बनकर नदी जब बहा करूँगी
अजन्ता शर्मा
बनकर नदी जब बहा करूँगी,तब क्या मुझे रोक पाओगे?अपनी आँखों से कहा करूँगी,तब क्या मुझे रोक पाओगे?हर कथा रचोगे एक सीमा तकबनाओगे पात्र नचाओगे मुझेमेरी कतार को काटकर तुमएक भीड़ का हिस्सा बनाओगे मुझेमेरी उड़ान को व्यर्थ बताहँसोगे मुझपर, टोकोगे मुझेएक तस्वीर बता, दीवार पर चिपकाओगे मुझे,पर जब...अपने ही जीवन से कुछ पल चुराकरमैं चुपके से जी लूँ!तब क्या मुझे रोक पाओगे?तुम्हें सोता देख,
मैं अपने सपने सी लूँ!एक राख को साथ रखूँगी,अपनी कविता के कान भरूँगी,तब क्या मुझे रोक पाओगे?जितना सको प्रयास कर लो इसे रोकने का,इसके प्रवाह का अन्दाज़ा तो मुझे भी नहीं अभी! साभार : स्वर्ग विभा