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Written By WD

पंडित मोतीलाल नेहरू : स्वतंत्रता आंदोलन के सहभागी

पंडित मोतीलाल नेहरू : स्वतंत्रता आंदोलन के सहभागी - Pandit Motilal Nehru
जन्म : 6 मई,1861
मृत्यु : 6 फरवरी 1931
पंडित मोतीलाल नेहरू का जन्म 6 मई, 1861 को आगरा में एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम गंगाधर था। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में मोतीलाल नेहरू ही एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी शानोशौकत भरी जिंदगी को ताक पर रखकर देश के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। उनकी पत्नी का नाम 'स्वरूप रानी' था तथा वे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता थे।

 
मोतीलाल नेहरू अपने समय के देश के शीर्ष वकीलों में से एक थे। उस समय वह हजारों रुपए की फीस लेते थे। लेकिन इसके साथ ही वे गरीबों की मदद करने में कभी पीछे नहीं हटते थे। वे उन गिने-चुने भारतीयों में से एक थे, जो पश्चिमी ढंग की शिक्षा पाने वाली प्रथम पीढ़ी में शामिल थे। वे अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के ज्ञाता थे। उन्होंने अरबी और फारसी भाषा की शिक्षा प्राप्त की थी।
 
वे पढ़ने-लिखने में अधिक ध्यान नहीं देते थे, लेकिन जब उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट की वकालत की परीक्षा दी तो सब आश्चर्यचकित रह गए। इस परीक्षा में उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त करने के साथ-साथ स्वर्ण पदक भी हासिल किया था। 
 
उनकी कानून पर पकड़ बहुत मजबूत थी। इस वजह से उनकी अध्यक्षता में सन् 1927 में साइमन कमीशन के विरोध में सर्वदलीय सम्मेलन ने एक समिति बनाई, जिसे भारत का संविधान बनाने का दायित्व सौंपा गया। इस समिति की रिपोर्ट को 'नेहरू रिपोर्ट' के नाम से भी जाना जाता है। तत्पश्चात उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत आरंभ की। वे 1910 में संयुक्त प्रांत (वर्तमान में उत्तरप्रदेश) विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए।
 
वे पश्चिमी रहन-सहन और विचारों से बहुत प्रभावित थे, लेकिन गांधीजी के संपर्क में आने के बाद उनके जीवन में एक बड़ा परिर्वतन आया। उन्होंने गांधीजी के आह्वान पर 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग गोलीकांड के बाद वकालत छोड़ दी।
 
अगले पेज पर पढ़ें, मोतीलाल नेहरू की विशेष बातें... 

वि‍शेष बातें : -  वे 1919 और 1920 में दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।  सन् 1923 में देशबंधु चितरंजन दास के साथ मिलकर स्वराज पार्टी का गठन किया।

 
फिर सेन्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली पहुंचकर विपक्ष के नेता बने।
उन्होंने आजादी के आंदोलन में भारतीय लोगों के पक्ष में इंडिपेंडेट अखबार भी चलाया।
 भारत की आजादी की लड़ाई के लिए कई बार जेल भी गए।
 6 फरवरी, 1931 लखनऊ, उत्तरप्रदेश में उनका निधन हुआ।