बुधवार, 17 अप्रैल 2024
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Written By WD

सुधीर कुमार सोनी की कविताएं

Poems in Hindi | सुधीर कुमार सोनी की कविताएं
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* भाषा

मजबूरी
भाषा बदल देती है
अभिमान
बहुत सी परिभाषा बदल देते हैं....

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* सृष्टि एक कल्पना

हम सभी अचम्भित हैं
कि इस नीले आसमान के ऊपर क्या होगा
किस पर टिकी है यह धरती
हलचल है कब से इन समन्दरों में
सब कुछ बंद किताब सा है
वह बंद किवाड़ है
जो फिर न खुल सकेगा

सोचता हूं
कब पहली बार लाल सुबह
पंख फड़फड़ाती धरती पर उतरी होगी

कैसा लगा होगा धरती को
जब पहली बार
उसने धूप को ओढ़ा होगा

कब पहली बार
हवा की किताब के पहले पन्ने खुले होंगें
और धरती के पोर-पोर मैं
गुनगुनाई होगी हवा

कब पहली बार
आकाश से मोतियों की तरह
नन्ही-नन्ही बूंदें गिरी होंगी

कैसा लगा होगा
किसी नन्हे पौधे को
मिट्टी के भीतर से उगना पहली बार

आंख भर आई होगी धूप की
जब पहली बार अगले दिन के लिए
शाम की लालिमा के साथ वह लौटी होगी

कब पहली बार
मानव की रचना कर
पृथ्वी पर उतारा गया होगा

कब पहली बार
किसी कन्या ने गर्भ धारण किया होगा
और कहलाई होगी मां

कब पहली बार
आदमी का मौत से हुआ होगा
साक्षात्कार
जो उसकी सोच में भी नहीं था

कब पहली बार
अस्तित्व में आई होगी लकीरें
और आदमी के माथे की परेशानियां बनी होगी

कब पहली बार
लकीरें उठ खड़ी हुई होंगी
और आदमी ने धरती को बांटा होगा
जिसका बांटा जाना बंद होने के
अब सारे रास्ते बंद हैं।


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* पेड़

मैंने
कागज पर लकीरें खिचीं
डाल बनाई
पत्ते बनाए
अब कागज पर
चित्र लिखित सा पेड़ खड़ा है
पेड़ ने कहा
यह मैं हूं
मुझ पर काले अक्षरों की दुनिया रचकर
किसे बदलना चाहते हो

मैंने
रंगों से कपड़ों में
कुछ लकीरें खींचीं
डाल बनाई
पत्ते बनाए
अब
कपड़े पर छपा पेड़ है
पेड़ ने कहा
यह मैं हूं
मुझे नंगा कर
किसे ढंकना चाहते हो

यह जो तुम हो
पेड़ ने कहा
यह भी मैं हूं
सांसों पर रोक लगाकर
किसे जीवित रखना चाहते हो।


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* शब्द

प्रेम की भाषा से
दो शब्द
कहे गए
और संतुष्ट हो गया वह

शब्दों की
बौछारों के साथ
वार्ता शुरू हुई
भाषा तीखी थी
सारा खुलासा हो गया
पर
किसी को सन्तुष्टि नहीं मिली
सवाल वहीं के वहीं थे

कुछ शब्द
अपमानजनक भाषा में कहे गए
दूरियां बढ़ी
सीमा विवाद हुआ
तोपों /बारुदों के साथ
जंग हुई
लाशों के ढेर लग गए
शहर खंडहर में तब्दील हो गया

इतने विनाशकारी तत्व भी
शामिल हैं
भाषा तुम्हारे शब्दों में...