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Last Updated : बुधवार, 17 सितम्बर 2014 (16:23 IST)

भोग से हुए रोग की औषधि योग है - मोरारी बापू

भोग से हुए रोग की औषधि योग है - मोरारी बापू - भोग से हुए रोग की औषधि योग है - मोरारी बापू
काम दर्शन पर अपने प्रवचन को आगे बढ़ाते हुए रामचरितमानस संत मोरारी बापू ने आज बुधवार को कहा कि आदमी बहुत भोग करता है तो रोग का जोखिम बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि यह मान्यता सही नहीं है कि पूरा भोग लेने से काम खत्म हो जाता है। उनके प्रवचन में योग गुरु बाबा रामदेव की उपस्थिति ने आज काम दर्शन की चर्चा को एक नया मोड़ दे दिया। मोरारी बापू ने काम दर्शन में योग के महत्व की चर्चा की। उन्होंने बाबा रामदेव को संजीवनी की संज्ञा दी। 
 
मोरारी बापू कहते हैं- यह कहना कतई सही नहीं है कि पूरा भोग लेने से काम की अग्नि शांत हो जाती है। बल्कि आदमी जितना भोगता है यह आग उतनी ही भड़कती है। यही जीवन सत्य है। जो अत्यंत कामुक व्यक्ति होता है उसकी कामुकता बढ़ती ही चली जाती है, कभी कम नहीं होती। कामाग्नि प्रज्वलित होती चली जाती है। लेकिन काम की मात्रा कम हो और उस पर स्नेह रूपी घी की बारिश कर दो तो अग्नि शांत हो सकती है। यही निष्काम होने का तरीका है ।
 
मोरारी बापू कहते हैं- भोग का अतिरेक आदमी को रोगी बनाता है। अति विषय भोग के नतीजे को उन्होंने एक शेर कह कर समझाया- मजे तुमने उड़ाए हैं, मुसीबत कौन झेलेगा। उन्होंने आगे कहा- अब सवाल उठता है- भोग से आए रोग का शमन कैसे हो। तो हमारे यहां एक अद्भुत उपाय आया है- वह है योग। ओशो ने पतंजलि को वैसे ही अंतरजगत का वैज्ञानिक नहीं कहा है। शरीर और मन के रोग को मिटाने की अद्भुत औषधि है योग। इसी योग में एक स्थान है ध्यान का। 
 
उन्होंने कहा कि ध्यान अभियंतर स्नान है। योग के संदर्भ में उन्होंने दुनिया के लिए बाबा रामदेव के अद्भुत योगदान की चर्चा की। उन्होंने कहा कि बाबा रामदेव के पास आज की दुनिया के लिए संजीवनी बूटी है। मोरारी बापू के बाद बाबा रामदेव ने भी श्रोताओं को योग का महत्व समझाया।   
 
मोरारी बापू ने कृष्ण की दिनचर्या के सहारे ध्यान के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कृष्ण सुबह उठते ही सबसे पहले ध्यान करते थे। सुखद संयोग है कि मेरी दिनचर्या भी ध्यान से ही शुरू होती है। ध्यान के बाद स्नान, स्नान के बाद गूढ़ मंत्र का जाप, फिर स्वस्ति वाचन, यज्ञ एवं मंगल स्पर्श के रूप में मोर पंख को स्पर्श करते थे। मोरारी बापू ने कहा कि यह मोर पंख निष्कामता का प्रतीक है। कृष्ण ने बांसुरीसहित अपने सभी उपादान अपनों में बांट दिए लेकिन मोर पंख व्यास नारायण को दिया ताकि वे इस मोर पंख की कलम से कृष्ण के चरित्र को घर-घर में बसा सकें।
 
मोरारी बापू ने काम दर्शन में बुद्ध की सम्यकता के सिद्धांत को भी रेखांकित किया। बुद्ध ने आराम, आहार, व्यायाम, नींद सबमें सम्यकता को जरूरी बताया। मेरा मानना है कि सबकी सम्यकता निजी होती है। कोई दो-3 घंटे सोकर भी 24 घंटे का आनंद उठा लेता है तो कोई 24 घंटे सोकर प्रमाद में उठता है। 
 
मोरारी बापू ने बताया कि काम तत्व को लेकर उनके पास कई जिज्ञासाएं भी आ रही हैं। उन्होंने कहा कि काम दर्शन पर प्रवचन- व्याख्यान सुन लेना ठीक है लेकिन यह देखना ज्यादा जरूरी है कि काम का अपने जीवन में क्या सत्य है। ऐसा नहीं किया तो व्याख्यान सुनना निरर्थक है। इसे मुरारी बापू ने एक जोकर का उदाहरण देते हुए समझाया। 
 
उन्होंने कहा- सर्कस का वह जोकर दूसरों को हंसाने को लेकर बेहद चर्चित था। वह खाली वक्त में एक ग्रंथालय गया और आत्महत्या पर किताब मांगी। ग्रंथपाल को लगा इतना स्वस्थ सुंदर व्यक्ति आत्महत्या क्यों करना चाहता है। वह नहीं जानता था कि किताब मांगने वाला वही जोकर है। सो उन्होंने कहा कि तुम्हें किताब की जरूरत नहीं, सुना है सर्कस में एक जोकर है जो बहुत हंसाता है। जाओ सर्कस देख लो वह जोकर तुम्हारा अवसाद दूर कर देगा। इसलिए व्याख्यान सुनने के बाद सबको इस बात की व्याख्या जरूर करनी चाहिए कि उनके अपने जीवन का काम सत्य क्या है।