काव्य संसार : दामन का दाग...
दामन के दाग को।।
आंसुओं से धो रही हूं।।
कोसती हूं उसको।।
दिन-रात रो रही हूं।।
लोक-लाज के दर पर।।
कोख की विशेषताएं।।
आगे जब देखती हूं।।
अंधकार ही दिखाए।।
लोगों के ताने सुन-सुन।।
दिन-रात खो रही हूं।।
उसका अता-पता नहीं।।
रहा न ठिकाना।।
सोचती हूं आगे क्या
कहेगा जमाना।।
ख्वाबों को अपने गम संग।।
पल-पल कोसती हूं।।
चिंता से घटा शरीर है।।
सूख गई है काया।।
समझ सकी कुदरत।।
कैसी तुम्हारी माया।।
बुझने न पाए दीप मेरा।।
बला को रोकती हूं।।