शनिवार, 20 अप्रैल 2024
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कविता : जन-जन की सांसों में बसता

कविता : जन-जन की सांसों में बसता - Himalaya poem
जन-जन की सांसों में बसता।
सीमा पर खड़ा हिमालय है।।


 
क्रूर शब्द कोई गरज सके न।
भारत का प्रेम संभाले है।।
 
कटुक बचन को टूर रही।
कटुता का भाव नहीं उपजे।।
नफरत नालायक कर जाते हैं।
मूल्यवान है ज्ञान को सिरजे।।
 
गंगे मां भारत में बहती।
यहीं पे तो मेघालय है।।
 
कुछ भ्रष्ट हुए हैं पाखंडीगण।
सच्चाई सच बतलाती है।।
कर्मों का फल भोग रहे हैं।
पर आंखें उनकी शर्माती हैं।।
 
श्रीकृष्ण यहां पर रास रचे थे।
यहीं पे तो विद्यालय है।।