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Last Updated : मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017 (18:24 IST)

दुनिया में वायु प्रदूषण का प्रकोप

दुनिया में वायु प्रदूषण का प्रकोप - air pollution
दुनिया भर में समय से पूर्व होने वाली मृत्यु के मामले में वायु प्रदूषण सबसे बड़े खतरों में से एक के रूप में उभरा है। मोटे अनुमान के तौर पर दुनिया भर में वायु प्रदूषण के चलते हर दिन 18,000 लोग मर जाते हैं। अन्य तथ्‍यों पर भी गौर कीजिए।
 
* एशिया में 65% मृत्यु और भारत में 25% मृत्यु के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है।
 
*अमेरिका में हर साल वायु प्रदूषण के कारण 50,000 लोग मर जाते हैं।
 
*चीन में हृदय रोग और वायु प्रदूषण से पैदा होने वाले फेफड़ों के कैंसर के कारण हर साल 300,000 मरते हैं।
 
*विश्व बैंक का अनुमान है कि वायु प्रदूषण के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को सालाना 225 अरब डॉलर का नुकसान पहुँचता है।
 
*विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदूषण के कारण हर साल भारत में 14 लाख लोगों की मौत हो जाती है। औसतन प्रदूषित हवा की वजह से हर मिनट दो भारतीय मारे जाते हैं।
 
*दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से कुछ शहर भारत में हैं। पटना और नई दिल्ली, पीएम 5 के स्तर के साथ जोखिम के मामले में दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर हैं।
 
* पी एम (‍पार्टिकुलेट मैटर) बहुत ही सूक्ष्म कण रूपी पदार्थ हैं जो वायु प्रदूषण में मौजूद रहते हैं। वे इतने छोटे हैं कि श्वसन के पथ के माध्यम से वे फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं और अस्थमा जैसे श्वसन रोगों को पैदा करते हैं। इसके अलावा वे दिल से संबंधित बीमारियों को भी जन्म देते हैं।
 
*वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन मोटे तौर पर एक दूसरे से जुड़े होते हैं और उनसे एक साथ निपटा जाना चाहिए।
 
*वायु प्रदूषण, जिसके कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसों के साथ सूरज से निकलने वाली गर्मी के साथ मिलकर वातावरण में कहर ढा रहे  हैं।
 
*वायु प्रदूषण ने एसिड रेन (अम्लीय वर्षा) के जोखिम को बढ़ा दिया है जो फसलों, पेड़ों, इमारतों और ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुंचाती है।
 
*अगर हम प्रदूषित हवा में श्वास करते रहते हैं तो इससे हमारे जीवन की अवधि के कई साल कम होने का खतरा रहता है।
 
*भारत में प्रदूषण के मामले में कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्र का 50 प्रतिशत योगदान है।
 
*हमारे द्वारा उपयोग किए गए ईंधन आज पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि की एक बड़ी मात्रा में उत्सर्जन करता है जिससे हवा को बुरी तरह प्रदूषित होने का खतरा पैदा हो जाता है।
 
*वायु प्रदुषण में प्राकृतिक और मानव दोनों ही कारण शामिल हैं। प्राकृतिक स्रोतों में तूफान, जंगलों, धुंध, जंगलों में आग से उत्पन्न धुआं, जंगल में पौधों से हाइड्रोजन यौगिकों, दलदल और पदार्थों के अपघटन से उत्सर्जित मीथेन गैस आदि शामिल हैं।
 
*दूसरी ओर प्रदूषण के मानवीय कारण यानी औद्योगिकीकरण, दहन प्रक्रिया (जैसे घरेलू संचालन, वाहन और तापीय ऊर्जा में दहन), औद्योगिक निर्माण, आणविक ऊर्जा, कृषि संचालन में कीटनाशकों का उपयोग और सॉल्वैंट्स, धूम्रपान आदि के उपयोग शामिल हैं।
 
*औद्योगिकीकरण, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, सीसा, क्लोरीन, अमोनिया, धूल, रेडियोधर्मी पदार्थ, आर्सेनिक, बेरिलियम आदि वातावरण के प्रदूषित होने के कारण हैं।
 
*वायु प्रदूषण के कुछ सामान्य कारणों में वाहनों से धुएं, औद्योगिक इकाइयों के धूल कण और धुएं, जंगलों में वृक्षों को जलाने से धुएं और औद्योगिक प्रक्रियाओं में कोयला और तेल जलाने आदि शामिल हैं।
 
*घरेलू प्रयोजनों के दहन में कोयले, लकड़ी, गोबर केक, केरोसीन आदि के जलाने से गर्मी उत्पन्न होती है जिससे कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि गैस उत्पन्न होती है। इसी समय मोटरसाइकिल, स्कूटर, ट्रकों, बसों, डीजल ट्रेन इंजन आदि जैसे वाहनों में पेट्रोल और डीजल का उपयोग किया जाता है जो वातावरण में हाइड्रोकार्बन और नाइट्रोजन उत्पन्न करते हैं।
 
*सर्दियों में धुएं और कीचड़ के कारण धुंध बनती है जिससे प्राकृतिक दृश्यता कम हो जाती है तथा आंखों में जलन होता है और सांस लेने में कठिनाई होती है।
 
*प्रदूषण कई सांस की समस्याओं को जन्म देती है जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़े का कैंसर और हृदय रोग। प्रदूषण फेफड़ों को प्रभावित करता है जिसके कारण संपूर्ण श्वसन तंत्र प्रभावित होता है।
 
*कारों, बसों, ट्रकों और अन्य वाहनों के प्रदूषण से 80% फेफड़े की बीमारियां होती हैं।
 
*इससे अंधापन और सुनने में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। लंबे समय के बाद प्रदूषण के कारण आनुवंशिक विकृति भी पैदा हो सकती है।
 
*प्रदूषण और राख के छोटे कण भी त्वचा से संबंधित बीमारियों का कारण बनते हैं।
 
*कुछ गैसें वायुमंडल तक पहुंच कर ओजोन परत की मोटाई को कम कर देती हैं। ओजोन परत अंतरिक्ष से हानिकारक किरणों को अवशोषित कर लेती है। ओजोन परत हमारे लिए ढाल के रूप में काम करती है लेकिन जब ओजोन की मोटाई में कमी होती है तो इससे त्वचा के कैंसर जैसी भयंकर बीमारी हो सकती है।
 
*वायु प्रदूषण इमारतों, धातुओं और स्मारकों के क्षय का कारण बनता है। ताजमहल भी मथुरा तेल रिफाइनरी द्वारा उत्पन्न खतरे से ग्रस्त है।
 
*वायुमंडल में कम ऑक्सीजन का स्तर भी जीवों के लिए घातक है क्योंकि ऑक्सीजन की कमी से जीवित प्राणियों में श्वसन की समस्याओं की उत्त्पति होगी।
 
*यातायात में ट्रैफिक जाम के दौरान घंटों प्रतीक्षा करने से बाहरी प्रदूषक आपकी कार को घेर लेता है जिससे दिल का दौरा पड़ने की वजह से मौत की संभावना बढ़ जाती है।
 
*उच्च यातायात वाली सड़कों के पास रहने वाले लोगों में वायु प्रदूषण से पैदा होने वाली बीमारियाँ जैसे कैंसर, हृदय रोग, अस्थमा और ब्रोन्काइटिस के होने का जोखिम अधिक रहता है।
 
*छोटे आकार और फेफड़ों की कम क्षमता के कारण बच्चें जहरीले वायु प्रदूषण के खतरे से अधिक पीड़ित होते हैं।
 
*वायु प्रदूषण से डॉल्फ़िन मछलियां भी प्रभावित होती हैं और वे ब्लैक फेफड़ों के रोग से ग्रस्त हो जाती हैं।
 
*रासायनिक पदार्थों और कारखानों से निकलने वाली गैसों का अवशोषण जानवरों, फसलों और पेड़ों पर बुरा प्रभाव डालता है।
 
*प्राकृतिक गैस जैसे स्वच्छ ईंधन प्रदूषण को कम करने का एक अच्छा विकल्प है। प्राकृतिक गैस पर्यावरण के लिए हानिकारक पदार्थ के कणों का बहुत कम मात्रा का उत्सर्जन करता है।
 
*प्राकृतिक गैस निश्चित रूप से सबसे साफ ज्वलनशील जीवाश्म ईंधन है। यह आसानी से उपलब्ध है और कम प्रदूषकों का उत्सर्जन करता है तथा वायु प्रदूषण के स्तर को भी कम रखता है। गैस जैसे कि सीएनजी, पीएनजी सस्ती हैं और फेफड़ों के लिए हानिकारक नहीं हैं।
 
*हम ईंधन के उपयोग को रोक नहीं सकते क्योंकि उद्योग का एक बड़ा हिस्सा उन पर चल रहा है लेकिन हम निश्चित रूप से स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का विकल्प चुन सकते हैं। जैसेकि इलेक्ट्रिक वाहन किसी भी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन नहीं करते हैं।
 
*2030 तक हवा प्रदूषकों द्वारा वातावरण इतना जहरीला हो जाएगा कि ऑक्सीजन किट के बिना जीवन मुश्किल होगा। लोग अपनी उम्र से कई वर्ष अधिक के दिखाई देने लगेंगे।
 
*कारखानों को शहरी क्षेत्र से दूर स्थापित किया जाना चाहिए और ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए कि धुआं के अधिकांश भाग को अवशोषित किया जाए और अवशिष्ट सामग्री और गैस अत्यधिक मात्रा में न मिल सके।
 
*वाहनों के ईंधन से निकलने वाले धुंए को कम से कम किए जाने का प्रयास होना चाहिए।
 
*धुआं रहित स्टोव और सौर ऊर्जा की तकनीक को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
 
*शहरों में अवशिष्ट पदार्थों के निपटान के लिए दक्ष सीवेज प्रणाली होना चाहिए।
 
*वायु प्रदूषण को रोकने के लिए बच्चों को जागृत किया जाना चाहिए।
 
*वायु प्रदूषण को कम करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक साइकिलिंग भी है।
 
*वायु प्रदूषण से खुद को बचाने के लिए लोगों को मास्क पहनना चाहिए।
 
*जरा एक बार सोचकर देखें कि हमें ऑक्सीजन किट लगा कर रात बितानी होगी। यदि हमें हर सांस के बारे में सावधानी बरतनी होगी तो क्या होगा? क्या हमारा जीवन कुछ किलोग्राम ऑक्सीजन तक ही सीमित नहीं होगा?