गुरुवार, 28 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. काव्य-संसार
  4. poem on women

हिन्दी कविता : देह हूं मैं ...

हिन्दी कविता : देह हूं मैं ... - poem on women
देह हूं मैं 
प्राणों से भरी , 
अहसासों से भरी
देह हूं मैं 
जब छूते हो मुझे
मेरी अनुमति के बिना
कांप सी जाती हूं 
तुम्हारे अनचाहे स्पर्श से
थरथरा सी जाती हूँ
वो स्पर्श कचोटता है 
चुभता है 
चुभन से तड़प जाती हूं मैं
कभी देह का होना 
विचलित कर देता है
बाह्य दैहिक आवरण में
आंतरिक पीड़ा को तुम
घोट देते हो 
वो पीड़ा शरीर ही नही
आत्मा को भी छलनी कर
नासूर सा घाव दे जाती है
क्यों ?  क्यों? हैं तुम्हे
सिर्फ देह की लालसा
क्यों ह्रदय की कोमलता 
को महसूस नही करते तुम ?
एक नाजुक पंखुड़ी को
कठोर स्पर्श से क्यों 
मसल देते हो ?
क्यों एक खिले फूल को
छिन्न-भिन्न कर देते हो ?
समझो मुझे, मेरी पीड़ा को
मैं देह हूं तुम्हारे लिए
पर प्राणों का संचार 
अनुभूति, अहसास से
परिपूर्ण हूं मैं 
मत मसलो, मत कुचलो,
हैवानियत से मुझे
देह मेरी भी है तो
देह तुम्हारी भी है
महसूस करो पीड़ा
देह तुम्हारी भी है।