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Written By WD

दीपावली@अस्पताल.कॉम : सामाजिक यथार्थ का दस्तावेज

दीपावली@अस्पताल.कॉम : सामाजिक यथार्थ का दस्तावेज - Book Review
डॉ. बोस्की मैंगी
 
गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर में हिन्दी-विभाग की सेनानिवृत अध्यक्षा डॉ. मधु सन्धु समकालीन कथाकारों में प्रतिष्ठित एवं साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय भूमिका का निर्वाह कर रही हैं। हाल में ही अयन प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित इनका कथा संग्रह दीपावली/अस्पताल.कॉम दो खंडों में विभक्त है। 


 

 
प्रथम खण्ड में 20 कहानियाँ और द्वितीय खण्ड में 26 लघु-कथाएं हैं। इसमें दर्ज लगभग सभी रचनाएं राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय प्रिंट मीडिया और वेब-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रकाशित संग्रह के कथानक उनके आत्म साक्षात्कार की यात्राएं, अनुभव और संवेदना का मन:जगत्‌ तथा समय और समाज के बिम्ब-प्रतिबिम्ब हैं। प्रत्येक कहानी लेखिका की संवेदनाओं को गहरे छूने वाली और किसी विषय के विशिष्ट आयाम को प्रस्तुत करती हैं। रचनाएं पाठक को आद्यंत बांधे रखने में सक्षम है।
 
आज के घोर भौतिकवादी युग में रिश्तों में स्निग्धता की मात्रा र्आथिक उर्पाजन के आधार पर निर्धारित होती है। स्त्री भले ही र्आथिक रुप में सशक्त हुई हो, आत्म-निर्भर हो परन्तु उत्पीड़न को जड़ से उखाड़ने वाले धार कहीं नहीं मिलती। संग्रह की प्रथम कहानी 'कुमारिका गृह' में पुरुष रुप में भाई नायिका को छलता है। जिससे उसकी व्यथा बोध को हवा दी है। 'जीवनघाती' में लेखिका ने इस विचार को प्रस्तुत किया है कि पुरुष प्रधान समाज में नारी का स्वतन्त्र व्यक्तित्व, उसकी सफलता पुरुष के लिए खतरे की घंटी है, पुरुष को इससे समाज में अपना सिहांसन डोलता दिखाई देता है।

कहानी का नायक यही चाहता है कि उसकी पत्नी उसकी अनुगामिनी बने। पत्नी की उससे आगे बढ़ने की चेष्टा अर्थात्‌ सफलता उसे खलती है। 'डायरी' कहानी उस कामकाजी महिला की व्यथा व्यक्त करती है जिसके पास परिवार तो है लेकिन एकाकी जीवन व्यतीत करती है। कारण यह है कि पति उससे फायदे ढूंढने में लगा रहता है और बच्चों के पास आज के भागदौड़ भरे जीवन में उसके लिए समय नहीं। कहानी की नायिका सुमन को भी यह अकेलापन खलता नहीं क्योंकि उसने अपने अकेलेपन और दुनियादारी में सामन्जस्य स्थापित किया हुआ है। इसी सामन्जस्य में वह जीवन की पूर्णता देखती है। नायिका के शब्दों में- 'मुझे कैक्टस और ग्लेडियस दोनों से प्यार है' (पृ. 79)

मधु जी की कहानियों की यही विशेषता है कि वह अपने कथा-पात्रों की मनोदशा को गहराई से समझकर सूक्ष्मता से अंकित करती है। आदर्श भारतीय नारी की झलक 'दी तुम बहुत याद आती हो' में देखी जा सकती है, जहां नायिका शादी उपरान्त वर्जनाओं के चलते आत्म संयम का कवच ओढ़ती अपनी जीवन रुपी गाड़ी चला रही है।
 
नारी चिन्तन के अगल पड़ाव में मधु जी ने एक ओर भयानक यथार्थ से पर्दा उठाया है। 'संरक्षक' में हम इस सत्य से रु-ब-रु होते है जहां संरक्षक भी भक्षक बन बैठे तो उस समाज में स्त्री अपनी सुरक्षा कैसे कर सकती है। आधुनिक युग में स्पंदनहीन हो चुके संबंधों को परत-दर-परत उघाड़ा गया है।
 
समीक्ष्य संग्रह के पात्र यथार्थ से आहत तो दिखाई देते है परन्तु पराजित नहीं। वे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपनी जिजीविषा को कायम रखते हैं और समय के विद्रूप व विसंगत से टकराकर सुपथ पर अग्रसर होने को प्रेरित करते है। 'आवाज का जादूगर' में नमन इस सत्य को जानता है कि स्वप्न बने रहने चाहिए, स्वप्न मर जाए तो जीवन उस पंख कटे पक्षी सा हो जाता है, जो उड़ नहीं सकता। कभी गुमसुम रहने वाला नमन आज टूरिस्ट गाईड के रुप में आवाज का जादूगर बन जाता है।
 
मधु जी की कहानियों में ग्लोबल विजन भी देखा जा सकता है। वर्तमान राष्ट्रीय-अर्न्तराष्ट्रीय स्थितियों को उजागर करती 'सनराइज इंडस्ट्री' कहानी है। अर्थ को केन्द्र में रख कर उसके इर्द-गिर्द घूमते अमित, विद्या, बीना, सुगम, अभि जैसे पात्रों को महानगरीय यांत्रिक जीवन का बोध होता है। 'अर्थ तंत्र' को छूती एक अन्य कथा 'गोल्डन व्यू' भी है जो अमृतसर के कपड़ा व्यापारियों की हालत, बिजनेस में उतार-चढ़ाव और नायक द्वारा रिजॉर्ट खोलने का प्लान, ताकि कम समय में ज्यादा मुनाफा हो; यह भी पाठक वर्ग का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है।
 
मधु जी का अनुभव, उनकी जानकारियं ऐसी हैं और इतनी हैं कि वह उनसे विविध मुद्दों पर विभिन्न तरह की कहानियां लिखवाती जाती है। बाजारवाद के चित्र प्रस्तुत करती कहानी 'दीपावली@अस्पताल.कॉम' है, जहां अस्पताल का परिवेश 5 स्टार होटल जैसा है, डॉक्टर अब भगवान के रुप में नहीं बल्कि व्यापारी-डाकू बन बैठै है। जिनका काम मरीजों को लूटना है। कुशल व्यापारी की तरह मरीजों को इलाज के लिए पैकेज दिए जाते है। इसी तरह शिक्षा जगत के सत्य को उद्घाटित करती कहानियां 'इंटेलैक्चुअल', 'शोधतंत्र', 'संगोष्ठी', 'ग्रांट' आदि है। जहां शिक्षा क्षेत्र में पनपी धूर्तता, हेराफेरी, भ्रष्टाचार की पोल खोली हैं। 
 
किसी ओर के थीसिस को अपने नाम का लेबल देकर शीर्षक-उपशीर्षक बदल कर सबमिट किए जाते है। 'शोधतंत्र' में स्कॉलर्स का किस ढंग से शोषण होता है, इसके चित्र देखे जा सकते हैं। सेमिनारों को लेकर चलने वाली खींचातानी जो अब ज्ञान विस्तार का साधन न होकर राजनैतिक चालों और पैसा ऐंठने का साधन मात्र रह गए हैं 'संगोष्ठी' एवं 'ग्रांट' में यह दृश्य देखा जा सकता है।
 
समीक्ष्य संगह की कहानियां सीधे जनमानस से जुड़ी है। यह कल्पना लोक की कोरी-ख्याली उड़ान नहीं है। इनमें मानव जीवन के विधि पहलुओं के स्याह-सफेद दोनों पक्ष अपने समग्र रुप में उपस्थित है। मानव जीवन की खुशियां, दुःख-दर्द, आशा-निराशा भी है, कहीं लडखड़ा कर फिर से खड़े होने और विश्वास-दृढ़ता से आगे बढ़ते रहने की कथा भी है। जैसे 'फ्रैक्चर', 'तन्वी' आदि।
 
मधु जी की कहानियों का आकार संक्षिप्त है। छोटे कथ्य में महत्वपूर्ण संदेश बयान करने का जो कौशल लेखिका के पास है, वह उनकी विशिष्टता है। इनकी कहानियां अपने छोटे कथ्य में बड़ी बात कहने की क्षमता रखती है। 
 
'संगणक' में कंप्यूटर मानव जीवन का अहम्‌ अंग बन गया है। इस मल्टी-मीडिया के आते टीवी,पुस्तकों ने गौण रुप ले लिया है। 'मैरिज ब्यूरो' में युवा पीढ़ी का मोबाइल के प्रति बढ़ते रुझान, ओपोजिट सेक्स का एक-दूसरे के प्रति रुझान दर्शाती कथा है। 'मुन्ना' के बाल मनोविज्ञान को दर्शाया गया है।
 
संग्रह के दूसरे खण्ड में लघुकथाएं है। इनमें मधु जी ने पूरी गंभीरता और नई दृष्टि से घर-परिवार की कितनी ही अनजानी स्थितियों का चित्रण करने में सफल रही है। इनमें अत्यन्त सहज रुप में भोगे हुए यथार्थ की अनुभूति उपस्थित है। जैसे संयुक्त परिवारों में टूटन की समस्या (अभिसारिका' व वसीयत' में) नारी अस्तित्व ('बिगडैल औरत', 'लेडी डॉक्टर', 'शुभ चिन्तक', 'सती' में) देखी जा सकती है। समीक्ष्य कृति की हर कथ्य जीवन का एक अलग चित्र प्रस्तुत करता है, जहां संवेदनात्मक भाव भूमि पर विस्तार मिलता है। इसलिए संवेदना के स्तर पर पाठक वर्ग से यह संबंध स्थापित करती है।
 
पात्र किसी भी स्थान, वर्ग या आयु के हो लेकिन उनके मन के तन्तुओं को पकड़ने में सक्षम है। इनकी रचनाएं समय और समाज की भीतरी तहों, में छिपी सच्चाइयां प्रकट करती है जैसे जूनियर-सीनियर के बीच चलने वाले  शीत युद्ध को 'अनुशासन' में देखा जा सकता है। 
 
शिक्षा जगत में पनपी भ्रष्टाचार 'पहिया जाम', 'फटकार', 'ब्रहम राक्षम का वरदान', 'अवॉर्ड', 'विमोचन', 'परीक्षा और साक्षात्कार' में हुआ है। समीक्ष्य कृति की भाषा पाठकों की अपनी भाषा है। कहीं कोई बनावट प्रतीत नहीं होती। मधु जी ने भाषा का एक ऐसा खूबसूरत प्रयोग किया है कि पाठक उसकी गिरफ्त में आने से बच नहीं सकता। अंग्रेजी के शब्द-वाक्य यदा-कदा देखे जा सकते हैं।
 
अंत में यह कहना अप्रसांगिक न होगा कि मधु जी का समीक्ष्य संग्रह मानव मन को पूरी सहजता और सच्चाई के साथ प्रस्तुत करता है। जहां कोई बनावट नहीं, कोई सोचा-समझा ढांचा नहीं। बल्कि वह जीवनानुभव का गहन अवगाहन है। संग्रह के कथ्य रोचक है, जिज्ञासामय है। इनको पढ़ते हुए बीच में छोड़ने का मन नहीं करता। पाठक विवशतापूर्वक पन्ने के बाद पन्ना पढ़ना चला जाता है। यही विशेषताएं उन्हें सिद्धहस्त रचनाकार सिद्ध करती है।
 
 
पुस्तक : दीपावली/अस्पताल.कॉम
लेखिका : डॉ. मधु सन्धु
प्रकाशन : अयन प्रकाशन, दिल्ली
प्रथम संस्करण, 2015
पृ. संख्या 128
 
 
समीक्षक : डॉ. बोस्की मैंगी
हिन्दू कन्या महाविद्यालय धारीवाल
गुरदासपुर (पंजाब)