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समलैंगिकता, बड़ी समस्या तो यह भी है...

समलैंगिकता, बड़ी समस्या तो यह भी है... - Homosexuality
जून माह में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए देशभर में समलैंगिक विवाह को मान्यता दी थी। कोर्ट ने शादी को सभी के लिए एक संवैधानिक अधिकार बताते हुए कहा कि इसका संविधान से कोई लेना देना नहीं है। इससे पहले सिर्फ 37 अमेरिकी राज्यों में ही इस तरह की शादी को मान्यता थी।
 
इस ऐतिहासिक फैसले के बाद साउथ और मिडवेस्ट के बाकी 14 राज्यों को अपने यहां समलैंगिक विवाह पर लगे प्रतिबंध को हटाना पड़ा। इसी दौरान ऑस्ट्रेलिया में समलैंगिक शादी को मान्यता देने का प्रस्ताव संसद में पेश किया गया और दुनिया में आयरलैंड पहला ऐसा देश बना जिसने जनमत के जरिए समलैंगिक विवाह को मंजूरी दी। मैसाच्यूसेट्स समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाला सबसे पहला अमेरिकी राज्य था। यहां 2004 में समलैंगिक विवाह को मान्यता दी गई थी।
 
इस बीच डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन ने जहां 'प्राउड' शब्द ट्वीट कर अपना समर्थन जताया था वहीं, व्हाइट हाउस ने अपने ट्विटर अवतार रेनबो रंग में रंग दिया। इन बदलावों से यह कहना गलत न होगा कि समलैंगिक विवाह को लेकर दुनिया के कुछ देशों में नजरिया बदल रहा है। वर्ष 1996 में अमेरिका में ही इसका समर्थन करने वाले लोगों की संख्या मात्र 27 फीसद थी लेकिन ऐसे विवाहों की मान्यता मिलने से पहले 55 फीसद अमेरिकी इसके पक्ष में थे। विदित हो कि 1950 के दशक में विश्व के बहुत बड़े भाग में समलैंगिक सेक्स अवैध माना जाता था, लेकिन अब भी इन बदलावों के बावजूद दुनिया के 78 देशों में समलैंगिक होना अपराध है। 
 
लेकिन, अब भी यह ठीक-ठीक बताना मुश्किल है कि इन परिवर्तनों से कितने लोग प्रभावित होंगे? इस बात के भी बहुत कम सरकारी आंकड़े हैं कि किस देश में कितने लोग समलैंगिक हैं? कनाडा में 2005 में ही समलैंगिक विवाह वैध माने जाने लगे थे। वर्ष 2006 और 2011 के आंकड़ों में यहां लोगों की समलैंगिक शादी की स्थिति के बारे में पूछा गया, लेकिन यौन अनुकूलन (ओरिंएटेशन) या यौन वरीयता को लेकर कोई सवाल नहीं पूछा गया था।
 
ब्रिटेन, अमेरिका और न्यूजीलैंड में भी लोगों से उनकी सेक्सुअल ओरिएंटेशन के बारे में नहीं पूछा जाता है। ब्रिटेन के राष्ट्रीय जनगणना कार्यालय के एक सर्वेक्षण में बताया गया कि 2013 में कुल जनसंख्या के 1.7 प्रतिशत लोगों की गे, लेस्बियन या बाईसेक्सुअल (उभयलिंगी) पहचान दर्ज की गई थी। ऐसे वयस्क लोगों की संख्‍या करीब आठ लाख थी।  
क्या कहते हैं अमेरिका में आंकड़े... पढ़ें अगले पेज पर...

अमेरिका में वर्ष 2013 में सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन के आंकड़ों में 18 वर्ष से अधिक आयु के 1.6 फीसद को गे और 0.7 फीसद को बाईसेक्सुअल चिन्हित किया गया। कनाडा में, 2012 के एक सर्वे में 18 से लेकर 59 वर्ष की आयु के 1.3 फीसद लोगों को गे और 1.1 फीसद को बाईसेक्सुअल बताया गया। लेकिन सरकारी आंकड़ों के बावजूद समस्या यह है कि बड़ी संख्या में गे या लेस्बियंस अपने बारे में जानकारी नहीं देते।
 
केंट यूनिवर्सिटी के पीटर एस्पिनल के एक शोध पत्र के अनुसार 2006 में रॉयल स्‍टेटिस्टीकल सोसायटी में एक सेमिनार इस विषय पर आयोजित किया गया था कि लोगों की पहचान कैसे करें कि कितने लोग गे हैं या लेस्बियंस या बाईसेक्सुअल? आंकड़े जुटाने वालों की दो समस्याएं थीं कि वे व्यवहार, इच्छा या पहचान को कैसे मापें और किस तरीके से जानकारी को एकत्र करें कि लोग इसे समझ सकें और स्वीकार करें।  
 
वहीं न्यूजीलैंड के आंकड़ा कार्यालय का कहना है कि यौन वरीयता या पसंद को परिभाषित करना और मापना बहुत मुश्किल है क्योंकि जनगणना के फॉर्मों में ऐसी जानकारी देने की बहुत सीमित जगह होती है। इसलिए 2013 के अमेरिकन सर्वेक्षण में करीब 1.1 फीसदी लोगों ने अपनी पहचान 'कुछ और' के तौर पर बताई और कहा कि उन्हें इसका उत्तर नहीं पता या फिर सवाल का जवाब देने से ही इनकार कर दिया। इसे देखते हुए बहुत से लोगों का कहना है कि ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक हो सकती है। एक ‍ब्रिटिश गे-राइट्‍स चैरिटी 'स्टोनवाल' का अनुमान है कि ब्रिटिश जनसंख्या में गे, लेस्बियन या बाईसेक्सुअल लोगों की संख्या 5 से 7 फीसदी तक हो सकती है। 
 
कई अन्य सर्वेक्षणों में भी कहा गया है कि समलैंगिक संबंधों का अनुभव करने वालों की संख्या कहीं बहुत ज्यादा है जोकि खुद को खुशी-खुशी गे या बाईसेक्सुअल बता देते हैं। विलियम्स इंस्टीट्‍यूट ने एक सर्वेक्षण में 2011 में कहा था कि 8 फीसद अमेरिकि‍यों को समलैंगिक संबंधों के व्यवहार में लिप्त पाया गया। इसी तरह से ब्रिटेन में वर्ष 2013 में किए गए सर्वेक्षण में बताया गया कि 16 से 44 वर्ष की उम्र के बीच 7 फीसद पुरुषों और 16 फीसदी महिलाओं ने समलैंगिक संबंधों का अनुभव लिया था।
 
इस कारण से अमेरिका समेत कई देशों में जनगणना करने वाली एजेंसियों ने तय किया है कि वे समलैंगिक विवाहों को लेकर प्रश्न पूछने का तरीका बदलेंगे क्योंकि कभी-कभी विषमलिंगी जोड़े भी गलत जवाब देते हैं। इसलिए निकट भविष्य में जनगणनाओं में यौन चयन या वरीयता को लेकर भी सवाल शामिल किए जा सकते हैं क्योंकि समलैंगिकता को लेकर दुनिया भर के नजरिए में बदलाव हो रहा है। और कहना गलत न होगा कि ऐसे देशों में भारत भी शामिल है और भारतीय सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसे लोगों की संख्या के बारे में सवाल उठाए जा चुके हैं।  
(द इकॉनामिस्ट में प्रकाशित एक ब्लॉग से साभार)