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Written By सुधीर शर्मा

सोशल नेटवर्किंग : नए समय का संवाद

सोशल मीडिया के प्रभाव-दुष्प्रभाव को रेखांकित करती पुस्तक

Social Networking : Book Review | सोशल नेटवर्किंग : नए समय का संवाद
इंटरनेट अब खबरें, जानकारियों और मनोरंजन का माध्यम नहीं रह गया है। इंटरनेट ने सोशल मीडिया नेटवर्किंग नाम के एक 'हथियार' को भी जन्म दिया है, जिससे किसी भी बड़े साम्राज्य का अंत बिना युद्ध के मैदान में जाए किया जा सकता है।

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ट्यूनीशिया में 20 साल पुराने तानाशाह अल अबीदीन बेल और मिस्र में होस्नी मुबारक का पतन इसका उदाहरण है। सिर्फ एक साधारण-सी लड़की के सोशल मीडिया पर एक संदेश से तहरीर चौक पर लाखों लोग जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने के लिए इकट्ठा हो गए।

भारत में अण्णा हजारे का आंदोलन भी सोशल मीडिया की उपयोगिता का एक उदाहरण माना जा सकता है। सोशल मीडिया ने लोगों के आपसी संवाद को भी बढ़ाया है। अब किसी भी विषय पर बहस करने के लिए लोगों को आपस में मिलकर बैठने की आवश्यकता नहीं है, वे सोशल मीडिया के मंच पर एक क्लिक से किसी भी विषय पर अपने विचार रख सकते हैं।

सोशल मीडिया पर मौजूद साइट्‍स फेसबुक, ऑरकुट, लिंक्डइन जैसी साइट्‍स हैं, जिस पर हर वर्ग, उम्र और समाज के लोग अपने विचार, संवाद करते हैं। फेसबुक तो लोकप्रियता में पहले पायदान पर है। आज का हर युवा बैंक में भले अपना अकाउंट न खुलवाए, लेकिन उसका फेसबुक पर अकाउंट जरूर होता है।

सोशल मीडिया के सकारात्मक पहलू हैं तो नकारात्मक पक्ष भी है। कई बार सोशल मीडिया पर डाली गई सामग्री अप्रियता की स्थिति खड़ी कर देती है। हाल ही में उप्र के मुज्फ्फरनगर में हुए दंगे को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।

सोशल मीडिया नेटवर्किंग के इन्ही उजले और अंधियारे पक्ष को उजागर करती है संजय द्विवेदी द्वारा संपादित पुस्तक 'सोशल नेटवर्किंग- नए समय का संवाद'। इस पुस्तक में देश के जाने-माने पत्रकारों, शिक्षाविदों और विचारकों के सोशल मीडिया नेटवर्किंग पर लिखे गए लेखों की एक माला है।

बृजकिशोर कुठियाला, प्रकाश हिन्दुस्तानी, डॉ. वृत्तिका नंदा, मधुसुदन आनंद जैसे पत्रकारों, शिक्षाविदों ने सोशल मीडिया नेटवर्किंग पर अपने दृष्टिकोण को प्रकट किया है। हर लेखक ने सोशल मीडिया की उपयोगिता के साथ उसके कुप्रभाव को भी बताया है। पांच लेख अंग्रेजी भाषा में भी हैं।

संजय द्विवेदी ने अपने संपादकीय में लिखा है कि सोशल मीडिया नेटवर्किंग आज हमारे जीने में सहायक बन गई है। डॉ. ‍वर्तिका नंदा ने 'फेसबुक के नाम एक पाती में' उससे दूरी बनाने के ‍कारणों को बताया है।

पुस्तक सोशल मी‍डिया नेटवर्किंग की उपयोगिता पर गहन चिंतन को प्रस्तुत करती है। पुस्तक पढ़कर यह समझा जा सकता है कि सोशल मीडिया नेटवर्किंग का उपयोग सावधानी से किया जाए तो यह एक वरदान है, वरना इसे भस्मासुर बनते देर नहीं लगेगी। पत्रकारिता के अभ्यागत छात्रों और पुराने सक्रिय धुरंधरों के लिए पुस्तक निश्चित रूप से पठनीय और संग्रहणीय है।

पुस्तक : सोशल नेटवर्किंग 'नए समय का संवाद'
संपादक : संजय द्विवेदी
प्रकाशक : यश पब्लिकेशन
मूल्य : 295 रुपए