बुधवार, 24 अप्रैल 2024
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Written By WD

कविता : राष्ट्र ही परिवार है

कविता : राष्ट्र ही परिवार है - poem
ओमप्रकाश चन्देल
इबादत हो या प्रार्थना, आत्मा की आवाज है, 
मन अपना पवित्र रखो, जीवन एक सौगात है ।
कुरान पढ़ो या गीता, मानवता ही आधार है, 
चरितार्थ करो जीवन में, तब ग्रंथों का सार है ।।

 
पंडित हो या शेख, रचा वो चित्रकार है,
रंग-रूप पर मत जाना, परमात्मा निराकार है ।
काबा हो या प्रयाग, प्रेम की बहती धार है,
अस्त्रों की जगह नहीं, सब जगह तिरस्कार है ।
 
मंदिर हो या मस्जिद, जीवन के संस्कार हैं ।
धर्म की लड़ाई ना करें, राष्ट्र  ही परिवार है।।