गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
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Written By रवींद्र व्यास

बहारों की छत हो, दुआओं के खत हो

संगत में इस बार कौसर मुनीर का गीत और आधारित पेंटिंग

बहारों की छत हो, दुआओं के खत हो -
Ravindra VyasWD
हर प्रेमी की यह ख्वाहिश होती है कि वह जिसे चाहता है वह उसके साथ कुछ दूर तक चले। हर प्रेमी यह खयाल करता है कि वह जिसे चाहता है वह उसके सपनों की दुनिया में उसके साथ कुछ देर चले। घूमें और उड़े। जब प्रेम हो जाता है तो दुनिया हसीन हो जाती है। सपनों से भरी हो जाती है। रातें तारों भरी और चाँदनी भरी हो जाती है। जाहिर है हर प्रेमी चाहेगा कि उसका प्रेम उसका हाथ में हाथ लेकर चल पड़े...कहीं दूर...सपनों की दुनिया में। एक हरियाली और एक सपनीली दुनिया में। जहाँ वे पल दो पल के लिए छिप जाएँ। इस खूबसूरत को खयाल को कौसर मुनीर ने फिल्म टशन के एक गीत में खूबसूरत लफ्जों का लिबास पहनाया है। यह लिबास मुलायम है, नाजुक है और नीले आसमान में किसी पीले दुपट्टे की तरह लहराता है।

इसकी शुरुआती पंक्तियाँ ये हैं-

फ़लक तक चल साथ मेरे, फ़लक तक चल साथ चल
ये बादल की चादर
ये तारों के आँचल
में छुप जाएँ हम, पल दो पल
फ़लक तक चल....

यह एक दुनिया से दूसरी दुनिया में चलने की एक पुकार है। प्यार भरी पुकार है। उस दुनिया से दूर जहाँ लोग एक दूसरे की आत्मा को कुचल रहे हैं, और किसी स्पर्धा में भागे चले जा रहे हैं। हाँफते-दौड़ते। यह एक प्रेमी है जो कह रहा है मेरे साथ फलक तक चल। लेकिन कहाँ? वहाँ जहाँ बादल की चादर और तारों का आँचल हो। इसी हसीन दुनिया में कुछ पल के लिए छिप जाने का यह सुंदर ख्वाब भी है, तमन्ना भी है। यह तमन्ना पूरी हो रही है। वे चल पड़े हैं और वे एक ऐसे प्यार भरे मुकाम पर पहुँच चुके हैं जहाँ चाहत की बूंदें उनके सभी सपनों को सच कर दे।

देखो कहाँ आ गए हम सनम साथ चलके
जहाँ दिन की बाँहों में रातों के साए हैं ढलते
चल वो चौबारे ढूँढें जिन में चाहत की बूंदें
सच कर दे सपनों को सभ

कितना खूबसूरत खयाल है कि जहाँ दिन की बाँहों में रातों के साए ढलते हैं और इसी मुकाम पर प्रेमी विश्वास कर रहा है कि इस मुकाम पर वह आँखे मींचे पीछे-पीछे चल सकता है। यहाँ प्यार के अंधे होने की बात नहीं बल्कि एक दूसरे के प्रति अथाह प्यार में सहज ही विश्वास कर लेने की बातें हैं। इसीलिए आँखें मीचे पीछे- पीछे चल देने की बातें हैं। एक दूसरे के प्रति मोहब्बत का यह अलग अंदाज है। वहाँ बहारों की छत और दुआओं के खत की बात है और मोहब्बत की ग़ज़ल को गुनगुनाते रहने की बात है।

आँखों को मीचे-मीचे मैं तेरे पीछे-पीछे
चल दूँ जो कह दे तू अभी
बहारों की छत हो, दुआओं के खत हो
पढ़ते रहें ये ग़ज़ल
फ़लक तक चल....

प्रेम ऐसा रोशन खयाल है कि देखने का नजरिया बदल जाता है। मंजर बदल जाता है। मन की और बाहरी दुनिया भी बदल जाती है। एक मखमली अहसास बना रहता है। आप वह देखने लगते हैं जो पहले कभी नहीं देखा। मोहब्बत ऐसा ही अपूर्व अहसास कराती है। गीतकार आगे कहता है-

देखा नहीं मैंने पहले कभी ये नज़ारा
बदला हुआ सा लगे मुझको आलम ये सारा
सूरज को हुई है राहत रातों को करे शरारत
बैठा है खिड़की पर तेरी
हाँ..इस बात पर चाँद भी बिगड़ा, कतरा कतरा वो पिघल
भर आया आँखों में मेरी
तो सूरज बुझा दूँ , तुझे मैं सजा दूँ
सवेरा हो तुझ से ही कल
फ़लक तक चल साथ मेरे ...

मोहब्बत हुई तो जाहिर है आलम बदला हुआ लगता है। इसमें चाँद-तारे-सूरज सब बदले हुए दिखाई देते हैं। और ऐसे में यह ख्वाहिश कि सूरज को बुझाकर तुझे मैं सजा दूँ और सवेरा हो तुझसे ही कल। फलक तक चल साथ मेरे। इसे सुनिए और फलक तक घुम आइए।