शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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Written By WD

भूकंप की त्रासदी पर कविता : धरती की अंगड़ाई ने...

भूकंप की त्रासदी पर कविता : धरती की अंगड़ाई ने... - Poem
सविता व्यास 
 
धरती की हल्की सी अंगड़ाई ने  
कितने घरों को जमींदोज कर दिया है 
कितने बेगुनाहों को जिंदा दफन कर दिया है
पर क्या सिर्फ घर टूटे हैं यहां? 
क्या सिर्फ शरीर दफन हुए हैं यहां? 
नहीं ... 

 
टूटे हैं सपने उस पिता के 
जिन्हें संजोया था उसने 
अपने बच्चों के भविष्य संवारने के लिए 
टूटे हैं सपने उस मां के 
जिसने बच्चों को अच्छा इंसान बनाने का सोचा था 
टूटे हैं सपने उन नन्हों के 
जिन्होंने खुले आकाश में उड़ान भरने का सोचा था 
टूटे हैं सपने दादा-दादी के 
जिन्होंने नाती-पोतों को दुलारने की ख्वाहिश की थी 
टूटे हैं विश्वास और आस्था के तार 
जो हमने जोड़ रखे थे उससे 
सौंप दी थी जिस पर हमने अपनी रक्षा की बागडोर 
शर्मिंदा हैं हमारे 
प्रार्थना के वह शब्द 
जो  हम अपनों की सलामती के लिए कहते थे 
नम है हमारी श्रद्धा की आंखें 
सपने, आस्था और विश्वास की कब्र देखकर...