शुक्रवार, 29 मार्च 2024
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Written By WD

आइए चलें शहीद भगतसिंह के गाँव खटकड़कलां

आइए चलें शहीद भगतसिंह के गाँव खटकड़कलां - Bhagat singh
राजकुमार भारद्वाज 
 
शहीद भगतसिंह के गाँव का रास्ता बता पाने में असमर्थ नवाँशहर के उस सिख युवक पर मुझे न कोई आश्चर्य हुआ और न ही किसी तरह का दु:ख। दरअसल, फतहगढ़ साहिब के माता गुजरी कॉलेज में पत्रकारिता के छात्रों से एक मुलाकात के दौरान इसी तरह का अनुभव हो चुका था। तीस से अधिक पत्रकारिता के छात्र-छात्राओं में सिर्फ एक छात्रा ही भारत माता के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले शहीद के गाँव का नाम बता पाई थी। 

देश को आजादी दिलाने में हजारों जवानों की कुर्बानी देने वाला पंजाब आज एक सोया हुआ प्रांत है। कई राज्यों की तुलना में यहाँ लोकसभा चुनाव का माहौल बहुत अधिक गरमा गया है लेकिन क्रांति के मुद्दे यहाँ दूर-दूर तक नहीं हैं। नाश्ते के लिए हम नवांशहर में रुके। चाय की एक दुकान पर एक सरदारजी ने ठेठ पंजाबी अंदाज में हमारे ड्राइवर को खटकड़कलाँ का रास्ता समझाया।
 
खैर! नवाँशहर से तकरीबन 15 मिनट का जाम पार करके हम खटकड़कलाँ के रास्ते पर बढ़ते हैं। खटकड़कलाँ की सड़क पर दोनों ओर गेहूँ के खेत हैं और दूर-दूर तक गेहूँ की बालियाँ और हरियाली ही हरियाली नजर आती है।
 
तकरीबन दस मिनट में हम आठ किलोमीटर दूर भगतसिंह के गाँव में पहुँच जाते हैं। गाँव के बाहर ही मुख्य मार्ग पर पंजाब सरकार द्वारा निर्मित शहीद भगतसिंह संग्रहालय है।

गाँव का विस्तार अब यहाँ तक हो गया है। संग्रहालय में घुसते ही भगतसिंह की एक बड़ी मूर्ति लगी हुई है, इसके नीचे पंजाबी और अँगरेजी में भगतसिंह के जन्म की तिथि, गाँव, उनकी माँ विद्यावती और पिता किशनसिंह का नाम लिखा है।

यह भी लिखा है कि वे कानपुर पढ़ने गए और बाद में क्रांतिकारी बन गए। बगल में ही उनके पिता किशनसिंह की समाधि है। एक हॉलनुमा कमरे में भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, माँ विद्यावती, पिता किशनसिंह, चाचा अजीतसिंह और कुछ दूसरे क्रांतिकारियों के चित्र लगे हैं।
 
बाहर एक पुस्तक बिक्री केंद्र है, छोटा-सा। यहाँ भगतसिंह के अलावा राजगुरु, सुखदेव, पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और कुछ दूसरे क्रांतिकारियों से संबंधित पुस्तकें बिक्री के लिए उपलब्ध हैं। राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह की अस्थियाँ भी यहाँ हैं।

संग्रहालय से लगभग 500 मीटर की दूरी पर है पुराना खटकड़कलाँ गाँव। गाँव में घुसते ही बीस मीटर की दूरी पर है भगतसिंह का पैतृक घर। पुरानी और छोटी ईंटों के बने इस बेहद परंपरागत घर में भगतसिंह के घर की दो पुरानी चारपाइयाँ और उनकी माँ विद्यावती का बेहद खूबसूरत पलंग है जिस पर उसे बनाने वाले का नाम और गाँव का नाम लिखा है।

एक कमरे में लकड़ी की दो अलमारियाँ और खेती-किसानी से जुड़ी हुई चीजें रखी हैं, भूसा इकट्ठा करने का जेलवा, बाल्टी आदि हैं तो दूसरे कमरे में फर्श पर बैठकर खाना खाने वाली डाइनिंग टेबल, कुछ बर्तन जिनमें परातें, थालियाँ, गिलास और चम्मच हैं।
 
पंजाब सरकार ने भगतसिंह के इस घर को भी संग्रहालय का रूप दे दिया है। खटकड़कलाँ के हर ग्रामीण को इस गाँव का होने पर गर्व है। भगतसिंह का व्यक्तित्व अपने आपमें इतना ग्लैमराइज्ड है कि उनके सामने बड़े-बड़े व्यक्तित्व छोटे लगते हैं।
 
देश के दूसरे हिस्सों की तरह यहाँ भी भगतसिंह बँटे हुए दिखते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि यहाँ भी वे मार्क्सवादी, लेनिनवादी, गाँधीवादी और दक्षिणपंथियों में बँटे हुए हैं। शहीदी दिवस पर यहाँ होने वाले कार्यक्रम में भी सब अपना-अपना राग अलापते हैं।