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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

आधुनिक भारत का रहस्य-1

आधुनिक भारत का रहस्य-1 -
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1850 से 1950 के बीच भारत में सैंकड़ों महान आत्माओं का जन्म हुआ। राजनीति, धर्म, विज्ञान और सामाजिक क्षेत्र के अलावा अन्य सभी क्षेत्र में भारत ने इस काल खंड में जो ज्ञान पैदा किया उसका गूँज अभी भी दुनिया में गूँज रही है। हम जानते हैं कि दर्शन और धर्म के क्षेत्र में कौन महान आत्माएँ हो गई है।

(1) जे. कृष्णमूर्ति : उन्हें अष्टावक्र और बुद्ध का नया संस्करण कहना गलत होगा। जे. कृष्णमूर्ति सिर्फ जे. कृष्णमूर्ति ही थे। जॉर्ज बर्नाड शॉ, एल्डस हक्सले, खलील जिब्रान, इंदिरा गाँधी आदि अनेक महान हस्तियाँ उसके विचारों से प्रभावित थीं। जे. कृष्णमूर्ति का जन्म 11 मई 1895 को मदनापाली आंध्रप्रदेश के मध्यम वर्ग के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 91 वर्ष की उम्र में 1986 में अमेरिका में उनका निधन हो गया।

(2) ओशो रजनीश : ओशो रजनीश को जीवन संबंधी उनके विवादास्पद विचारों, सेक्स और धर्म की आलोचना करने के कारण अमेरिका की रोनाल्ड रीगन सरकार देश निकाला दे दिया था। उनके शिष्यों का मानना है कि अमेरिका उन्हें जहर दिया गया था। वे जीवनभर पाखंड के खिलाफ लगातार लड़ते रहे। दुनिया के तमाम धर्म व राजनीति तथा विचारकों, मनोवैज्ञानिकों आदि पर उनके प्रवचन बेहद सार‍गर्भित और गंभीर माने जाते हैं।

उन्होंने ध्यान की कई विधियाँ विकसित की हैं जिसमें 'सक्रिय ध्यान' की विश्वभर में धूम है। दुनियाभर में हैरि पोटर्स के बाद उनकी पुस्तकों की बिक्री का नम्बर आता है, जो दुनिया की लगभग सभी भाषा में प्रकाशित होती हैं। दुनियाभर में उनके अनेक आश्रमों को अब मेडिटेशन रिजॉर्ट कहा जाता है। 11 दिसंबर 1931 को उनका जन्म मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा में हुआ। 21 मार्च को उन्हें संबोधी घटित हुई। 19 जनवरी 1990 को पूना में उन्होंने देह छोड़ दी।

(3) महर्षि अरविंद : 5 से 21 वर्ष की आयु तक अरविंद की शिक्षा-दीक्षा विदेश में हुई। 21 वर्ष की उम्र के बाद वे स्वदेश लौटे तो आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारी विचारधारा के कारण जेल भेज दिए गए। वहाँ उन्हें कष्णानुभूति हुई जिसने उनके जीवन को बदल डाला और वे 'अतिमान' होने की बात करने लगे। वेद और पुराण पर आधारित महर्षि अरविंद के 'विकासवादी सिद्धांत' की उनके काल में पूरे यूरोप में धूम रही थी। 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में उनका जन्म हुआ और 5 दिसंबर 1950 को पांडिचेरी में देह त्याग दी।

(4) स्वामी प्रभुपादजी : इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णाकांशसनेस अर्थात इस्कॉन के संस्थापक श्रीकृष्णकृपाश्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी के कारण ही पूरे विश्व में 'हरे रामा, हरे कृष्णा' का पवित्र नाम गूँज उठा। अथक प्रयासों के बाद सत्तर साल की उम्र में न्यूयॉर्क में कृष्णभवनामृत संघ की स्थापना की। न्यूयॉर्क से शुरू हुई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा जल्द ही विश्व के कोने-कोने में बहने लगी। 1 सितम्बर 1896 को कोलकाता में जन्म और 14 नवम्बर 1977 को वृंदावन में 81 वर्ष की उम्र में उन्होंने देह छोड़ दी।

(5) स्वामी विवेकानंद : विवेकानंद को युवा सोच का संन्यासी माना जाता है। अमेरिका के शिकागो शहर में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासम्मेलन में सनातन धर्म पर उनके द्वारा दिए गए भाषण और वेदांत के प्रचार-प्रसार के कारण उन्हें विशेष रूप से जाना जाता है। उन्होंने ही 'रामकृष्ण मिशन' की स्थापना की थी। नरेन्द्रनाथ दत्त अर्थात विवेकानंद का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को हुआ। 4 जुलाई 1902 को कोलकाता में ही उन्होंने देह त्याग दी।

(6) रामकृष्ण परमहंस : विवेकानंद के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस एक सिद्ध पुरुष थे। हिंदू धर्म में परमहंस की पदवी उसे ही दी जाती है जो सच में ही सभी प्रकार की सिद्धियों से युक्त सिद्ध हो जाता है। उनका पूरा जीवन कठोर साधना और तपस्या में ही बीता। रामकृष्ण ने पंचनामी, बाउल, सहजिया, सिक्ख, ईसाई, इस्लाम आदि सभी मतों के अनुसार साधना की। बंगाल के हुगली जिले में स्थित कामारपुकुर नामक गाँव में रामकृष्ण का जन्म 20 फरवरी 1836 ईस्वी को हुआ। 16 अगस्त 1886 को महाप्रयाण हो गया।

(7) दयानंद सरस्वती : स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 में एवं मृत्यु 30 अक्टूबर 1883 में हुई। बारह वर्ष की आयु में उन्होंने मथुरा के स्वामी विरजानंद से दीक्षा ग्रहण की तथा उन्हीं की आज्ञा से 1875 को आर्य समाज की स्थापना की। स्वामीजी के आर्य समाज का उद्देश्य सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों में सुधार लाना था।

स्वामीजी ने हिंदू धर्म में व्याप्त अंधविश्वास व कुरीतियों को दूर करने के लिए सतत प्रयास किया, जैसे-मूर्ति-पूजा, अवतारवाद, बहुदेव, पूजा-आरती, रात्रि कर्म, तंत्र-मंत्र और अंधविश्वासी धार्मिक पाठ, कथावाचन आदि। हिंदुओं के लिए वेद को छोड़कर कोई अन्य धर्मग्रंथ प्रमाण नहीं है। हिंदूजन वेदों को छोड़कर पुराणपंथी सोच में जीने लगे हैं, जो कि धर्म विरुद्ध मनमाना आचरण है। उन्होंने वेदों का भाष्य कर 'सत्यार्थ प्रकाश' नामक किताब की रचना की। धर्म परिवर्तन कर चुके हिंदुओं को पुन: हिंदू धर्म में लाने के लिए उन्होंने शुद्धि आंदोलन चलाया।

(8) एनी बेसेंट : 1 अक्टूबर 1847 को एनी का जन्म लंदन में हुआ। 1889 को मादाम ब्लावाटस्की से मिलने के बाद जुलाई 1921 में पेरिस में आयोजित प्रथम थियोसॉफिकल वर्ल्ड कांग्रेस की अध्यक्ष बनाई गईं। 16 नवम्बर 1893 में भारत को अपना कर्मक्षेत्र बनाया। 24 दिसंबर 1931 को अड्यार में अपना अंतिम भाषण दिया। 20 सितंबर 1933 को शाम 4 बजे 86 वर्ष की अवस्था में अड्यार चेन्नई में देह त्याग दी। एनी का मानना था कि धर्म सिर्फ वेदांत में ही उल्लेखित है। वेदांत ही सच्चा ज्ञान है।

(9) श्रीराम शर्मा आचार्य : शांति कुंज के संस्थापक श्रीराम शर्मा आचार्य ने हिंदुओं में जात-पात को मिटाने के लिए गायत्री आंदोलन की शुरुआत ‍की। सभी जातियों के लोगों को बताया कि ब्राह्मणत्व प्राप्त कैसे किया जाए। जहाँ गायत्री के उपासक विश्वामित्र ने कठोर तप किया था उसी जगह उन्होंने अखंड दीपक जलाकर हरिद्वार में शांतिकुंज की स्थापना की। गायत्री मंत्र के महत्व को पूरी दुनिया में प्रचारित किया। आपने वेद और उपनिषदों का सरलतम हिंदी में श्रेष्ठ अनुवाद किया।

20 सितम्बर, 1911 आगरा जिले के आँवलखेड़ा गाँव में जन्म हुआ। अखण्ड ज्योति नामक पत्रिका का पहला अंक 1938 की वसंत पंचमी पर प्रकाशित किया गया। अस्सी वर्ष की उम्र में उन्होंने शांतिकुंज में ही देह छोड़ दी। उनकी पत्नी भगवती देवी शर्मा ने उसने कार्य में बराबरी से साथ दिया। शांतिकुंज, ब्रह्मवर्चस, गायत्री तपोभूमि, अखण्ड ज्योति संस्थान एवं युगतीर्थ आँवलखेड़ा जैसी अनेक संस्थाओं द्वारा युग निर्माण योजना का कार्य आज भी जारी है।

(10) महर्षि महेश योगी : भावातीत ध्यान के प्रणेता महर्षि महेश योगी के आश्रम अनेक देशों में हैं। मशहूर रॉक बैंड बीटल्स के सदस्यों के साथ ही वे कई बड़ी हस्तियों के आध्यात्मिक गुरु थे। महर्षि महेश योगी ने योग के सिद्धांतों पर आधारित 'ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन' (अनुभवातीत ध्यान) के जरिये दुनियाभर में अपने लाखों अनुयायी बनाए।

महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1917 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गाँव में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि ली थी। नीदरलैंड्स स्थित उनके घर में 91 वर्ष की आयु में 6 फरवरी 2008 को उनका निधन हो गया। उनका मूल नाम महेश प्रसाद वर्मा था।

(11) सत्य साँई बाबा : सत्य साँई बाबा को शिर्डी के साँई बाबा का अवतार माना जाता है। विश्वभर में इनके आश्रम 'प्रशांति निलयम' की प्रसिद्धि है। प्रशांति निलायम का अर्थ होता है शांति प्रदान करने वाला स्थान। उन्होंने आंध्रप्रदेश में कई सामाजिक कार्य किए हैं, जैसे गरीब और पिछड़े इलाकों में हास्पिटल, स्कूल और कॉलेज के अलावा जल मुहैया कराना आदि। सत्य साँई बाबा से सभी जाति और धर्म के लोग जुड़े हुए हैं। उनकी दृष्टि में सभी का मालिक एक ही है। विदेशों में साँई के लाखों भक्त हैं। सत्य साँई बाबा का जन्म 23 नवंबर 1926 को आंध्रप्रदेश के पुट्टपर्ती के पास स्‍थित एक गाँव में हुआ था। इस वक्त बाबा की उम्र 83 वर्ष की हो चली है लेकिन आज भी वे ध्यान और दर्शन के लिए प्रशांति हॉल में नियमित आते हैं।

(12) माँ अमृतामयी : माता अमृतामयी को उनके भक्त प्यार से 'अम्मा' कहते हैं। प्रेम की मूर्ति माता का संदेश है सिर्फ 'प्रेम करो, मदद करो'। अम्मा का जन्म केरल के गरीब मछुआरे इलाके में 1953 को हुआ। उनके पिता मछली बेचा करते थे। उनका मूल नाम सुधामणि है। बचपन से ही अम्मा के मन में भगवान कृष्ण के प्रति लगन लग गई थी। वे कृष्ण के भजन गाती थीं और नृत्य करती थीं। वे कई घंटे ध्यान करतीं तथा कृष्ण की प्रार्थना में ही लीन रहती थीं। उनकी माता के बीमार होने के बाद घर का कार्य वही सम्भालती थीं। माँ की बीमारी और गरीबी के अलावा उन्होंने जीवन के सभी दर्द को देखा कि कैसे गरीबी में लोग जी रहे हैं।

गरीबों के लिए अम्मा ने नि:स्वार्थ सेवा की। मलेशिया, श्रीलंका, बर्मा और अफ्रीका आदि अनेक मुल्कों के गरीब लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए अम्मा ने अथक प्रयास किया। अम्मा ने कभी भी सेवा की आड़ में धर्मांतरण या धन जुटाने का कार्य नहीं किया। अम्मा का मिशन सांप्रदायिक नहीं है। उनका मिशन तो यही है कि किस तरह गरीब के चेहरे पर मुस्कान हो, क्योंकि अम्मा ने खुद गरीबी का दर्द झेला है। भूकंप से पीड़ित, बाढ़ से पीड़ित या दंगों से पीड़ित सभी लोगों के पास अम्मा सहज ही पहुँच जाती हैं।

(13) मेहर बाबा : सूफी, वेदांत और रहस्यवादी दर्शन से प्रभावित मेहर बाबा एक रहस्यवादी सिद्ध पुरुष थे। कई वर्षों तक वे मौन साधना में रहे। 25 फरवरी 1894 में मेहर बाबा का जन्म पूना में हुआ। 31 जनवरी 1969 को मेहराबाद में उन्होंने देह छोड़ दी। उनका मूल नाम मेरवान एस. ईरानी था।- क्रमश: