे-बड़े नेताओं ने ज़बानी जमा-ख़र्च वाले अपने कर्तव्यनिष्ठ वक्तव्यों की झड़ी लगा दी।  
जानिए उस दिन क्या हुआ था और कौन थे जर्मनी के गुनहगार इस विशेष रिपोर्ट में... 

आतिशबाज़ी के बहाने छेड़ख़ानी : घटनाक्रम की शुरुआत जर्मनी के चौथे सबसे बड़े शहर कोलोन के मुख्य रेलवे स्टेशन से हुई। जर्मनी की सबसे बड़ी नदी राइन पर बसे कोलोन का यह मुख्य रेलवे स्टेशन भी राइन नदी से बिल्कुल लगा हुआ है और यूरोप का एक सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशन है। हर दिन देश-विदेश की 1220 ट्रेनें और कोई तीन लाख लोग इस स्टेशन से हो कर गुज़रते हैं। नदी के दोनों तट और उन्हें जोड़ने वाले कई विशाल पुल नववर्ष की आतिशबाज़ी देखने का आदर्श स्थान हैं। उस दिन दूर-दूर से लोग नववर्ष की भव्य आतिशबाज़ी देखने आते हैं।
यौन हिंसा की शिकार बनी इस युवती ने टीवी पर अपनी आपबीती सुनाई
 
इस बार भी ऐसा ही था। शाम सात बजे से दर्शकों का जुटना शुरू हो गया। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि उसी समय के आस-पास स्टेशन के भीतर और उसके बाहर के चौक पर तथा स्टेशन से सटे, गोटिक शैली में बने, 700 वर्ष पुराने विश्व के सबसे बड़े कैथीड्रल की सीढ़ियों पर ''अरबी और अफ्रीकी देशों के नौजवानों'' का भी जमघट होने लगा। रात 11 बजे तक उनकी संख्या लगभग एक हज़ार हो गई। वे कई झुंडों में बंट कर भीड़ के बीच पटाखे इत्यादि फोड़ने और विशेषकर महिलाओं को घेर कर उनके साथ धक्का-मुक्की व छेड़ख़ानी करने लगे। इससे जो अफरातफ़री मचती थी, उसका लाभ उठाकर उनमें से कुछ बदमाश किसी महिला को घेर कर उसके बैग से पर्स, मोबाइल फ़ोन या दूसरी क़ीमती चीज़ें चुराने लगते तो कुछ दूसरे उसी महिला या किसी दूसरी महिला के शरीर को बेशर्मी के साथ हाथों से छूने-टटोलने और दबोचने लगते।



स्थानीय अख़बारों में प्रकाशित कुछ उदाहरणः 


छेड़ख़ानी के साथ लूट-खसोट भी : 49वर्षीय टी. श्नाइडर अपनी जीवनसंगिनी और 13 तथा 15 साल के दो बच्चों के साथ थेः ''रात 11 बजे के क़रीब हम स्टेशन के कैथीड्रल की तरफ वाले द्वार से बाहर निकल रहे थे। तभी एक भारी जमघट हमारी ओर बढ़ा। उससे बच कर निकलने की कोई गुंजाइश नहीं थी। विदेशियों का एक गिरोह भी इस भीड़ के साथ जा मिला। बच्चे हमसे बिछड़ गये। जब मिले तो पता चला कि कई बदमाशों ने मेरी 15 साल की बेटी के वक्षों को दबोचने और मेरी जीवनसंगिनी की जाघों को टटोलने  की कोशिश की थी। बेटे का मोबाइल छीन लिया था।''
 
-32 वर्ष की एफ़. ताजिक दो साल पहले अफ़गानिस्तान से आयी शरणणार्थी हैं। दस साल की अपनी बेटी के साथ साढ़े नौ बजे के क़रीब स्टेशन की तरफ़ जा रही थीं: ''ज्यादातर नौजवान पिये हुए थे। ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहे थे। बीयर की बोतलें फोड़ रहे थे। झुंड बना कर खड़े थे और औरतों को छेड़ रहे थे। वे अरब लगते थे, लेकिन उनमें से कुछ जर्मन भी बोल रहे थे। सारा वातावरण बहुत आक्रामक और डरावना था। मेरी बेटी रोने लगी। बहुत से मर्द उन औरतों को घेर लेते थे, जो स्टेशन के भीतर आ-जा रही थीं। जब हम स्टेशन में किसी तरह घुसे, तब एक मर्द ने मेरी तरफ़ देख कर कहा, 'तुम तो बड़ी प्यारी लगती हो। तुम्हारे बाल बहुत सुंदर हैं।' मेरे पीछे एक दूसरा आदमी मेरे हैंडबैग में से मोबाइल फ़ोन चुराने लगा।''
 


-37 साल की एस. ग्यौक्सू तीन सहेलियों के साथ नववर्ष मानाने के बाद, रात एक बजे, राइन नदी पर के रेलवे पुल पर से हो कर स्टेशन की तरफ़ जा रही थीं, तभी पुल पर 15 मर्दों के एक झुंड ने उन्हें घेर लियाः ''उन्होंने हमारे वक्षों और नितंबों को जकड़ लिया। हम डर के मारे कुछ कर नहीं पाईं। वे अरबी बोल रहे थे। इक्के-दुक्के फ्रेंच बोलते भी सुनाई पड़े। बहुत गंदे थे। एक तो (पॉप गायक)  माइकल जैक्सन की तरह बार-बार अपने गुप्तांग को सहला रहा था... हम चारों सोच रही थीं, हे भगवान, यह सब जर्मनी में कैसे हो सकता है।''  
बड़ा सवाल : क्यों रही सामूहिक यौनदुराचार के प्रति पुलिस लाचार

सामूहिक यौनदुराचार के प्रति पुलिस लाचार : पुलिस जर्मनी में आये और अब भी आ रहे शरणार्थियों को अन्यत्र संभालनें में इतनी व्यस्त है कि 31 दिसंबर की रात कोलोन सेंट्रल स्टेशन के पास आतिशबाजी पर नज़र रखने के लिए बहुत कम पुलिसकर्मी उपलब्ध थे। स्थानीय पुलिस का दावा है कि उस शाम उसने स्टेशन के पास करीब 100 पुरुषों को रोक कर उनके पहचानपत्र जांचे थे। इस जांच में उसे ''हाल ही में सीरिया से आए कई शरणार्थी भी मिले थे।''  पुलिस ने रात बीतते ही घोषित कर दिया कि सब कुछ "शांतिपूर्ण" रहा।
 

श्टुटगार्ट में 18 साल की दो युवतियों ने शिकायत की कोई डेढ़ दर्जन मर्दों ने उन्हें घेर कर उनकी इज्जत लूटी और उन में से एक का हैंडबैग छीन लिया। 


पुलिस को होश तब आने लगा, जब अगले दिनों में पीड़ित महिलाओं ने शिकायतें दर्ज कराना शुरू किया या स्थानीय समाचारपत्रों को अपनी आपबीती सुना कर हो-हल्ला मचाया। इस बीच क़रीब 400 महिलाएं कोलोन स्टेशन के भीतर या बाहर अपने साथ सामूहिक यौनदुराचार होने और पर्स या मोबाइल फ़ोन जैसे सामान चुराए जाने की शिकायतें दर्ज करा चुकी हैं। दो महिलाओं ने अपने साथ बलात्कार होने की शिकायत की है।

नववर्ष वाली रात को जो कुछ कोलोन में हुआ, वही और उसी समय जर्मनी के हैम्बर्ग और श्टुटगार्ट में भी हुआ। आठ जनवरी तक हैम्बर्ग की पुलिस ने 108 शिकायतें दर्ज की थीं। वहां के सेंट पाउली नामक मुहल्ले में दर्जनों पुरुषों ने 18 से 24 साल के बीच की युवा महिलाओं को घेर कर उनके साथ वैसी ही छेड़ख़ानियां कीं, उनके अंगों को वैसे ही टटोला-मटोला और उनके पर्स व मोबाइल चुरा लिये, जिस तरह कोलोन में हुआ। श्टुटगार्ट में 18 साल की दो युवतियों ने शिकायत की कोई डेढ़ दर्जन मर्दों ने उन्हें घेर कर उनकी इज्जत लूटी और उन में से एक का हैंडबैग छीन लिया। हैम्बर्ग और श्टुटगार्ट में पीड़ित महिलाओं की संख्या भले ही कम रही हो, पर हर जगह उन के धन और सम्मन की लूट का ढर्रा कोलोन जैसा ही होने से पुलिस को संदेह है कि यह पहले से तय-तमाम एक सुनियोजित अभियान था, जिसके पीछे संगठित अपराधी भी हो सकते हैं।

 ''मुझे हाथ मत लगाना, मैं सीरिया से आया हूं। चांसलर मेर्कल ने मुझे बुलाया है।'' 


नाम-मात्र की गिरफ्तारी : आठ जनवरी तक कोलोन में मोरक्को और ट्यूनीसिया से आए16 और 23 साल के केवल दो संदिग्धों की गिरफ्तारी हुई थी, हालांकि पुलिस का कहना था कि उसने 31 संदिग्ध लोगों की पहचान करली है। उन में से 9 अल्जीरिया, 8 मोरक्को, 5 ईरान, 4 सीरिया और एक-एक इराक़ तथा सर्बिया से आया शरणार्थी है; एक अमेरिकी नागरिक और दो जर्मन नागरिक भी हैं। एक अरब शरणार्थी के पास हाथ से लिखी एक पर्ची भी मिली, जिसमें जर्मनों के लिए अरबी भाषा में लिखे अपशब्दों व गंदी गालियों के साथ-साथ जर्मन भाषा में उनके अनुवाद भी लिखे हुए थे।

संदिग्धों को रेलवे स्टेशन के भीतर और बाहर लगे वीडियो कैमरों या सामान्य नागरिकों से पुलिस को मिली मोबाइल फ़ोन वली तस्वीरों से पहचाना गया है। पुलिस का कहना है कि रात का समय होने और लोगों की भारी भीड़ होने के कारण तस्वीरें बहुत अस्पष्ट हैं। इसलिए किसी की इस तरह पहचान कर सकना कि उस पर आरोप प्रमाणित किया जा सके, बहुत ही कठिन काम है। पीड़िताएं भी इन तस्वीरों के आधार पर किसी को साफ़-साफ़ पहचान नहीं सकतीं। इस कारण जांच में प्रगति बेहद धीमी है। आरोप प्रमाणित होने पर भी किसी शरणार्थी को तभी निष्कासित किया जा सकता है, जब उसे कम से कम दो साल जेल की सज़ा मिले और अपने देश में मृत्युदंड मिलने का डर न हो। लगभग सभी इस्लामी देशों में मृत्युदंड की व्यवस्था है, इसलिए शायद ही किसी को उसके देश में लौटाना संभव हो पायेगा।

अभद्रता करने वालों की राष्ट्रीयता छिपाई गई : पीड़ित महिलाओं का बार-बार यह कहना है कि उन्हें लूटने और सताने वाले अरब और अफ्रीकी थे। इससे इन देशों से आए और अब भी आ रहे शरणार्थी संदेह के घेरे में आ गए हैं। अब तक की जांच-पड़ताल भी यही कहती है। जर्मनी की घोर दक्षिणपंथी पार्टियों को छोड़ कर वाम से लेकर दर्क्षिणपंथ तक की सभी पार्टियों के नेताओं का अब तक यही परम उपदेश था कि अरब-इस्लामी देशों के मुस्लिम शरणार्थी मुसीबत के मारे बेचारे लोग हैं। उनके बीच अपराधी और आतंकवादी ढूंढना उन्हें बदनाम करने वाला अमानवीयतापूर्ण कार्य होगा। इसी उपदेश (या वास्तव में ज़बानी राजनीतिक निर्देश) का परिणाम है कि कोलोन शहर की पुलिस की प्रथम रिपोर्ट में संदिग्ध लोगों की राष्ट्रीयता का उल्लेख नहीं किया गया, क्योंकि यह ''राजनीतिक दृष्टि से सही नहीं होता।''

राष्ट्रीयता का भेद तब खुला, जब रेलवे स्टेशन की रखवाली करने वाली 'संघीय पुलिस' के एक अधिकारी की रिपोर्ट चार जनवरी को लीक हो गई। उसमें उसने खुल कर लिखा है कि महिलाओं को लूटने और उनके साथ अभद्रता करने वाले मुख्य रूप से उत्तरी अफ्रीका के अरबी देशों से आए लोग हैं। वे पुलिस वालों की भी रत्ती भर परवाह नहीं कर रहे थे। एक ने तो कहा, ''मुझे हाथ मत लगाना, मैं सीरिया से आया हूं। चांसलर मेर्कल ने मुझे बुलाया है।''  यह रिपोर्ट लीक होने तक मीडिया भी चुप्पी साधे था कि गड़बड़ आखीर किसने की।

कोलोन के अलावा हैम्बर्ग और श्टुटगार्ट में भी उसी रात जो कुछ हुआ, यदि वह भी अरब-इस्लामी शरणार्थियों की कारस्तानी सिद्ध हुआ, तो यह जर्मनी में भी चल रही सहिष्णुता-असहिष्णुता की बहस में सहिष्णुतावादियों के मुंह पर करारा तमाचा होगा। इससे भी बुरी बात यह होगी कि घोर दक्षिणपंथी अपने आप को सही मानने और छाती फुला कर चलने लगेंगे। इसी डर से चांसलर  अंगेला मेर्कल सहित सहिष्णुतावादी पूरी राजनीतिक बिरादरी ने गिरगिट की तरह रंग बदलना शुरू कर दिया है। अब सभी डंके की चोट कहने लगे हैं कि कोई शरणार्थी है या नहीं, किस देश या धर्म का है, इसकी परवाह किये बिना हर अपराधी को कड़ी सज़ा मिले। लेकिन, यह सब जनता का गुस्सा ठंडा करने की बातें हैं। किसी को सज़ा मिले, वही बड़ी बात है। कड़ी सज़ा तो दूर की कौड़ी है।  

इसी मुद्दे पर राम यादव की इस रिपोर्ट का अगला भाग "जर्मनी में होते हैं भारत से अधिक यौन-अपराध" पढ़ना न भूलें....