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Written By WD

World Hypertension Day : आखिर, क्यों आता है इतना गुस्सा?

World Hypertension Day : आखिर, क्यों आता है इतना गुस्सा? - World Hypertension Day
लोकमित्र 
 
युवक अपने मोबाइल के स्पीकर को फुल वॉल्यूम में खोलकर गाना सुन रहा था। पास खड़े कुछ दूसरे युवकों ने उसे आवाज धीमी करने या बंद कर देने के लिए कहा तो उसने अनदेखी कर दी। इस पर दूसरे युवाओं को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने वहीं पास में पड़े एक डंडे को पूरी ताकत से उस युवक की खोपड़ी पर दे मारा और उसकी वहीं मौत हो गई। 


 
* एक व्यक्ति सब्जी की दुकान पर सब्जी खरीदने पहुंचा। आदतन वह हर सब्जी को उठाकर खा रहा था। इस पर दुकानदार ने उसे ऐसा करने से मना किया। उस व्यक्ति को गुस्सा आ गया और दोनों के बीच झगड़ा होने लगा। अंततः झगड़ा इतना बड़ा हो गया कि जो व्यक्ति सब्जी उठा-उठाकर खा रहा था उसने सब्जी वाले की चाकू घोंपकर हत्या कर दी। 
 
* ट्रैफिक पुलिस के सिपाही ने एक रिक्शे वाले के रिक्शे की हवा निकाल दी; क्योंकि वह बार-बार मना करने के बावजूद वहाँ रिक्शा लेकर आ रहा था, जहां के लिए उसे मना किया जा रहा था। इस पर रिक्शे वाले को इतना गुस्सा आया कि उसने पुलिसकर्मी से वह सुआ छीनकर जिससे उसने उसके रिक्शे की हवा निकाली थी, उसके पेट में घुसा दिया। पुलिसकर्मी को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन रास्ते में उसकी मौत हो गई। 
 
यकायक भड़के गुस्से के ये मामले राजधानी के हैं और इनकी फेहरिस्त यहीं नहीं खत्म होती। यह अकेले राजधानी दिल्ली का किस्सा नहीं है। क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ऑफ इंडिया के आंकड़े बताते हैं कि भारत में लोगों का पारा बहुत तेजी से गर्म हो रहा है। हर साल 30 से 32 फीसद हत्याएं अचानक भड़के गुस्से का नतीजा होती हैं। 
 
सवाल है, इसका कारण क्या है? आखिर हम इस कदर क्यों उबल रहे हैं?

इस तमाम गुस्से का कारण है हमारी लाइफस्टाइल में बढ़ती व्यस्तता, तनाव, निराशा, उम्मीदों से कम होती सफलता की दर और क्षमताओं से कहीं ज्यादा तय किए गए टारगेट। ये सब मिलकर हमें तोड़ रहे हैं। शहरी लोग दिन-ब-दिन तनाव की पराकाष्ठा की तरफ बढ़ रहे हैं। 

उस पर सड़कों पर लगने वाला जाम और मौसम की अनियमितता आग में घी का काम करती है। लोग उबल पड़ते हैं। जरा-सी बात में कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाते हैं। हर गुजरते साल रोष में होश खोने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है। यह इजाफा बताता है कि किस तरह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में हमारे कामकाज हावी हो गए हैं। 
 
हालाँकि तात्कालिक और तुलनात्मक रूप से देखें तो सफलताओं की दर बढ़ी है, लेकिन अब इच्छाओं को क्या कहिए, जो तमाम बढ़ी हुई सफलताओं को भी बौना साबित कर देती हैं? इतनी छोटी-छोटी वजहों से लोग भड़क उठते हैं कि उनको सुनकर हास्यास्पद लगता है। 
 
 
क्या है गुस्से का मनोविज्ञान 

अगर गुस्से को विज्ञान की नजर से देखें तो किसी व्यक्ति के खुश रहने या नाराज होने की स्थिति के लिए उसके दिमाग में मौजूद सेरोटोनिन का स्तर जिम्मेदार होता है। लंबे समय तक अगर कोई तनाव में रहता है, खुश रहने की उसे वजह ढूँढे नहीं मिलतीं तो ऐसे लोगों के दिमाग में सेरोटोनिन का स्तर 50 फीसद तक घट जाता है यानी कुदरती तौर पर एक सामान्य इंसान के दिमाग में सेरोटोनिन का जो स्तर मौजूद रहना चाहिए, उससे यह 50 फीसद कम हो जाता है।

ऐसा लोग उन लोगों के मुकाबले, जिनके दिमाग में सेरोटोनिन की मौजूदगी स्वाभाविक स्तर पर है, 50 फीसद ज्यादा गुस्सैल होते हैं यानी गुस्से के मामले में ये उनके डबल होते हैं। जैसे-जैसे शरीर में सेरोटोनिन की मात्रा कम होती है, गुस्से की मात्रा बढ़ती जाती है। यही कारण है कि जब सेरोटोनिन की मात्रा घटकर 10 फीसद के आसपास पहुँच जाती है तो ऐसे लोग जरा-सी बात पर ही उखड़ जाते हैं और जान लेने-देने पर उतारू हो जाते हैं। 
 
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक 

मनोचिकित्सक डॉ. ओमप्रकाश कहते हैं, 'तुरंत गुस्से का अधिक स्तर आमतौर पर उन लोगों में ज्यादा देखने को मिलता है, जो सामान्य स्थिति में खुश नहीं रहते, जिन्हें खुश रहने की आदत नहीं होती, जिनमें खुश रहने की प्रवृत्ति नहीं होती। ऐसे लोग गुस्सा होने के लिए बस बहाने की तलाश में रहते हैं। जरा-सी बात कोई उन्हें मिली नहीं कि दहक उठते हैं। 


 
दरअसल जो लोग ज्यादा समय तक तनाव में रहते हैं या जिन लोगों की जिंदगी में खुश रहने के अवसर कम होते हैं, ऐसे लोगों की मस्तिष्क की कोशिकाएं गुस्से के लिए अनुकूल स्थिति में ढली होती हैं। 
 
ये जरा-सी बात पर इतनी जल्दी और इतने बड़े स्तर पर सक्रिय हो जाती हैं कि सामान्य व्यक्ति अंदाजा ही नहीं लगा पाता कि आखिर सामने वाले को इस तरह गुस्सा क्यों आ रहा है?' जब गुस्से का नशा दिलोदिमाग पर हावी हो जाता है तो आदमी वहशी दरिंदा हो जाता है। उस पल वह चाहकर भी ऐसा कुछ नहीं सोच पाता, जिसमें तर्क हो, जो सकारात्मक बात हो। वह उस समय परिणाम की कतई परवाह नहीं करता। गुस्से की किसी भी हद को पार कर जाना चाहता है। 
अगले पेज पर पढ़ें : गुस्से और अपराध का संबंध 

अपराध के बढ़ते ग्राफ में तेजी से बढ़े गुस्से का जबरदस्त रोल है। पूरी दुनिया के चिकित्सक, मानव विज्ञानी और मनोविद इस बात के व्यापक अध्ययन में लगे हुए हैं कि किस तरह क्षणिक आवेश में होने वाले अपराधों की मूल वजह को पहचाना जाए। 

अभी तक जो बातें पहचान में आई हैं, उनका जितना रासायनिक रिश्ता है, उससे कम भौतिक रिश्ता नहीं है, इसलिए हमें कोशिश करनी चाहिए कि अपनी जीवनशैली में ऐसी गतिविधियों को शामिल करें, जो गुस्से की भौतिक वजहों को कम करें, जिसका परिणाम गुस्से के रासायनिक नतीजे को भी कम करेगा।