गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. काव्य-संसार
  4. Kavi Sammelan
Written By
Last Updated : रविवार, 22 मार्च 2015 (02:37 IST)

अंधेरे वक़्त में लफ़्ज़ों ने किया चराग़ाँ

अंधेरे वक़्त में लफ़्ज़ों ने किया चराग़ाँ - Kavi Sammelan
-दिनेश 'दर्द' 
 
शब्द कहें या लफ़्ज़, एक ही बात है। गीत कहें या ग़ज़ल, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। न कभी उर्दू ने गीतों और कविताओं के मस्तक पर चमकने से इंकार किया और न ही हिन्दी ने ग़ज़लों और नज़्मों की पेशानी पर सँवरने से असहमति जताई। जब भी मौका मिला उर्दू और हिन्दी, दोनों बहनों ने झूम कर गलबहियां कीं। एक मंच पर आईं, तो अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियां निभाते हुए, अपने-अपने पलड़े बख़ूबी सम्हाले और महफ़िल को संतुलन के साथ उत्कर्ष तक पहुँचाया। कभी उर्दू किसी मौके पर दस्तार बनी, तो हिन्दी ने क़श्क़ा खींचा और कभी हिन्दी ने दस्तार का दायित्व निभाया, तो उर्दू तिलक बनकर चमक उठी। इस दौर में जहाँ एक-दूसरे के विश्वास और अपनेपन पर पासवर्ड रूपी ताले पड़े हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने अदब के सहारे हमेशा उर्दू और हिन्दी नामक चाबियों से इन तालों को खोलने की कोशिश की है। फिर चाहे वो सालगिरह का मौका हो या कोई और अवसर, उन्होंने हर बार अदब की महफ़िलें आरास्ता कीं और अंधेरे वक़्त में लफ़्ज़ों के उजालों से चराग़ाँ किया है।
उज्जैन में ऐसी ही एक कोशिश, अंधेरे और उजाले के क्षितिज पर, नित भोर का स्वागत करने के लिए निकल पड़ने वाले बुज़ुर्गों की संस्था, 'संग साथ' ने की। इस कोशिश का यह पाँचवा बरस था। इसके तहत संस्था ने अपने सदस्य, मनोहर बैरागी का जन्मदिन, अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं मुशायरा आयोजित कर मनाया। जगह थी, कालिदास संस्कृत अकादमी परिसर स्थित भरत विशाला मुक्ताकाश मंच।
 
इब्तिदाई रस्म, शाइरा लता 'हया' ने वरिष्ठ कवि बालकवि बैरागी की अध्यक्षता में सरस्वती वंदना कर निभाई। इससे पहले कलाकार सुदर्शन अयाचित ने नृत्य के माध्यम से 'शिव स्तुति' की। फिर, संचालन कर रहे धार के कवि संदीप शर्मा ने पूरे 'कॉन्फिडेंस' से पहले कवि के रूप में उदयपुर के राव अजातशत्रु को आवाज़ लगाई। हास्य-व्यंग्य के इस सिपाही ने गणेश वंदना के माध्यम से भ्रष्ट राजनेताओं पर कटाक्ष किए। उन्होंने पढ़ा कि, 'प्यारी कुर्सी मुझे भी दिलवा दो, ओ गणपति बप्पा मोरिया...'। इस निशाने से जयललिता सहित राजनीति के कई और नाम घायल हुए। इसके अलावा उन्होंने पुलिस विभाग के खामियाँ बताते हुए, उन पर भी व्यंग्य बाण छोड़े। साथ ही आसाराम और निर्मल बाबा को भी निशाना बनाया। शहीद को लेकर उन्होंने एक गंभीर बात कही, उन्होंने कहा कि 'शहीद मरता नहीं, शहीद विदा होता है'।
 
साहिल पे लाके कोई दग़ा दे गया मुझे : अगली आवाज़ पर मंच की सबसे कमसिन और मक़ामी शाइरा, शबनम अली जल्वागर हुईं। उन्होंने अपने जज़्बात यूँ बयाँ किए कि-
 
तुझको महसूस करूँ और तेरी ख़ुशबू आए,
आईना देखना चाहूँ, तो नज़र तू आए
मेरे मालिक तू मुझे इश्क़ में पागल कर दे,
अब न जज़्बात पे मेरे कोई क़ाबू आए।
 
एक ग़ज़ल तरन्नुम में भी पेश की। कुछ मिसरे पढ़ते चलें-
 
दुनिया को क्या बताऊँ कि क्या दे गया मुझे,
रातों को जागने की सज़ा दे गया मुझे
कश्ती मेरी भँवर से निकल आई थी मगर,
साहिल पे लाके कोई दग़ा दे गया मुझे।
 
प्रेम प्रदर्शन का नहीं, दर्शन का विषय है : अबकी बार संचालक की आवाज़ पर वर्तमान समय में व्यंग्य के सुपरिचित नाम संपत 'सरल' लिक्खा था। अजातशत्रु के बाद जयपुर से आयातित संपत सरल ने अव्यवस्थाओं पर और भी तीक्ष्ण प्रहार किए। और तो और उन्होंने नेताओं और तमाम भ्रष्टतंत्र पर निशाना साधा ही, साथ ही बिजली कटौती, राशिफल, उठावना के अलावा पत्रकारिता को भी आईना दिखाया। उन्होंने आजकल किसी भी मुद्दे को लेकर टीवी चैनलों पर होने वाली बहसों का संधान किया। साथ ही यह कहते भी नहीं चूके कि, आजकल पत्रकारिता की दुनिया में अख़बार पढ़ने वाले 'पाठक' नहीं, बल्कि 'ग्राहक' हो गए हैं। साथ ही नसीहत भी दी, 'यह पीढ़ी कबीर-मीरा और तुलसी को पढ़ेगी, तो जान सकेगी कि प्रेम 'प्रदर्शन' का नहीं अपितु 'दर्शन' का विषय है। पश्चात व्यंग्य की एक विस्तृत गद्य रचना 'वे भी क्या दिन थे', सुनाई। हालाँकि इसी दौरान अहमदाबाद निवासी पत्रकार पद्मश्री देवेंद्र पटेल का सम्मान किया गया।
 
ज़रूरत एक तवायफ है, शराफ़त छीन लेती है : इस मर्तबा शहर के ही बड़े शाइर डॉ. ज़िया राना को दावते सुख़न दी गई। और उन्होंने सामिईन का पूरा-पूरा ख़याल रक्खा।
 
ज़रूरत एक तवायफ है, शराफ़त छीन लेती है,
ग़रीबी हर भले इंसा से इज़्ज़त छीन लेती है
बस इतना ध्यान रखना कि किसी का दिल नहीं टूटे,
ज़रा सी चूक बरसों की इबादत छीन लेती है।
 
डॉ. राना की शाइरी का सिलसिला यहीं नहीं रुका। उन्होंने शाइरी के दीवानों की तश्नालबी का ख़ूब पास रक्खा और एक से एक मानिख़ेज़ अशआर के सोते बहा दिए।
 
कोई भी हिन्दुस्तान से बड़ा नहीं हो सकता : फिर वीर रस के कवि आशीष 'अनल' ने माइक सम्हाला, और ऐसा सम्हाला कि फ़ज़ा में हरारत पैदा कर दी। उन्होंने कविता के माध्यम से एक बच्चे की उत्तर पुस्तिका दिखाई, जिसमें बच्चे से 'वीरता के तीन पर्यायवाची' पूछे गए थे। बच्चे ने पहला पर्यायवाची 'साहस' (जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान) लिखा, दूसरा पर्यायवाची 'पराक्रम' (प्रताप का स्वाभिमान लिख दिया) और वीरता का तीसरा पर्यायवाची याद न होने पर 'हिन्दुस्तान' लिख दिया। इस रचना ने ख़ूब दाद पाई। इसके अलावा उन्होंने अन्य रचनाओं के साथ ख़ासी फरमाइश पर अपनी प्रमुख रचना 'तिरंगा' सुनाई। साथ ही ताकीद किया कि 'कोई भी हिन्दुस्तान से बड़ा नहीं हो सकता।
 
 
ख़र्च होता रहा मुहब्बत में : इस बार अपनी रचना, 'माई' के लिए देश-दुनिया में पहचाने जाने वाले रामपुर के शाइर, ताहिर फ़राज़ की बारी थी। उनके शे'र तो शे'र, आवाज़ के उतार-चढ़ाव का जादू भी सर चढ़कर बोलता है। 
 
इब्तिदाई कुछ अशआर के बाद, जिस शे'र पर महफ़िल वाह कर उट्ठी, वह था-
 
आपस में किसी बात पे लड़ सकते हैं हम लोग,
सरहद की हिफ़ाज़त पे क़दम साथ रहेंगे।
 
फिर दिलकश तरन्नुम में उन्होंने एक के बाद एक कई कलाम पेश किए। छोटी बहर की एक ग़ज़ल गुनगुनाते चलें-
 
जो मिला उससे गुज़ारा न हुआ,
जो हमारा था, हमारा न हुआ
 
हम किसी और से मंसूब हुए,
क्या ये नुकसान तुम्हारा न हुआ
 
बेतकल्लुफ़ भी वो हो सकते थे,
हमसे ही कोई इशारा न हुआ
 
ख़र्च होता रहा मुहब्बत में,
फिर भी इस दिल को ख़सारा न हुआ
 
दोनों एक-दूसरे पे मरते रहे,
कोई अल्लाह को प्यारा न हुआ।
 
ऐसा कोई मुशायरा नहीं, जिसमें उन्हें अपनी नज़्म 'माई' और गीत 'बहुत ख़ूबसूरत हो तुम' पढ़े बिना निजात मिल जाए। लिहाज़ा, यहाँ भी नहीं मिली। और उन्होंने जहाँ मुहब्बत भरे गीत 'बहुत ख़ूबसूरत हो तुम...', से सामिईन को रूमानी कर दिया, वहीं 'माई' नज़्म सुनाकर न जाने कितनी ही पत्थर आँखों के किनारे भिगो दिए।
 
लोग सोएं चैन से, बस इसलिए सोता नहीं : इस बार आईपीएस अधिकारी व कवि पवन जैन ने अपने पुलिस विभाग की पीड़ाओं पर ध्यान खींचा और अपनी चिर-परिचित पंक्तियाँ सुनाईं-
 
बंद हों थाने के पट, ऐसा कभी होता नहीं,
लोग सोएं चैन से, बस इसलिए सोता नहीं
कर्मपथ में है मिले, मुझको मगर काँटे बहुत,
आदमी हूँ कैसे कह दूँ, मैं कभी रोता नहीं।

दुश्मन की चिंता ये ही है, हम हर हमले पर सम्हले हैं : साथ ही कुछ और रचनाओं के अलावा शहीद सैनिक पर केंद्रित एक अन्य महत्वपूर्ण कविता 'अंतिम इच्छा' सुनाई। इसी माहौल को बनाए रखने के लिए एक अन्य पुलिस अधिकारी व ख्यात कवि चौ. मदन मोहन 'समर' को आमंत्रित किया गया। उन्होंने आते ही अपने असि-मसि धर्म की व्याख्या करते हुए हुंकार भरे स्वर में 'राष्ट्र आराधना' की। उन्होंने आवेगपूर्ण स्वर में पढ़ा कि-
 
राष्ट्र की आराधना, आराधना करें सभी,
ये राष्ट्र हो प्रबल-सबल, ये प्रार्थना करें सभी
 
पश्चात, रचना 'जागो' के माध्यम से उन्होंने पढ़ा कि-
 
ये वक़्त बहुत ही नाज़ुक है, हम पर हमले दर हमले हैं,
दुश्मन की चिंता ये ही है, हम हर हमले पर सम्हले हैं
सैनिक सीमा साधे रहना, हम भीतर देश बचाएंगे,
तुम कसम निभाना सरहद पर, हम नमक चुकाएंगे।
 
एक और महत्वपूर्ण रचना 'तीर्थयात्रा' के माध्यम से उन्होंने युवाओं से संपर्क साधा। उन्होंने बताया कि एक हिन्दुस्तानी के सच्चे तीर्थस्थान वो हैं, जहाँ आज़ाद, भगत सिंह, लाला लाजपत राय, सुभाषचंद्र बोस, रानी लक्ष्मीबाई आदि जैसे मतवाले वीरों ने जन्म लिया या प्राण त्यागे। इस क्रम में उन्होंने अंडमान, इलाहाबाद, लाहौर की कोट लखपत राय जेल, जलियाँवाला बाग, कटक, झाँसी, कारगिल आदि स्थानों पर शीष नवाने हेतु प्रेरित किया।
 
चंद लम्हे मेरा ग़म बाँट लिया करते हैं : इस घमासान के बीच मुंबई से आमंत्रित अदाकारा व शाइरा लता 'हया' मुख़ातिब हुईं, लेकिन उनका लहजा भी तेवर लिए था। तमाम क़तआत सुनाने के बाद उन्होंने नज़्म 'पूछ रही हूँ हिन्दुस्तान' से क़ब्ल एक ग़ज़ल से नवाज़ा और पढ़ा-
 
मैं ग़ज़ल हूँ, मुझे जब आप सुना करते हैं,
चंद लम्हे मेरा ग़म बाँट लिया करते हैं
लोग चाहत की किताबों में छुपा कर चेहरा,
सिर्फ जिस्मों की ही तहरीर पढ़ा करते हैं
 
अबकी बार सबको माइक पर बुला रहे कवि संदीप शर्मा को खड़ा होना पड़ा। मगर हास्य रचनाओं के लिए पहचान रखने वाले संदीप शर्मा ने इस बार एक बहुत ही संजीदा रचना 'आदमी' सुनाई और दाद भी ख़ासी बटोरी।
 
धन्य कर दो इस सदी को : प्रोग्राम को अंजाम तक पहुँचाया 84 साल के 'युवा' रचनाकार बालकवि बैरागी ने। उनकी ऊर्जा और सकारात्मकता के समक्ष नत् हो तमाम मंचस्थ कवियों ने उन्हें बारहा कविता की यूनिवर्सिटी कह कर उनका एहतिराम किया। उन्होंने रचना पाठ तो किया ही, साथ ही निराश-हताश लोगों को किसी उपदेशक की भाँति जीवन का महत्व भी समझाया। साथ ही एक दार्शनिक के अंदाज़ में बताया कि, 'ग़रीबी अभिशाप नहीं, बल्कि ईश्वर की सबसे क़ाबिल बेटी है, जो आदमी को इंसान बनाती है।' उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण रचनाएँ पढ़ीं। कुछ पर नज़र डालते हैं-
 
मत करो परवाह कोई क्या कहेगा,
इस तरह तो वक़्त का दुश्मन सदा निर्भय रहेगा
सब्र का ये बांध तुमने पूछकर किससे बनाया,
वो कौन है जिसने तुम्हें इतना सहन करना सिखाया
तोड़ दो ये बांध, बहने दो नदी को।
दाँव पर ख़ुद को लगाकर,
धन्य कर दो इस सदी को।
 
एक अन्य अर्थपूर्ण कविता की कुछ पंक्तियाँ भी कितना कुछ सिखाती हैं, देखिए-
 
एक बाती के लिए, जो उम्र भर जिंदा रहा,
और वो भी ना मिली, तो खिन्न शर्मिंदा रहा
उसी दीप से कह रहा हूँ, इस तरह रोओ नहीं,
अमूल्य है ये जीवन, तुम कायरता में खाओ नहीं
लक्ष्य को साधे बिना, दुनिया नहीं बदल पाएगी, 
बस आग को जिंदा रखो, तो बातियाँ मिल जाएंगी।
 
बालकवि का रचना पाठ संपन्न होते-होते घड़ियाँ 3.25 का संकेत दे रही थीं। साथ ही मौजूद जनसमूह आयोजन की सफलता पर मुहर लगा रहा था। लौटते-लौटते अनेक श्रोता कवियों और शाइरों से बात-मुलाक़ात कर अपनी-उनकी कह-सुनकर, बढ़ चले थे। और वही रास्ता, जो कुछ घंटे पहले कालिदास अकादमी के मुक्ताकाशी मंच तक पहुँच रहा था, अब लौटते वक़्त शहर के अनेक हिस्सों की ओर बँट गया था। और अंधियारे-उजियारे के इस क्षितिज पर लौटने वाले, लौट चले थे हृदय में कविताओं का उजाला भरकर भोर की तरफ।