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Written By WD

वेश्या एविलन रो का उपाख्यान : ब्रेख्त की कविताएं

वेश्या एविलन रो का उपाख्यान :  ब्रेख्त की कविताएं - Book Review
भारत कालरा
‘वेश्या एविलन रो’ ब्रतोल्त ब्रेख्त की एक प्रसिद्ध कविता है। दरअसल, यह एक उपाख्यान है। इस काव्यात्मक उपाख्यान में स्त्री की पीड़ा, उसकी मुक्ति की आकांक्षा के स्वरों में सामने आती हैं। ‘वेश्या एविलन रो’ पुस्तक में ब्रतोल्त ब्रेख्त की 20 कविताएं हैं। ब्रेख्त की कविताओं और उनके नाटकों का हिन्दी में काफी अनुवाद हुआ है।


ब्रेख्त एक ऐसे कवि हैं, जिनसे हिन्दी लेखकों-कवियों की कई पीढ़ियां बेहद लगाव महसूस करती रही हैं और उनसे रचनात्मक ऊर्जा हासिल करती रही हैं। लेकिन आम पाठकों तक ब्रेख्त की कविताएं कम ही पहुंच पाई हैं। इस संग्रह के आने से यह उम्मीद बंधी है कि ब्रेख्त की कविताएं आम पाठकों तक पहुंच सकेंगी और युवा पीढ़ी इन कविताओं से परिचित हो सकेगी। 
 
ब्रेख्त की कविताओं, कहानियों और नाटकों का दुनिया भर की भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। हिन्दी के पाठकों के लिए विजेंद्र, अरुण माहेश्वरी, नीलाभ, सुरेश सलिल, मोहन थपलियाल, उज्ज्वल भट्टाचार्य जैसे साहित्यकारों ने ब्रेख्त की कविताओं और कहानियों के अनुवाद किए हैं। गुलजार ने भी ब्रेख्त के नाटक ‘ही हू सेज़ यस एंड ही हू सेज़ नो’ का बच्चों के लिए ‘ अगर और मगर‘ नाम से अनुवाद किया है। 
 
बहरहाल, वीणा भाटिया द्वारा किए गए इस अनुवाद का महत्त्व कुछ अलग है तो इसलिए, क्योंकि ब्रेख्त की ये कविताएं पहली बार हिन्दी पाठकों के सामने आई हैं। इन चुनिंदा कविताओं का अनुवाद 1983-84 के दौरान किया गया। खास बात यह है कि अनुवाद के लिए कविताओं का चुनाव गोरख पाण्डेय ने किया था। इसके बारे में वीणा भाटिया ने पुस्तक की भूमिका में लिखा है, “एक दिन गोरखजी आए तो मैं ब्रेख्त की कविताएं पढ़ रही थी। उन्होंने मुझसे ब्रेख्त की कविता ’द ब्रेड एंड द चिल्ड्रन’ पढ़ने को कहा। मैंने कविता पढ़ी और बाद में उसका अनुवाद भी किया। कुछ दिनों बाद मिलने पर मैंने वह अनुवाद दिखाया। मेरे किए अनुवाद को देख कर गोरख पाण्डेय मुस्कुराते हुए बोले – वाह साथी! और फिर उन्होंने अनूवादित कविता पर अपनी कलम चलाई। इसके साथ ही चल पड़ा अनुवाद का सिलसिला।” ये कविताएं गोष्ठियों में पढ़ी जाती रहीं, सुनी-सुनाई जाती रहीं। 
 
पुस्तक गोरख पाण्डेय की स्मृति में प्रकाशित हुई, यह एक खास बात है। बहरहाल, अनुवाद के लिए ब्रेख्त की जिन कविताओं का चयन गोरख पाण्डेय ने किया, उससे पता चलता है कि उन्होंने चौतरफा संकट से घिरे, अस्तित्व के लिए जूझते और संघर्ष करते लोगों की गाथा सामने लाने की कोशिश की थी। ब्रेख्त का रचना-कर्म बहुत ही व्यापक और बहुआयामी है। उनमें से प्रासंगिक चयन गोरख पाण्डेय जैसे क्रांति‍कारी कवि ही कर सकते थे। ‘वेश्या एविलन रो’ का उपाख्यान ही पाठकों को बेचैन कर देगा। पूंजीवादी व्यवस्था में श्रमिक वर्ग के साथ स्त्री का उत्पीड़न एक ऐसा सच है, जिससे मुंह नहीं चुराया जा सकता। इस संग्रह में शामिल कई कविताओं में यह सच उभर कर सामने आया है। ब्रेख्त की इन कविताओं से गुजरना बहुत आसान नहीं है। यह एक यंत्रणादायी प्रक्रिया है। जहां शब्द नश्तर बन जाते हैं, जहां उदासी लगता है मानो धरती से आकाश तक छा गई है, जहां अंतहीन बेचैनियां हैं, तो ये कविताएं पाठकों को एक भयानक संसार में लेकर जाती हैं। 
 
वहां सवाल हैं, सवाल हैं भूखे बच्चों के, ‘अबोध छालटी की पतित पावनी’ है। इस ‘पेचीदी दुनिया में’ ‘प्रिया के वास्ते गीत’ है तो ‘मां के लिए शोकगीत’। ‘बुढ़िया का विदागीत’ है तो ‘बच्चों की रोटी’ का भी सवाल है। ‘शहर के बाहर जमा आठ हजार गरीबों का हुजूम’ है तो ‘भव्य तोरण के नीचे अज्ञात सैनिक का व्याख्यान’ भी हो रहा है। वहीं, ‘तीन सौ हलाक कुलियों का अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के नाम प्रतिवेदन’ है। ब्रेख्त की कविताओं में ‘लोरियां’ हैं, ‘क्रांति के अनजान सिपाही की समाधि का पत्थर’ है तो ‘देशवासियों’ से ‘जनता की रोटी’ का सवाल भी है।
 
ये ब्रेख्त के विपुल रचना-संसार से एक अति संक्षिप्त चयन है, पर उनके जैसे क्रांति‍कारी कवि की रचनधर्मिता का पूरा आस्वाद कराने वाला। अनुवाद दरअसल पुनर्रचना है। कविता की पुनर्रचना असंभव-सी बात होती है। पर यह जरूरत है। वीणा भाटिया ने अनुवादक के धर्म का ईमानदारी से निर्वाह किया है, इसका पता कविताओं के पाठ से चलता है। उनमें जो सहज प्रवाह है, उससे कविता हमारे समय से और हमारी निजता से भी अनायास जुड़ जाती है। इस संग्रह की कुछ कविताएं पहले पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हो चुकी हैं। 
 
हमारे समय के एक महत्त्वपूर्ण कवि विजेन्द्र ने लिखा है, “यह सवाल बार-बार उठेगा कि आखिर ब्रेख्त को आज पढ़ना समझना क्यों जरूरी है। जिन संकटापन्न तथा त्रासद हालात में ब्रेख्त ने अपना कवि कर्म किया, आज भी हालात वैसे ही हैं। पूंजीकेंद्रित व्यवस्थाएं अपने चरम पर मनुष्य का शोषण कर रही हैं। साम्राज्यवाद नए रूप में पहले से भी अधिक आक्रामक और एकध्रुवीय हुआ है। सर्वहारा के पक्षधर कवि के सामने बड़ी चुनौतियां तथा जोखिम आज भी बदस्तूर हैं। ऐसे में, ब्रेख्त को पढ़ना हमें अपने सामाजिक दायित्व के प्रति सजग करेगा। हमें हर प्रतिकूल स्थिति में अपनी वैचारिक आस्था को बनाए रखने के लिये प्रेरित करेगा।“ उल्लेखनीय है कि विजेन्द्र ने ब्रेख्त की कविताओं के अनुवाद किए हैं और उनकी रचनाधर्मिता पर लिखा भी है। 
 
ब्रेख्त एक बेहद जटिल समय के कवि हैं। जब वे लिख रहे थे, जनपक्षधर तथा लोकधर्मी कवियों के लिए परिस्थितियां जानलेवा और जोखिम से भरी हुई थीं। फासिज्म के उभार ने पूरी दुनिया के लेखकों के लिए विकल्प की चुनौती खड़ी कर दी थी। आज ये चुनौती हमारे सामने बहुत ही तल्ख रूप में उभर कर आई है। ब्रेख्त के समय में सवाल था कि लेखक तटस्थ रहें, लोकतंत्र और समाजवाद के लिए जनता के साथ संघर्ष में शरीक हों या फासिज्म को स्वीकार करें। वे इन दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियों के लिए बहुत चिंतित थे। ब्रेख्त के नाटकों और कविताओं में जो यथार्थ सामने आया है, वह इतिहास की इन्हीं परिस्थितियों की देन है। 
 
ब्रेख्त ने ज्यादातर छोटी कविताएं लिखी हैं। इस संग्रह में जिन कविताओं का अनुवाद प्रस्तुत किया गया है, वे अपेक्षाकृत बड़ी या लंबी कविताएं हैं। ये जटिल उपबंधों की कविताएं हैं। ऐसी कविताओं का अनुवाद करना बहुत आसान नहीं होता। वीणा भाटिया ने अनुवाद के लिए इन कविताओं का चयन किया, इसके पीछे सम्भवत: एक बात यह भी है कि ज्यादातर अनुवादकों ने इन्हें छोड़ दिया था। बहरहाल, जटिल और लंबी कविताओं के अनुवाद में भी उन्होंने सहजता और प्रवाह बनाए रखा है। कविताएं संप्रेषणीय हैं। उनमें दुरूहता और बोझिलता नहीं है। संग्रह में शामिल तीन कविताओं के अंश - 
 
‘वेश्या एविलन रो’ 
मैं आपको 
कभी नहीं मिल पाऊंगी
क्राइस्ट मेरे प्रभु
आप एक वेश्या की खातिर
तो नहीं आ सकेंगे न,
और मैं 
अब एक बदनाम औरत हूं
मस्तूलों के दरमियान
वह घंटों भागती
उसका दिल दुखता था
उसके पैर दुखते थे
 
जब तक कि 
एक अंधेरी रात में
जब उसे कोई नहीं देख रहा था
खुद-ब-खुद
वह उस तट को ढूंढने निकल गई।
‘बच्चों की रोटी’
धर्म के महंतों ने 
बच्चों को भूख से तड़पते हुए देखा 
जिनके चेहरे पीले और कुम्हालाए हुए थे
 
उन्होंने 
उन बच्चों को कुछ भी नहीं दिया
भूखा तड़पने दिया
 
संकट अब आ पहुंचा
अब वे रोटी के छिलके की खातिर लड़ेंगे
और महज गंधों से भूख शांत करेंगे।
 
रोटी तो 
पशुओं को खिलाई जा चुकी है
वह सड़ गई थी
और बहुत सूखी भी
 
इसलिए 
हे ईश्वर
तुम अपनी दुनिया में
उनकी खातिर थोड़ी रोटी बचाए रखना।  
‘मां के लिए शोकगीत’ 
उसकी वेदनाओं का ओर-छोर नहीं था
मौत जिसके जीवन से 
कतई शर्मिंदा नहीं थी
और तब 
वो मर गई 
और तब उन्हें लगा
उसका जिस्म 
एक बच्चा था।
वह वन में पली 
उन चेहरों के बीच मरी
जिन्होंने उसे हमेशा
मरते देखा था।
 
और वे बेहिस थे
कौन क्षमा करता था उसे
उसके दुख लिए
फिर भी वह
घूमती फिरी
उन्हीं चेहरों के इर्द गिर्द
जब तक मर ही न गई।
 
संग्रह में शामिल सभी कविताओं के अनुवाद में यह सहज बोधगम्यता दिखाई पड़ती है। संग्रह में गोरख पाण्डेय पर एक परिशिष्ट है, जिसमें उनके दो साथियों के लेख हैं। मनोज कुमार झा ने ‘स्वप्न और क्रांति के कवि गोरख पाण्डेय’ लेख में उनकी रचनाधर्मिता और सरोकारों पर विस्तार से प्रकाश डाला है, साथ ही प्रगतिशील-जनवादी साहित्य आंदोलन से जुड़े कुछ ज्वलंत सवाल भी उठाए हैं। उनके दूसरे साथी प्रोफेसर ईश मिश्र ने ‘सामाजिक बदलाव के कवि गोरख’ में लिखा है कि गोरख पाण्डेय की कविताएं आम जन को अनंत काल तक जगाती रहेंगी। 
 
कहा जा सकता है कि ब्रेख्त की इन कविताओं का अनुवाद प्रस्तुत कर के वीणा भाटिया ने अपनी ‘लिटटरी एक्टिविस्ट’ की भूमिका का निर्वाह किया है। इससे निस्संदेह नई पीढ़ी को मानसिक खुराक और ऊर्जा मिलेगी। 
 
पुस्तक – वेश्या एविलन रो – ब्रतोल्त ब्रेख्त की कविताएं
अनुवाद : वीणा भाटिया
प्रकाशक : वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर
मूल्य : 70 रुपए
प्रथम संस्करण : 2016
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