समीक्षक : एम.एम.चन्द्रा
युवा गीतकार विकास यश कीर्ति ने अपने पहले संकलन ‘गीतों से संवाद’ में मनुष्य की प्रेम, विरह, आनंद, देशभक्ति, करुणा, पीड़ा, संघर्ष, आशा-निराशा और द्वंद्व जैसी अनुभूतियों को पाठकों के सामने गीतों और गजलों के रूप में रखा है।
गीतकार विकास यश कीर्ति ने प्रेम जैसी अनुभूति को बहुत उच्च स्तर तक पहुंचाने का कठिन कार्य किया है। प्रेम सिर्फ पाने का नाम नहीं वरन प्रेम देने, सहेजने, संवारने का नाम है। अपने प्रेम के लिए सपने देखने और उसकी कठिनाइयों को दूर करने का नाम है -
तुम मुझको ठुकरा दो चाहे, फिर भी तुमको चाहूंगा
सुर न सजते कंठ में फिर भी गीत तुम्हारे गाऊंगा
पलकों से सपने चुन-चुन कर स्वप्न सजाऊंगा मैं
एक कवि की जीवन प्रेरणा स्रोत, उसकी पत्नी या प्रेमिका का होना सुखद अहसास दिलाता है। कवि जब ऊंचाइयों को छूने का सपना देखता है और मंजिल को पा लेता है, तो मन की भावनाओं को कवि स्वर प्रदान करता है।
तुम्हीं मेरी प्रेरणा हो, तुम ही मेरी मन की शक्ति
साधना तपहीन हो, फिर कैसा वंदन कैसी भक्ति
बिन तुम्हारे मेरा जीवन, जैसे हो टूटा सितारा
अब तुम्हारे प्रेम बिन, मिट नहीं सकती विरक्ति
राह भटकती हसरतों को फिर नया यौवन मिला
गीत मेरा गुन-गुना कर सुरमयी तुमने किया
भारतीय समाज में कन्या भ्रूण हत्या का सिलसिला हजारों वर्षों से आज तक चला आ रहा है, जिसपर अनेकों कवियों, लेखकों ने अपने कलम चलाई है। उन्हीं में से एक, ओरिना फैलसी ने ‘एक खत अजन्मी बच्चे के नाम’ किताब में बड़ी ही मार्मिक शब्दों को बयां किया। उसी तरह विकास यश कीर्ति ने अजन्मी बच्ची की पुकार को स्वर दिया है-
मुझको मत कोख में मारो, दुनिया में तो आने दो
मैया! तेरे आंगन में, दे-दे मुझे एक कोना
लेखक देशकाल की परिस्थतियों से अनजान नहीं है। वह देश में हो रहे बदलावों को देख रहा है। उसने हिन्दुस्तान की बदरंग होती तस्वीर को अपने गीतों में पिरोने का साहसपूर्ण काम किया है-
कल मुझको जर्जर हालत में बूढ़ा इक इंसान मिला
रूखा चेहरा, सूखी आंखें, मेरा हिंदुस्तान मिला
बहन-बेटियां, घर की इज्जत भी लुटती बाजारों में
नहीं रहा वो खून, जज्बा देशभक्ति के नारों में
लाल मेरे! गर अब संभले तो सब कुछ लुट जाएगा
भारत देश महान देखना टुकड़ों में बंट जाएगा
लेखक ने सिर्फ देश की दुर्दशा का ही वर्णन नहीं किया, बल्कि नई सुबह को लाने का आव्हान भी किया है -
नई सुबह की नई दिशाएं, रास्ता नया बनाती हैं,
आशाओं के उजियारे में मंजिल पास बुलाती है।
बांध दुखों की गठरी को सर पर क्यों ढोते हो,
नया सवेरा बाट जोह रहा, गम की रात में क्यों सोते हो।
काली रातें ही सुबह उज्ज्वल अहसास कराती है।
किसी भी प्रकार की लेखन प्रक्रिया में इतिहासबोध या युगबोध का होना, सृजन को परिष्कृत, निष्पक्ष एवं बेहतर बनाने की चेतना ने विकास यश-कीर्ति को गंभीर गीतकार की श्रेणी में स्थान दिलाया है -
कैसे मीठे गीत सुनाऊं, कैसे सुंदर छंद बनाऊं
बेबस लोगों का दर्द भरा एक राग है,
ये जलियांवाला बाग है ।
मेट्रो शहर की जीवन गाथा को यशकीर्ति ने अपने शब्दों में सुनाया है। शहर की भागदौड़, रफ्तार, ऊंची इमारतें, लंबी गाड़ी के साथ-साथ शहरी मनुष्य की मानसिक विकृतियों को भी वे पाठक के अंतर्मन तक पहुंचाने में सफल रहे हैं -
इंटरनेट की इस नगरी में उंगली पर सम्बंध टिके
रद्दी में दीवान पड़ा है शायर, लेखक, छंद बिके
कदम-कदम पर सिसकी लेती मानवता दम तोड़ रही
दुनिया धन-दौलत की खातिर अपनों को छोड़ रही
मनुष्य के हौंसले आसमान झुका सकते हैं। जिंदगी की जद्दोजहद में नए जज्बात पैदा कर सकते हैं। हौंसला ही मनुष्य की क्षमता की सही पहचान है -
जिंदगी में, जिंदगी से, जिंदगी-सी बात कर
आंसुओं का दौर है कुछ खुशनुमा हालात कर
रौशनी दुश्वार लगती है अंधेरे के तले
ख्वाब सुंदर देख ले, सपनों की बरसात कर
लेखक ने अपने समय की विकृतियों, संवेदनाओं, कल्पनाओं, अनुभूतियों, विषमताओं, प्रतीकों, अभिव्यक्तियों, जीवन मूल्यों को बहुत ही संजीदगी, सहजता के साथ विभिन्न शिल्प शैली का प्रयोग कर पाठकों तक पहुंचने का सार्थक प्रयास किया है।
गीतों से संवाद : विकास यशकीर्ति
प्रकाशक : सुकीर्ति प्रकाशन
कीमत : 200