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Written By WD

10,000 नामों के अद्भुत संग्रह 'नामायन' का विमोचन

10,000 नामों के अद्भुत संग्रह 'नामायन' का विमोचन - Book Of Hindi Name
शैली अजमेरा 
   
घर में नन्हा मेहमान आने की खबर केवल केवल भावी माता-पिता को ही हर्षित नहीं करती बल्कि दादा-दादी, नाना-नानी, बुआ, मौसी जैसे हर रिश्ते को रोमांचित कर देती है...और शुरू होता है सिलसिला यह सोचने का कि बच्चे का नाम क्या होगा। हर किसी की चाहत होती है कि बच्चे का नाम केवल सुंदर ही नहीं बल्कि सरल एवं अर्थपूर्ण भी हो। ‘नवजात का क्या नाम रखें’, इसके लिए परिवार के लोग खूब मशक्कत करते हैं। 
 
 इंटरनेट खंगालने से लेकर रिश्तेदारों के बच्चों के नामों से प्रेरणा तक लेते हैं लेकिन सोचिए हजारों नाम आपको महज एक किताब में मिल जाए तो हो जाएगी ना नवजात शिशु के नामकरण की प्रक्रिया बेहद आसान? 


 
यही कर दिखाया है वरिष्ठ लेखिका एवं भूतपूर्व प्राचार्या श्रीमती त्रिवेणी पौराणिक ने उनकी किताब ‘नामायन’ में। 
 
यह 10,000 से अधिक सार्थक भारतीय नामों का द्विभाषीय कोष है, जहां न केवल नाम सुझाए गए हैं बल्कि उसके अर्थ भी बताए गए हैं। इस अनूठे संग्रह में संचित सामग्री वर्षो की लगन और परिश्रम का परिणाम है। 
 
इंदौर स्थित आनंद मोहन माथुर सभागृह में नामों की इस अनोखी फुलवारी ‘नामायन’ का लोकार्पण समारोह आयोजित हुआ। कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रभु जोशी ने कहा -'अक्सर कहा जाता है नाम में क्या धरा है, लेकिन सच तो ये है कि नाम में क्या नहीं धरा है। इसमें धर्म, वर्ग, दृष्टि सभी कुछ तो है।  
 
जैसे ही कोई अच्छा नाम मिलता, पंहुचती थी मम्मी के पास  
 
कार्यक्रम की शुरुआत हुई डॉ. किसलय पंचोली के उद्बोधन से, जो श्रीमती त्रिवेणी की बेटी होने के साथ, इस किताब की प्रेरणा भी हैं। वे कहती हैं कि मम्मी कई लोगों को अच्छा और सार्थक नाम तलाशने में मदद करती थी। इस कड़ी में मुझे भी जब कोई अच्छा नाम मिलता तो में तुरंत उसे मम्मी को नोट करवा देती। धीरे-धीरे मां का संकलन बढ़ता गया और हमें विचार आया नामों की इस सार्थक किताब को प्रकाशित करवाने का। 
   
दिमाग से वृद्ध नहीं होना चाहती
 
श्रीमती त्रिवेणी ने कहा की मैं भाषा विज्ञानी या भाषा शास्त्री नहीं हूं, लेकिन बचपन से ही किताबें पढ़ने का माहौल मिलने की वजह से भाषा और विविध प्रकार के साहित्य अध्ययन में मेरी रूचि रही है। वे बताती हैं कि एक बार स्कूल में ‘अच्छी हिन्दी शीर्षक से आचार्य श्री रामचन्द्र की किताब क्या पढ़ ली, मुझे हर जगह हिन्दी में गलत ढंग से लिखे शब्द खटकने लगे। उनका कहना है कि हम अपने नाम का अर्थ पहचानेगें तो ही हमें हमारी विरासत का बोध होगा। वर्तमान पीढ़ी न व्याकरण के नियमों की परवाह करती है और न ही शब्दों का अर्थ जानती है। 
 
 
आजकल हिन्दी को देवनागरी में न लिखकर रोमन लिपि में लिखा जा रहा है, जिसकी वजह से भौंडे उच्चारण होने लगे हैं। ऐसा करने से हिन्दी भाषा भ्रष्ट हो रही है। प्रतिदिन काम आनेवाले हिन्दी के शब्दों को हम भूल गए हैं। 
 
श्रीमती त्रिवेणी ने कहा कि ‘किसी भी भाषा को जानना या पढ़ना गलत नहीं है, लेकिन आसपास के लोक जीवन एवं भारतीय साहित्य को जानना जरुरी है। 
 
अपनी किताब को लेकर वे कहती हैं- इस किताब को लिखने में मैंने परिश्रम नहीं किया, बल्कि मुझे खूब आनन्द आया। मुझसे जब कोई नाम देने ले लिए कहता है तो अच्छा लगता है। मैं इसे माइंड गेम मानती हूं। शरीर से वयोवृद्ध हो सकती हूं लेकिन दिमाग से वृद्ध नहीं होना चाहती। 
 
पुस्तक प्रकाशन के एक और अहम किरदार पेशे से जानेमाने चिकित्सक और लेखिका के सुपुत्र डॉ. अपूर्व पौराणिक है । वे कहते हैं - मैं विज्ञान का विद्यार्थी, शोधार्थी और शिक्षक हूं। नामों की पुस्तक की प्रक्रिया से अपनी दिलचस्पी से जुड़ा रहा। इस दौरान मेरे मन में नामों को लेकर कई शोध प्रश्न उठे। हालांकि इनके उत्तर मैं नहीं खोज पाया, लेकिन मुझे लगता है की यह प्रश्न है बेहद रोचक- 
 
जैसे - 
 
- नामों की आवृति क्या है, कौन सा नाम ज्यादा चलन में है?  
- जाति और वर्ग में कौन सा नाम ज्यादा चलन में है?  
- नामों का रूप कैसा होता है और इसे नापने का पैमाना क्या है?  
- नाम परिवर्तन के पीछे के कारण 
- नामों की ग्राह्यता
- नाम से क्या फर्क पड़ता है?  
- किस नाम के लोग अधिक सफल या असफल रहे? 
 
नाम संसार तक ले जाते हैं, संसार आप तक आता है 
 
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में कवि-प्राध्यापक डॉ. आशुतोष दुबे ने कहा कि नामों को लेकर इतना वैज्ञानिक चित्रण और गहन अध्ययन विस्मय में डालने वाला है। वे कहते हैं कि समय के साथ नामों में भी बदलाव आते रहे हैं। पहले लोग मोहन, श्याम, जगदीश जैसे पौराणिक नाम रखते थे, वहीं 70-80 के दशक में रोशन, दीपक जैसे साहित्यिक नामों का असर दिखने लगा। 90 के दशक में बहुत सारे राहुल और बहुत सारी सिमरन देखने को मिलीं।  जो रूपहले पर्दे का असर था। इससे पता चलता है कि नामों का ताल्लुक सांस्कतिक परिवेश, संस्कृति और सामाजिकी से है।

डॉ. दुबे कहते हैं कि हालांकि वर्तमान में हमारे युवाओं को फर्क नहीं पड़ता है कि उनके नाम  का अर्थ क्या है? वे सिर्फ ध्वनि का ध्यान रखते हैं लेकिन नाम के अर्थ को छोड़ना यानि भाषा और संस्कृति को छोड़ना है। इस तरह से हम अपनी जड़ों से कटते हैं और निराधार हो जाते हैं। नाम को हलके में नहीं लिया जा सकता क्यूंकि इससे आप संसार तक जाते हैं और इसी से संसार आप तक आता है। 
 
 राम-राम के लिए रामायण, नाम-नाम के लिए नामायन    
मुख्य अतिथि के तौर पर जानेमाने पत्रकार और भाषाशास्त्री डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने कहा कि बहुत कम समारोह ऐसे होते हैं जिनमे जाकर आत्मा प्रसन्न होती है। बौद्धिक दृष्टि से इतने सुंदर समारोह इंदौर तो क्या दिल्ली में भी देखने को नहीं मिलते। जो ग्रन्थ श्रीमती त्रिवेणी ने लिखा है, वह अभूतपूर्व है। ऐसा ग्रन्थ मेरे देखने में नहीं आया। यह ग्रन्थ उनकी नही बल्कि हिन्दी भाषा की उपलब्धि है।  
 
डॉ. वैदिक ने ‘नामायन’ के लिए कहा कि जैसे राम के लिए रामायण का महत्व है उसी तरह से नाम के लिए नामायन का महत्व है। किसी को भी सार्थक नाम ढूंढना है, व्याकरणसम्मत नाम ढूंढना है, सही उच्चारण वाले नाम ढूंढना है, तो यह पुस्तक पढ़ना अनिवार्य है। अपनी भाषा में नाम रखने से भाषा का, जीवन का और जीवन के व्यवहार का श्री गणेश होता है। 
 
डॉ. अपूर्व पुराणिक की प्रशंसा में डॉ. वैदिक ने कहा कि मैं यह देखकर आश्चर्यचकित हूं कि विज्ञान के क्षेत्र का व्यक्ति भी भारतीय दर्शन और शास्त्र की इतनी गहरी समझ रखता है। 
 
दे सकते हैं उपहार स्वरुप 
किताब में हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, पारसी, पौराणिक, एतिहासिक, बॉटनिकल प्रकार के कई नाम सुझाए गए हैं। साथ ही कई नए नाम भी रचे और गढ़े गए हैं। ‘नाम’ व्यक्ति विशेष का परिचय ही नहीं होता बल्कि कुटुंब संबंधी और जन्मदाताओं से जोड़ने वाली कड़ी भी है। इस लिहाज से शादी, गोद भराई या नामकरण के अवसर पर दिया जाने वाला यह उपयुक्त उपहार है। 
 
किताब की कुछ खासियत- 
- हर नाम का लिप्यंतरण देवनागरी व रोमन में
- वर्तनी की शुद्धता को बनाए रखने के लिए हिन्दी के शब्दों का अंग्रेजी में सही-सही रूपांतरण
- अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार अनुक्रमणिका 
- नामो के साथ कोष्ठक में लिंग सम्बन्धी सूचना
 
कार्यक्रम के अंत में आभार माना किंजल्क पंचोली ने।