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हिन्दी कविता : ओ बदसूरत...

हिन्दी कविता : ओ बदसूरत... - Hindi Poems
- इतिश्री सिंह राठौर (श्री)
 

 
लोग कहते हैं न सूरत है न सीरत
बेबसी की बस है मूरत
ओ बदसूरत
 
यह सच है कि अल्लाह ने मुझे फुर्सत से नहीं बनाया
किसी बंदे की पाक कुव्वत के लिए नहीं बनाया
 
लोग कहते हैं न सूरत है न सीरत
बेबसी की बस है मूरत
ओ बदसूरत
 
बदसूरत होते हुए भी बाबूजी का गुरूर हूं अम्मा की हूं आस
मन बहलाने के लिए नहीं बुझाई किसी की प्यास
दुनिया के लिए हो सकती हूं बदसूरत
 
मां-बाबूजी के लिए प्यारा है मुखड़ा मेरा
कहते हैं चांद निहारने की जरूरत नहीं
जब तू है चांद का टुकड़ा हमारा
 
लोग कहते हैं न सूरत है न सीरत
बेबसी की बस है मूरत
ओ बदसूरत
 
खुदा का शुक्र है नहीं बनाया मुझे खूबसूरत
वरना बन जाती किसी की हवस
अस्मिता लूटने के बाद हर जगह होती इस बात पर बहस
 
तमाम बहसों के बाद सर उठाकर जी नहीं पाती मैं बेबस
अच्छा है खूबसूरत नहीं हूं मैं
बदसूरत फिर भी लोग कहते हैं
 
लोग कहते हैं न सूरत है न सीरत
बेबसी की बस है मूरत
ओ बदसूरत।