गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. अंतरराष्ट्रीय
  4. donald trump
Written By
Last Modified: बुधवार, 9 नवंबर 2016 (13:56 IST)

ट्रंप की जीत का भारत के लिए अर्थ

ट्रंप की जीत का भारत के लिए अर्थ - donald trump
अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप एक मजबूत नाम साबित हुआ और उनके राष्ट्रपति बनते हैं तो भारत को कई तरह से लाभ मिलेगा। साथ ही ट्रंप का राष्ट्रपति बनना भारत को कई तरह प्रभावित करेगा।
 
एच-1बी वीजा : ट्रंप देश में रह रहे काबिल लोगों के समर्थन में हैं, बशर्ते वे कानूनी तरीके से यहां रह रहे हों। उनका कहना है कि वे एच 1 बी वीजा को लेकर कुछ ऐसी नीतियां बनाएंगे, जिससे कंपनियों पर बाहर के लोगों को नौकरी देने की बजाय अमेरिका के लोगों को ही नौकरी देने का दबाव बनेगा।
पाकिस्तान और कश्मीर : ट्रंप पाकिस्तान को दुनिया के सबसे खतरनाक देश के तौर पर देखते हैं। उनकी सलाह है कि अमेरिका को भारत के साथ काम करना चाहिए और पाकिस्तान को निगरानी पर रखना चाहिए। पिछले साल सितंबर में उन्होंने कहा था कि भारत के अपने परमाणु हथियार हैं और उनकी सेना भी काफी ताकतवर है। ऐसे में अगर ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं तो जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंक पर खुलकर और निर्णायक बात की जा सकती है।
 
चीन और भारत का बाजार : ट्रंप ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में मैन्युफैक्चरिंग जॉब्स को देश में वापस लाने का वादा किया है। पूर्व अमेरिकी डिप्लोमेट विलियम एच. एवरी का कहना है कि ट्रंप के इस फैसले भारत को कम और चीन को ज्यादा नुकसान होगा।
 
भारतीय इंवेस्टर्स के लिए अवसर : ट्रंप ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में निवेश के लिहाज से अमेरिका को सबसे बेहतरीन देश बनाने का वादा किया है। उन्होंने कॉर्पोरेट टैक्स को 15 फीसदी कम करने का वादा किया है। ऐसे में भारतीय कंपनियों को बड़ी राहत मिल जाएगी।
 
ट्रंप का व्यक्तित्व बहुत ही विवादास्पद रहा है। वे अपनी इस खूबी के चलते अमेरिकी कम भारतीय नेताओं के ज्यादा करीब लगते हैं, लेकिन उनके बारे में कहा जाता है कि वे कड़ी मेहनत से एक सफल व्यवसायी बने हैं और उनके समर्थकों के मुताबिक उनकी अर्थव्यवस्था पर मजबूत पकड़ है और वे नौकरियां पैदा करना जानते हैं।
 
ट्रंप अमेरिका के 156वें सबसे अमीर व्यक्ति हैं जिनके पास 26 हजार करोड़ रुपए का कारोबार है और रियल एस्टेट के क्षेत्र में उनकी धाक है। वे अमेरिकी श्वेत समुदाय में बहुत लोकप्रिय हैं। पर ट्रंप के साथ कई कमजोरियां भी जुड़ी रही हैं जिनके कारण उन्हें राष्ट्रपति पद के योग्य व्यक्ति नहीं समझा गया। पिछले कई वर्षों के दौरान 18 महिलाओं ने उन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं। ज्यादातर लोग उन्हें बड़बोला और जल्द गुस्से में फैसले लेने वाला कहा जाता है और इसके साथ ही ट्रंप को अल्पसंख्यकों और महिला विरोधी भी माना जाता है। 
 
ट्रंप की जीत से अमेरिकी विदेश नीति (फॉरेन पॉलिसी) पर गहरा असर पड़ेगा। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान भारत और दक्षिण एशिया को लेकर अमेरिका की बेहतर और सकारात्मक नीति के संकेत दिए हैं।  
 
ट्रंप सत्ता में आते ही एच-1बी वीजा पर कार्य करने वाले कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन बढ़ाने की बात कर रहे हैं लेकिन यह भारतीयों पेशेवरों के लिए नौकरी छीनने जैसा होगा क्योंकि अभी तक कंपनियां अमेरिकी वेतन मापदंड की अवहेलना करते हुए कम पैसों पर भारतीय आईटी पेशेवर को काम पर रखती हैं, लेकिन न्यूनतम वेतन के बढ़ते ही कंपनियां भारतीयों के मुकाबले अमेरिकी युवकों को रखने पर प्राथमिकता देंगी, जिससे भारतीय आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री में भूचाल आ सकता है।
 
इससे हजारों लोगों की नौकरियां भी जा सकती हैं। विदित हो कि ट्रंप अपनी आव्रजन नीति का खुलासा करने के दौरान यह कह चुके हैं कि चीन और मैक्सिकन प्रोफेशनल को अमेरिकी नौकरियां लूटने से बचाने के लिए वे सीमा पर चीन से बड़ी दीवार बनवा देंगे, लेकिन अब यह आशंका सच साबित होने का समय आ गया है। 
 
भारतीय दवा कंपनियों पर प्रभाव : अमेरिकी चुनाव के नतीजों का एक बड़ा प्रभाव भारतीय दवा उद्योग पर पड़ना तय है। भारतीय दवा कंपनियों के लिए अमेरिका एक बड़ा बाजार है। दवा में इस्तेमाल होने वाली 80 प्रतिशत खुदरा सामग्री अमेरिका, भारत और चीन की दवा कंपनियों से निर्यात करती हैं। फरवरी में लाए नए कानून के तहत दवा कंपनियों को मूल सामग्री के अमेरिका में ही बनाने की बाध्यता के बाद निर्यात के लुढ़कने की आशंका बढ़ गई है।
 
इसके साथ ही जेनेरिक दवा उद्योग को अमेरिका नियंत्रित करता है, जिसमें दुनियाभर के उत्पादन में भारत का पांचवां हिस्सा है। हालांकि इस फैसले से पहले ही भारतीय दवा निर्माता कंपनियां दूसरी रणनीति पर चलते हुए अमेरिकी दवा कंपनियों को खरीदने की रणनीति पर काम कर रही हैं। गौरतलब है कि सिपला, ल्युपिन, सन फार्मा पहले ही दो-दो अमेरिकी कंपनियां खरीद चुकी हैं और 31 ऐसी अन्य कंपनियों को खरीदने की तैयारी हैं। 
 
भारत की अमेरिका के लिए अहमियत क्या है, इस बात का अंदाजा एक अमेरिकी थिंकटैंक की रिपोर्ट से लगाया जा सकता है। एक अहम अमेरिकी गैर-सरकारी संगठन ने अक्टूबर माह में सलाह दी थी कि नए अमेरिकी राष्ट्रपति को अपना कार्यकाल शुरू होने के 100 दिन के भीतर ही भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करनी चाहिए, ताकि दोनों देशों के बीच जारी निकट संबंधों की अहमियत का मजबूत संकेत जाए।
 
सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ (सीएसआईएस) ने नवंबर के चुनाव में निर्वाचित होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि वह सुनिश्चित करे कि भारत आधारभूत संधियों पर दस्तखत करे जो उसके अनुसार दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों को मजबूत करने के लिए अहम हैं।
 
सेंटर ने रिपोर्ट में कहा है कि इन संधियों की गैरमौजूदगी में अमेरिका के लिए भारत को इस तरह की कुछ खास अत्याधुनिक 'सेंसिंग', 'कम्प्यूटिंग' और संचार प्रौद्योगिकियां प्रदान करना अगर पूरी तरह नहीं, तो लगभग नामुमकिन हो जाएगा, जिसे भारत अपनी रक्षा क्षमता के लिए अनिवार्य मानता है। 
 
रिपोर्ट ने कहा है कि 'अमेरिकी विदेश मंत्रालय एवं विदेश मंत्रियों के नेतृत्व में कोई चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद स्थापित करने के लिए अगले प्रशासन को ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के साथ काम करना चाहिए...इस संवाद को पूरे प्रशांत एवं हिन्द महासागर क्षेत्रों में साझा हितों के मुद्दों पर केंद्रित करना चाहिए।'  सेंटर ने अपनी रिपोर्ट में अमेरिकी और भारतीय विदेश मंत्रालयों के बीच 'पूर्वी एशिया विमर्श' की तर्ज पर पश्चिम एशिया पर अमेरिका और भारत के बीच एक संवाद स्थापित करने का भी आग्रह किया।
 
सेंटर ने कहा कि अमेरिका एशिया-प्रशांत के पुन:संतुलन की अपनी रणनीति को सुदृढ़ करने की कोशिश कर रहा है और इससे अमेरिका को भारत के एक उभरते नेता के साथ संवाद करने का मौका मिलेगा, जबकि भारत को विश्व के साथ अपने रिश्तों की तरजीह फिर से तय करने का मौका मिलेगा। उसने कहा कि बराक ओबामा ने नरेंद्र मोदी के साथ मजबूत रिश्ते बनाए और उच्चतम स्तर पर संवाद बरकरार रखा। भारत के साथ अमेरिकी संवाद अधिकाधिक सुरक्षा पहलुओं पर केंद्रित रहे, जबकि भारत ने उसका गर्मजोशी से जवाब दिया। ट्रंप को ओबामा की इस विरासत को आगे बढ़ाने की जरूरत है। 
 
भारत में ट्रंप का निवेश, अमेरिकी विदेश नीति  : अमेरिका में अगर राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने और व्हाइट हाउस में दाखिल होने पर भारत सहित दुनिया के कई देशों के रियल एस्टेट क्षेत्र में उनका निवेश अमेरिकी विदेश नीति को प्रभावित कर सकता है। एक प्रमुख अमेरिकी साप्ताहिक पत्रिका में यह दावा किया गया है।
 
कुछ समय पहले पत्रिका ‘न्यूजवीक’ ने विदेशों में प्रॉपर्टी के क्षेत्र में निवेश पर कवर स्टोरी प्रकाशित की थी। इसमें कहा गया था कि जुलाई महीने में जब रिपब्लिकन पार्टी का नेशनल कनवेंशन चल रहा था तो उस समय ‘ट्रंप आर्गनाइजेशन’ ने ऐलान किया था कि वह भारत में बड़े पैमाने पर निवेश की योजना बना रहा है।
 
साप्ताहिक ने कहा कि‘यह इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने की स्थिति में हितों का टकराव हो सकता है। अगर ट्रंप, भारत के साथ सख्ती से पेश आते हैं तो क्या भारत सरकार यह समझेगी कि उसे परियोजनाओं को हरी झंडी देनी है और पुणे में ट्रंप के साझेदारों से संबंधित जांच को खत्म करना होगा। 
 
इसी तरह अगर ट्रंप पाकिस्तान को लेकर कड़ा रुख अपनाते हैं तो क्या यह अमेरिका के रणनीतिक हितों के लिए होगा या फिर भारत सरकार के उन अधिकारियों को खुश करने के लिए होगा जो ट्रंप टावर पुणे से होने वाले उनके लाभ को नुकसान पहुंचा सकते हैं? अमेरिकी पत्रिका ‘न्यूजवीक’ के अनुसार पुणे और गुड़गांव में रियल एस्टेट में ट्रंप के निवेश के परिणामस्वरूप भाजपा और कांग्रेस सहित विभिन्न दलों के राजनीतिज्ञों ने ट्रंप के परिवार के साथ निकट संबंध स्थापित कर लिए हैं। 
 
इस खबर के अनुसार ट्रंप ने साल 2011 में रोहन लाइफस्केप्स नामक एक भारतीय रियल एस्टेट डेवलपर के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और यह भारतीय कंपनी 65 मंजिला इमारत बनाना चाहती थी। बाद में इसी कंपनी के निदेशक कल्पेश मेहता भारत में ट्रंप के व्यवसायों के प्रतिनिधि बन गए।
 
पत्रिका के अनुसार सरकारी नियामक ने ट्रंप और भारतीय कंपनी की इस परियोजना पर जल्द रोक लगा दी थी तथा ट्रंप जूनियर भारत गए और महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण से इन रुकावटें खत्म करने का आग्रह किया था। परंतु चव्हाण ने ट्रंप आर्गनाइजेशन को रियायत देने से इनकार कर दिया था।
 
कुछ विदेश नीति जानकारों का यहां तक कहना था कि उन्हें पूरा भरोसा है कि अमेरिका के भावी राष्ट्रपति ट्रंप ही होंगे। भविष्यवाणियों में जिस तरह से उग्रवाद के खिलाफ कडी कार्रवाई और मजबूत इच्छाशक्ति चाहिए, उसके लिए जैसा राष्ट्रवादी या फिर सनकी व्यक्ति होना आवश्यक है। इस समय हम कह सकते हैं कि ट्रंप वह सनकी शक्तिशाली राष्ट्रनेता हो सकते हैं जो पूरी कठोरता के साथ आतंकवादियों के सफाए में लग जाएगा और पहली बार किसी युद्ध में रूस और अमेरिका एक साथ सहमति करके तीसरे विश्वयुद्ध की लडाई लडेंगे। 
 
क्या भारत में आपात काल लगेगा? :                                              
 
आप कह सकते हैं कि ट्रंप की जीत का भारत में आपातकाल का क्या संबंध है, तो उसकी पृष्ठभूमि ऐसे नेता खुद बना रहे हैं जो भारत विरोधी बयानबाजी करने वालों और आतंकियों की मौत पर आंसू बहाने का काम कर रहे है। कांग्रेस, वामपंथी और कथित धर्मनिरपेक्षता वादी दलों, संगठनों से जुड़े ये  सरकार की इस लड़ाई में बाधक वे तत्व हैं जो कि नागरिकों को बोलने की आजादी, मीडिया की आजादी का रोना रोते हैं क्योंकि इसी छूट के नाम पर इनका सारा गोरखधंधा चलता है।
 
इसलिए जिस दिन सरकार नागरिकों के अधिकारों को सीमित करने का प्रयास करेगी या देश वासियों को तीन तलाक या समान नागरिक आचार संहिता की दिशा में काम करेगी तो देश के तमाम राजनीतिक दल आपातकाल का रोना लेकर सडकों पर उतर जाएंगे लेकिन तब तक शायद इन के लिए रोने के अलावा कुछ नहीं बचेगा क्योंकि इस समय जनता खुद ऐसे नेताओं से त्रस्त हो चुकी है। केजरीवाल, राहुल गांधी, लालूप्रसाद यादव और सैफई का समाजवादी परिवार या मार्क्सवादी, माओवादी वामपंथी देश में किसी प्रकार का कोई सकारात्मक योगदान नहीं करते हैं, ऐसे में अगर इन्हें घर बैठा दिया जाए तो मोदी सरकार निर्बाध रूप से काम कर सकेगी।