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लाला लाजपत राय : महान स्वतंत्रता सेनानी

लाला लाजपत राय : महान स्वतंत्रता सेनानी - Lala Lajpat Rai
आजीवन विद्रोह के स्वर मुखरित करने वाले होनहार भारत-भक्त लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को फिरोजपु‍र जिले के ढुडिके ग्राम में हुआ था।
 
लाला जी सही मायने में क्रांतिकारी थे। वे क्रांति के द्वारा भारत की स्वतंत्रता चाहते थे, भिक्षु बनकर नहीं। इसलिए उदारवादी कांग्रेसियों से उनकी न पटी। 
 
किशोरावस्था में स्वामी दयानंद सरस्वती से मिलने के बाद आर्य समाजी विचारों ने उन्हें प्रेरित किया। आजादी के संग्राम में वे तिलक के राष्ट्रीय चिंतन से भी बेहद प्रभावित रहे। बाल-लाल-पाल त्रयी के स्वतंत्रता आन्दोलन में संकलित राष्ट्रीय योगदान में लाला लाजपत राय का सम्माननीय स्थान है।

लाला जी कोलकाता के विशेष अधिवेशन (1920) के अध्यक्ष रहे। 
 
1905 में लाजपत राय गोखले के साथ कांग्रेस प्रतिनिधि के रूप में इंग्लैंड गए और वहां की जनता के सामने भारत की आजादी का पक्ष रखा। 1907 में पूरे पंजाब में उन्होंने खेती से संबंधित आन्दोलन का नेतृत्व किया और वर्षों बाद 1926 में जिनेवा में राष्ट्र के श्रम प्रतिनिधि बनकर गए।
 
लालाजी 1908 में पुनः इंग्लैंड गए और वहां भारतीय छात्रों को राष्ट्रवाद के प्रति जागृत किया। उन्होंने 1913 में जापान व अमेरिका की यात्राएं की और स्वदेश की आजादी के पक्ष को जताया। उन्होंने अमेरिका में 15 अक्टूबर, 1916 को 'होम रूल लीग' की स्थापना की।
 
नागपुर में आयोजित अखिल भारतीय छात्र संघ सम्मेलन (1920) के अध्यक्ष के नाते छात्रों को उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ने का आह्वान किया। 1921 में वे जेल गए। 30 अक्टूबर, 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन विरोधी जुलूस का नेतृत्व करने के दौरान राय गंभीर रूप से घायल हुए और 17 नवंबर, 1928 को उनका निधन हुआ। 
 
उनकी मौत का बदला लेने के लिए ही भगतसिंह, सुखदेव एवं राजगुरु ने सांडर्स की हत्या की थी।