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Written By WD

राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित मीडिया संबंधी पुस्तकें

जन-संचार संबंधी प्रमुख पुस्तकों की सूची

Mass Media Related Books | राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित मीडिया संबंधी पुस्तकें

प्रस्तुत है जाने माने प्रकाशन समूह राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित जनसंचार संबंधी प्रमुख पुस्तकों की सूचीः


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* फीचर लेखन : स्वरूप और शिल्प
लेखक : डॉ. मनोहर प्रभाकर

परिचय : यह पुस्तक अच्छे फीचर्स के उदाहरणों के साथ फीचर की प्रकृति, स्वरूप, सामग्री-स्त्रोत और लेखन-शिल्प आदि पहलुओं पर प्रकाश डालती है।


* आंचलिक संवाददाता
लेखक : सुरेश पंडित, मधुकर खेर

परिचय : यह पुस्तक एक अच्छे आंचलिक संवाददाता की सभी खूबियों को रेखांकित करती है।

* खेल पत्रकारिता
लेखक : सुशील दोषी
सुरेश कौशिक

परिचय : खेल के आनन्द को शब्दों के माध्यम से ऐसे पेश करना जिसमें खेल देखने से अधिक उसका समाचार पढ़ने में आनन्द आए, यही अच्छे खेल पत्रकार की विशेषता है। यह पुस्तक इसी खूबी की आधारभूत जानकारी देती है।

* समाचार सम्पादन
लेखक : कमल दीक्षित, महेश दर्पण

परिचय : सम्पादकीय व्यवस्था, सम्पादन की कसौटी, समाचार-पत्र आदि पर विशेष सामग्री से सजी पुस्तक।

* समाचार-पत्र प्रबन्धन
लेखक : गुलाब कोठारी

परिचय : प्रबन्धन की विभिन्न गतिविधियों के विवेचन के साथ समाचार-पत्र संस्थान की मूलभूत जानकारी प्रदान करनेवाली एकमात्र पुस्तक।

*राज्य सरकार और जनसम्पर्क
लेखक : कालीदत्त झा, रघुनाथप्रसाद तिवारी, डॉ. महेन्द्र मधुप

परिचय : सरकार से जूझनेवाले और सरकार में सेवा करनेवाले सभी प्रकार के लोगों के लिए विशेषज्ञ लेखकों द्वारा लिखी गई महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। सरकारी जनसम्पर्क की अवधारणा और उसके आयामों पर जरूरी जानकारी उपलब्ध करानेवाली पुस्तक।

* संवाद समिति की पत्रकारिता
लेखक : काशीनाथ गोविंदराव जोगलेकर

परिचय : संवाद समितियों के महत्त्व, गठन, संवाद-संकलन और प्रसारण शैली के साथ इसकी समस्याओं व संभावनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराती पुस्तक।


* पत्रकारिता में अनुवाद
लेखक : जितेन्द्र गुप्त, प्रियदर्शन, अरुण प्रकाश

परिचय : अनुवाद की भूमिका और पत्रकारिता के साथ उसके संबंधों को रेखांकित करती इस पुस्तक में अनुवाद के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है।

* समाचार एवं प्रारूप-लेखन
लेखक : डॉ. रामप्रकाश/ डॉ. दिनेशकुमार गुप्त

प्रस्तुत पुस्तक में प्रायोगिक स्तर पर समाचार की भाषा और हिन्दी के व्यावहारिक स्वरूप का एक सुस्पष्ट प्रतिमान सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है।'

*रामशरण जोशी की पुस्तकें

*विदेश रिपोर्टिंग
इस पुस्तक में विदेश रिपोर्टिंग और विशिष्ट व्यक्तियों की राजकीय विदेश यात्राओं की कवरेज प्रक्रिया पर व्यावहारिक व तकनीकी दृष्टि से फोकस डाला गया है।

*इक्कीसवीं सदी के संकट
परिचय : राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में सामान्य जन के संघर्षों और भारत जैसे विकासशील देश पर मंडराते खतरों का निर्भीक विश्लेषण है।

* मीडिया और बाजारवाद (सं.)
परिचय : बाजार नाम की संस्था आदिम समाज के लिए भी रही है और आज के समाज के लिए भी है। इसलिए बाजार से बैर करके आप अपना समाज और अपना जीवन चला सकें, इसकी संभावना नहीं है। पुस्तक इन्हीं पहलुओं पर प्रकाश डालती है।

* मीडिया कालीन हिन्दी : स्वरूप एवं संभावनाएं
लेखक : डॉ. अर्जुन चव्हाण
वर्तमान काल का भयावह सच है बेरोजगारी। लेकिन ऐसे माहौल में मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने रोजगार के अनेक अवसर प्रदान किए हैं, इसे भी नकारा नहीं जा सकता। पुस्तक यह विश्वास दिलाती है कि भाषा के अध्येताओं के लिए रोजगार के अवसर हमेशा उपलब्ध हैं।

* पत्रकारिता : मिशन से मीडिया तक
लेखक : अखिलेश मिश्र

परिचय : इस पुस्तक में अखिलेश के वे लेख संकलित हैं जिनमें उन्होंने पत्रकारिता के विविध आयामों, उसकी समस्याओं, संकटों, उसके भटकावों, उसकी ताकत व कमजोरियों की चर्चा की है। यह कृति न सिर्फ पत्रकारिता की दुनिया पर छाए धुंधलके को रेखांकित करती है, बल्कि इसके भविष्य के मार्गदर्शन का प्रयास भी करती है।


* मीडिया की बदलती भाषा
लेखक : डॉ. अजय कुमार सिंह
परिचय : नाम से ही पुस्तक का उद्देश्य स्पष्ट है कि बदलते दौर में मीडिया ने भाषा को लेकर जो प्रयोग किए हैं और भाषा के विकास में जो संभावनाएं दर्शाई है उनका विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।

* नए जन-संचार माध्यम और हिन्दी
संपादक : सुधीश पचौरी, अचला शर्मा
परिचय : इस पुस्तक में एक सेमिनार में पढ़े गए आलेखों को संकलित किया गया है। जन-संचार माध्यमों के विद्यार्थियों के लिए यह महत्त्वपूर्ण पुस्तक है।

* मीडिया जनतन्त्र और आतंकवाद
लेखक : सुधीश पचौरी
परिचय ख्यात उत्तर-आधुनिक विचारक सुधीश पचौरी ने इस पुस्तक में आतंकवाद जैसे गंभीर विषय पर अपने विभिन्न लेखों के माध्यम से प्रकाश डाला है।

* पॉपुलर कल्चर
परिचय : पॉप कल्चर को पश्चिमी साम्राज्यवादी अपसंस्कृति कहा जाता है। यह कृति 'पॉप कल्चर' को एक ऐतिहासिक घटना मानकर उसके कुछ प्रमुख स्वरूपों और घटनाओं का अध्ययन करती है। और इसे अपसंस्कृति' मानने वाली सोच को खारिज करती है।

* पत्रकारिता : नया दौर, नए प्रतिमान
परिचय : इस पुस्तक में पत्रकार-लेखक ने संस्मरण व रपट-रिपोर्ताज के साथ-साथ सम्पादक, उपसम्पादक और संवाददाता आदि की जिम्मेदारी का विवेचन किया है। इसी कारण यह कृति पत्रकारिता की पाठ्य-पुस्तक के रूप में भी उभरकर आई है। पत्रकारिता में रुचि रखनेवाले पाठकों के लिए एक जरूरी पुस्तक।

* पत्रकारिता की गहन समीक्षा लिए संतोष भारतीय की पुस्तकें

* पत्रकारिता के महानायक : सुरेंद्र प्रताप सिंह
संपादक : आर. अनुराधा

परिचय : एसपी जब-जब संपादक रहे, उन्होंने कम लिखा लेकिन उन्होंने जब लिखा तो खूब लिखा। जन-पक्षधरता एसपी सिंह के लेखन की केन्द्रीय विषयवस्तु है। एसपी सिंह अपने लेखन से साम्प्रदायिक, पोंगापंथी, जातिवादी और अभिजन शक्तियों को लगातार असहज करते रहे। संपूर्ण पुस्तक उन्हीं पर केंद्रित है।

* सूचना प्रौद्योगिकी और समाचार-पत्र
लेखक : रवीन्द्र शुक्ला

परिचय : सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट आज समाज के बड़े समूह को प्रभावित कर रहे हैं। देश-विदेश में इंटरनेट का विकास कैसे हुआ? भारतीय अखबार व पत्रिकाओं का इंटरनेट पर पदार्पण कैसे हुआ? क्या-क्या समस्याएं आईं, कैसे उनका समाधान किया गया? इन सभी पहलुओं की विस्तृत जानकारी इस पुस्तक से मिलती है।

अगले पेज पर जारी.....


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* सिर्फ पत्रकारिता
लेखक : डॉ. अजय कुमार सिंह

परिचय : मीडिया द्वारा दिए जा रहे समाचारों, सूचनाओं का कैसा प्रभाव आम जनमानस पर पड़ रहा है, पुस्तक इसी की पड़ताल करती है। हिन्दी पत्रकारिता कहां पर थी और कैसे वह अपनी मंजिल पर पहुंची। इसी का बयान विविध ढंग से प्रस्तुत करती है यह पुस्तक।

* सूचना का अधिकार
लेखक : विष्णु राजगढ़िया, अरविंद केजरीवाल

परिचय : अक्टूबर 2005 से लागू सूचनाधिकार लोकतांत्रिक राजा की सत्ता के लिए गहरे सदमे के रूप में आया है। राजनेता और नौकरशाह हतप्रभ हैं कि इस कानून ने आम नागरिक को लगभग तमाम ऐसी चीजों को देखने, जानने, समझने, पूछने की इजाजत दे दी है, जिन पर परदा डालकर लोकतंत्र को राजशाही अन्दाज में चलाया जा रहा था। पुस्तक समग्रता में इसी पर केंद्रित है।

* कॉरपोरेट मीडिया : दलाल स्ट्रीट
लेखक : दिलीप मंडल

परिचय : 2009 में इस देश में पेड न्यूज का घोटाला हुआ और 2010 में नीरा राडिया कांड। पेड न्यूज विवाद ने बताया था कि मीडिया कवरेज की पैकेज डील होती है। वहीं, नीरा राडिया कांड से पता चला कि देश और मीडिया को चलाने वाले कोई और हैं, जो राजनीति, नौकरशाही, न्याय व्यवस्था और मीडिया में मौजूद कठपुतलियों को नचाते हैं। पुस्तक इसी की पड़ताल करती है।

* मीडिया का अंडरवर्ल्ड
लेखक : दिलीप मंडल

परिचय : मीडिया छवि बनाता और बिगाड़ता है। इस ताकत के बावजूद भारतीय मीडिया अपनी ही छवि का नाश होना नहीं रोक सका। देखते-ही-देखते पत्राकार आदरणीय नहीं रहे। लोकतंत्रा का चौथा खम्भा आज धूल-धूसरित गिरा पड़ा है। मीडिया की बन्द मुट्ठी क्या खुली, एक मूर्ति टूटकर बिखर गई। यह पुस्तक इसी विखंडन को दर्ज करने की कोशिश है।

* 21वीं सदी : पहला दशक
21वीं सदी : पहला दशक' पुस्तक में विख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी के वे लेख संकलित हैं जो उन्होंने 'जनसत्ता' दैनिक में सन्‌ 2000 के बाद लिखे। 2001 से 2009 के बीच प्रकाशित इन लेखों में देश की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन की धड़कनें सुनी जा सकती हैं।

* हरसूद, 30 जून
लेखक : विजय मोहन तिवारी

परिचय : यह कहानी है एक शहर की, जिसकी मौत की तारीख मुक़र्रर की गई थी 30 जून, 2004। बांध-निर्माण से होनेवाले तथाकथित विकास के नाम पर हरसूद की बलि चढ़ाई गई। हरसूद शहर के हजारों बाशिन्दे हर पल अपने शहर की ओर बढ़ रही मौत को देख रहे थे और धकेले जा रहे थे अंधेरे भविष्य के गर्त में। पुस्तक इसी घटना का मार्मिक रिपोर्ताज है।

* एंकर रिपोर्टर
लेखक : पुण्य प्रसून वाजपेयी

परिचय : प्रसिद्ध एंकर रिपोर्टर पुण्य प्रसून वाजपेयी की इस पुस्तक में पेशे की चुनौतियों के बारे में बताया गया है कि एंकरिंग रिपोर्टिंग में तकनीकी मुश्किलें क्या आती हैं? 24 घंटे के समाचार चैनल में एंकर-रिपोर्टर की क्या भूमिका होती है? किन तरह के दबावों में उनको काम करना पड़ता है?


* आगे अंधी गली है
परिचय : 'आगे अंधी गली है' में विख्यात पत्राकार प्रभाष जोशी द्वारा 'प्रथम प्रवक्ता' और 'तहलका' में छपे कॉलम संकलित हैं।


* मसि कागद
परिचय : 'मसि कागद' जनसत्ता के प्रारंभिक वर्षों में छपे प्रभाष जोशी के चय‍नित लेखों और सम्पादकीय टिप्पणियों का संकलन है।

*धन्न नरबदा मइया हो
लेखक : प्रभाष जोशी

परिचय : इस पुस्तक का शीर्षक 'धन्न नरबदा मइया हो' दरअसल प्रभाष जी के किशोरवय में जबलपुर के एक गीतकार से कवि सम्मेलन में सुने मछुआरों के एक गीत से लिया है 'हैया हो हो हैया हो, धन्न नरबदा मइया हो। पुस्तक में ललित निबंध है और यह निबंध खड़ी बोली के औपचारिक गद्य में नहीं लिखे गए हैं। इनमें बोली की अनगढ़ता लेकिन अनुभूति की सघनता, आत्मीयता और भावुकता है।


* जब तोप मुकाबिल हो...
परिचय : जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो' ऐसा अकबर इलाहाबादी ने कहा है। आज लोग तोप का मुकाबला करने को अखबार नहीं निकालते। यह प्रभाष जोशी के पत्रकारिता के संस्मरणों से सजी पुस्तक है।

* जीने के बहाने
परिचय : प्रभाष जोशी ने 'जीने के बहाने' में अपने समय के चर्चित व्यक्तित्वों के चरित्र और विचार का दो-टूक विश्लेषण किया है।


* खेल सिर्फ खेल नहीं है
परिचय : 'खेल सिर्फ खेल नहीं है' पुस्तक में प्रभाष जोशी द्वारा खेल पर लिखे गए लेख संकलित हैं। इन लेखों से हिन्दी में खेल विश्लेषण का पूरा परिदृश्य ही बदल गया था।


* लुटियन के टीले का भूगोल
परिचय :'लुटियन के टीले का भूगोल' में प्रभाष जोशी द्वारा लिखे राजनीतिक लेखों का संग्रह है।

* हिंदू होने का धर्म
परिचय : बाबरी ध्वंस के बाद और गुजरात नरसंहार तक 'जनसत्ता' में लिखे गए प्रभाष जोशी के प्रमुख लेखों-स्तंभों का चयन है।

* पत्रकारिता के नए आयाम
लेखक : एसके दुबे

परिचय : समाचार, पत्रकारिता, जनसंचार और अब मीडिया जैसे शब्दों का प्रयोग बार-बार विविध रूपों एवं स्तरों पर हुआ है तथा हो रहा है। समय के प्रवाह के साथ-साथ राजनीतिक, प्रौद्योगिकी एवं व्यावसायिक बदलाव ने इन सम्पूर्ण अवधारणाओं से क्रान्तिकारी परिवर्तन उत्पन्न किया है, इसी पर केन्द्रित है यह पुस्तक।

* भारत में जनसंचार और प्रसारण मीडिया
लेखक : मधुकर लेले

परिचय : प्रसारण टेक्नोलॉजी में हाल के कुछ वर्षों में जो जबर्दस्त प्रगति हुई और उसके साथ ही जब भूमंडलीकरण का दौर चला तो लाजिमी था कि तेजी के साथ फलते-फूलते वैश्विक मीडिया उद्योग को भी भारत में अवसर दिए जाते। यह नया दौर निश्चित ही अपने साथ नई और अधिक गम्भीर चुनौतियां लेकर आया है। मधुकर लेले ने इन्हीं चुनौतियों को प्रस्तुत किया है इस पुस्तक में।

* प्रभाष पर्व
परिचय : 'प्रभाष पर्व' पुस्तक प्रभाष जोशी पर अब तक लिखे गए महत्त्वपूर्ण लेखों का प्रतिनिधि संग्रह है। इसमें उनके समकालीन और बाद की पीढ़ी के पत्रकारों, लेखकों तथा नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करनेवाले लोगों ने उनका मूल्यांकन किया है।

* पत्रकारिता : परिवेश और प्रवृत्तियां
लेखक : डॉ. पृथ्वीनाथ पाण्डेय

परिचय : पत्रकारिता की वर्तमान प्रवृत्तियों का लेखाजोखा प्रस्तुत करती है यह पुस्तक।

* फिल्म निर्देशन
लेखक : कुलदीप सिन्हा

परिचय : इस पुस्तक में निर्देशन के सैद्धान्तिक विवेचन के साथ ही उसके व्यावहारिक पक्ष को सूक्ष्मता और विस्तार से विवेचित किया गया है। यह पुस्तक बहुआयामी है। आम पाठकों के अलावा यह पुस्तक फिल्म निर्माण तथा फिल्म समीक्षा से जुड़े लोगों के लिए भी बेहद उपयोगी है। हिन्दी में फिल्म निर्देशन पर यह पहली पुस्तक है।


* भारतीय सिने-सिद्धान्त
लेखक : अनुपम ओझा

परिचय : हिन्दी सिनेमा पर एक तरफ हॉलीवुड के सिनेमा, लोकनाट्य रूपों तथा पारसी थिएटर की छाप है, तो दूसरी तरफ पौराणिक मिथकों और तीसरी तरफ इटैलियन यथार्थवादी सिनेमा का भी प्रभाव है। पुस्तक में इन सबके बीच भारतीय सिनेमा के अपने मूल गुणों को पहचानने-परखने की कोशिश की गई है।