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मैं एक कठिन प्रेमिका हूँ
अमिता प्रजापति मैं एक कठिन प्रेमिका हूँ मैं करना तो चाहती हूँ बहुत प्यार पर रूठ जाती हूँ बार-बार मैं चीखने लगती हूँ तब जब झूठ के काकरोच मेरी पगथलियों के नीचे आ जाते हैंया चढ़ना चाहते हैं मेरी अँगुलियों पर मुझे अच्छे लगते हैं सच के फूल बौरा देती है मुझे विश्वास की वेणियाँ मैं अपनी छत से वह आसमान देखना चाहती हूँ जहाँ चाँद पके मन की तरह खिला हो पूरा मेरा मान एक भरी गगरी की तरह मेरे सर रखा होता है जिसे नहीं फोड़ा जा सकता कपट के कंकरों से नहीं उतारा जा सकता छल भरी मुस्कराहटों से हालाँकि मैं चाहती हूँ छलछला कर बह जाए, भिगो दे मुझे मेरा ही मान या उतार लिया जाए इसे सहेज कर स्व की बलिष्ठता के सहारेमैं एक कठिन प्रेमिका हुँ मुझे प्रेम करते रहना बहुत मुश्किल है...