मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
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Written By WD

सारी दुनिया को अपनाओ : शब्द कुछ कहते हैं

सारी दुनिया को अपनाओ : शब्द कुछ कहते हैं - Book review
समीक्षक : एम.एम. चंद्रा  
अजय कुमार मिश्र ‘अजयश्री’ का काव्य संग्रह “शब्द कुछ कहते हैं” प्राप्त हुआ तो मैंने अपने दोस्तों से इस पुस्तक के बहाने चर्चा की। इस पुस्तिका ने शब्दों के इतिहास, उद्भव और उसकी विकास यात्रा तक हमें चेतनाशील किया है। किसी भी कविता में शब्द चयन, रचनाकार के इतिहास बोध से जुड़ा होता है और पाठक को भी उसी इतिहास चेतना तक पहुंचना पड़ता है। तब जाकर कविताओं के मर्म तक पहुंचा जा सकता है।
 
अजयश्री ने अपनी कविताओं में बिंबों-प्रतिबिंबों, उपमाओं का प्रयोग कर अपने काव्य संग्रह “शब्द कुछ कहते हैं” की पहली कविता मानवता के उच्चतर उद्देश्य को पाठकों के बीच इस प्रकार रखती है-
 
बनना हो तो पवन बनो तुम 
जन–जन की सांसों में भर जाओ
सारी दुनिया को अपनाओ
 
आज पूरी दुनिया अलगाव ग्रस्त है। मनुष्य सिर्फ अपने बारे में ही सोच रहा है। इसीलिए किसी न किसी को तो आगे बढ़कर इस समस्या से लड़ना पड़ेगा और इसका समाधान करना पड़ेगा। लेखक भी इसी दुनिया का एक हिस्सा है। वह इस समस्या का समाधान “हम” की भावना को और अधिक विस्तृत आकार प्रदान करके कुछ इस प्रकार व्यक्त करता है -
 
जब तक आप मैं में रहेंगे 
एक दूसरे से लड़ते रहेंगे 
मैं से बाहर आइए 
मैं नहीं हम कहकर गले लग जाइए 
 
लेखक केवल आदर्शवादी कविता ही नहीं लिखता, बल्कि उनकी कविताएं समाज की प्रत्येक गतिविधि पर पैनी नजर रखती हैं। बाढ़ जैसी आपदाओं पर प्रत्येक वर्ष राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती हैं। राजनीतिक रूख को इनकी व्यंग कविता इस प्रकार बेनकाब करती है -
 
हुक्मरानों का एलान है 
हर व्यक्ति पर ध्यान है 
यूं न होने देंगे हम 
अगले वर्ष 
जल प्रपात रोक देंगे हम 
 
कवि ‘अजयश्री’ की कविताएं पाठक के साथ स्वयं से और अपने समय से संवाद करती हैं। इसलिए उन्होंने इस पठनीय शैली को और अधिक विकसित करने की संभावनाओं को भी बल प्रदान किया है। जब तक संभावनाएं जिंदा हैं, कविता जिंदा है, तब तक मानवता भी जिंदा रहेगी।
 
मैंने कहा चांद से यूं घबराते नहीं 
अंधेरों से लड़ने वालों के दाग देखे जाते नहीं 
 
यदि कोई कवि है तो वह संवेदनशील ही होता है, नहीं तो वह कवि नहीं माना जाए, उसे कुछ और नाम दिया जाना चाहिए। कवि अपने समय के प्रति, समाज के प्रति उन तमाम मामलों के प्रति संवेदनशील होता है जिससे लेखक और समाज प्रभावित होता है। चौराहों, सड़कों, ढाबों और कारखानों में पिसते बच्चों को देखकर अजयश्री उनकी अनदेखी नहीं कर सके, इसीलिए उनके दिल से एक ही आह निकली –
 
कोई बच्चा बिलख रहा है 
खुशी मनाएं हम कैसे
 
देश को आजाद हुए काफी वक्त गुजर चुका है, किंतु देश की अधिकतर आबादी भुखमरी, बेरोजगारी, अज्ञानता के दलदल में फंसती जा रही है। आशा की किरण अमूर्त हो चुकी है। नेताओं पर से जनता का विश्वास उठ चुका है। गणतंत्र सिर्फ कुछ लोगों के लिए ही लाभकारी सिद्ध हुआ है। लेखक भारतीय गणतंत्र पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहता है कि - 
 
भुखमरी, लाचारी, लुटती इज्जत 
और भ्रष्टाचार, सब खत्म कर देंगे 
भ्रम अच्छा है 
पैंसठ वर्ष का हो गया गणतंत्र 
पर दिखता अभी बच्चा है 
 
अजयश्री ने ‘वह सृजन करती,’ ‘सिलवटें’ जैसी कविताओं में महिला विमर्श को उकेरने की कोशिश की है, वहीं ‘समान कानून’, ‘साबुन’, ‘शो प्लांट’ और ‘तम्बाकू’ जैसी कविताओं के माध्यम से समाज के विविध यथार्थ को रूबरू किया है। ‘डाकू कौन’ कविता सभ्य समाज को आइना दिखाती है। इस कविता संग्रह में उनकी कुछ छोटी-छोटी कविताएं ‘गलतियां’, ‘बसंत’, ‘मेरी मधुशाला’ आदि मानव के अंतर्मन में चल रही अभिव्यक्तियां भी पाठकों के दिल में जगह बनाने में कामयाब रहीं हैं।
 
पुस्तक - शब्द कुछ कहते हैं
लेखक - अजय कुमार मिश्र ‘अजयश्री’
प्रकाशक - अयन प्रकाशन 
कीमत - 200 रूपए