होली-गीत : रंगों का उत्सव...
देखो रे सखी फाल्गुन आ गया
हर तरफ उल्लास और आनंद छा गया।
होली गीत बजने लगे
आमों के पेड़ में बौर लगने लगे
गेंहू की कोपलें दूधिया दिखने लगी
कोयल पेड़ों पर चहकने लगी
रंग भरे पिचकारी नंदलाल खड़े है
गोपियों के संग ब्रज में होली खेल रहे है
वातावरण है प्रफुल्लित
रोम-रोम है थिरक रहा
सृष्टि है रोमांचित
हर एक पुष्प निखर रहा
चारों तरफ अबीर और
गुलाल का रंग है
वातावरण में जैसे किसी ने
घोल दिया भंग है
इस होली के उत्सव को
सब मिल कर मनाओ
बुराई को मन से मिटाओ
और होलिका जलाओ।