बसंत कविता - श्रृंगारित जब धरा लगे
श्रृंगारित जब धरा लगे, महके पुष्पों से लहर उठे
भंवरे गाएं गीत मिलन के, सुखद सुहानी पवन चले
नर्म सुनहरी मोहक धूप, छू के मन जो लहक उठे
फिर पंक्षी भी करें विहंग जब, मन के संग जग चहक उठे
खिले-खिले पलाश केसरिया, खिले बाग में गेंदा और गुलाब
हरियाली की चादर में फिर, पुष्प के संग तृण बहक उठे
बासंती सब यहां वहां हो, बासंती चहुं दिशा लगे
बासंती रंग में रंग करके, बसंत बाग जग महक उठे