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हिन्दी कविता : पगडंडी...
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
टेढ़ी-मेढ़ी
धूल-धूसरित रौंदी-सी
तल्ख धूप से
कृशकाय
असहाय
बेचारी पगडंडी।
निपट मूर्ख-सी
सहती
गर्मी-वर्षा-शीत
फिर भी
सबकी मीत
बेचारी पगडंडी।
अनचाही घासों से
अटी-पटी
कभी कलंकित
कभी सुशोभित
कभी बिलखती
कभी प्रफुल्लित
निभाती रहती रीत
बेचारी पगडंडी।
देखी!
सबकी हार-जीत
समय के साथ बदलती भक्ति
अस्मिता का संकट
आंकड़ों का लफड़ा
सुनी!
उनकी चिल्ल-पों
चाहकर भी
समझ न पाई गीत
बेचारी पगडंडी।
बदल गए राही
जन-जीवन
ऊंच-नीच
अल्हड़पन
नहीं बदली
अपनी प्रीत
बेचारी पगडंडी।