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पाब्लो नेरूदा की प्रेम कविता : मेरी दोस्त, मैं अकेला

पाब्लो नेरूदा की प्रेम कविता : मेरी दोस्त, मैं अकेला - पाब्लो नेरूदा की प्रेम कविता : मेरी दोस्त, मैं अकेला
ढंक देता है प्रकाश अपनी मरणशील दीप्ति से तुम्हें
अनमने फीके दुख खड़े हैं उस राह
सांझ की झिलमिली के पुराने प्रेरकों के विरुद्ध
वे लगाते चक्कर तुम्हारे चारों तरफ


 

 
वाणी रहित, मेरी दोस्त, मैं अकेला
अकर्मण्य समय के इस एकांत में
भरा हूं उमंग और जोश की उम्रों से,
इस बरबाद दिन का निरा वारिस
 
सूर्य से गिरती है एक शाख से लदी, तुम्हारे गहरे पैरहन पर
रात की विशाल जड़ें अंकुआतीं तुम्हारी आत्मा से अचानक
तुममें छिपी हर बात आने लगती है बाहर फिर से
ता‍कि तुम्हारा यह नीला-पीला नवजात मनुष पा सके पोषण!
 
ओ श्याम-सुनहरे का फेरा लगाने वाले वृत्त की
भव्य, उर्वर और चुम्बकीय सेविका
उठो, अगुवाई करो और लो अधिकार में इस सृष्टि को
जो इतनी समृद्ध है जीवन में कि इसका उत्कर्ष नष्ट हो जाने वाला है
और यह उदासी से भरी है।
 
पाब्लो नेरूदा : प्रेम कविताएं