गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By सीमान्त सुवीर

ध्वनि प्रदूषण दे रहा है बहरेपन को बुलावा : डॉ. तारे

ध्वनि प्रदूषण दे रहा है बहरेपन को बुलावा : डॉ. तारे - Noise pollution, Indore,Dr. Prakash Tare,ESI Indore
वर्तमान समय में स्वस्थ शरीर ही इंसान की सबसे बड़ी दौलत है और इस दौलत को हर व्यक्ति अपने पास रखना चाहता है लेकिन शहरों में बढ़ते ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण के दुष्‍प्रभाव से कई खतरनाक बीमारियों को अपना घर बनाने में देर नहीं लगती। कर्मचारी राज्य बीमा निगम के संयुक्त संचालक और इंदौर शहर के ख्यात नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रकाश तारे ने 'वेबदुनिया' से खास बातचीत की।
डॉ. तारे ने बताया कि शहर में ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों की श्रवण क्षमता धीरे-धीरे बहुत क्षीण होने लगी है। अकेले इंदौर शहर में ही सुनने की क्षमता क्षीण होने वाले मरीजों की संख्या में बेहताशा वृद्धि हो रही है। कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESI) के बाह्य रोगी विभाग में हर महीने 300 से 400 मरीज आ रहे हैं, जो कान से कम सुनाई देने की पीड़ा से ग्रस्त हैं। हैरत की बात तो यह है कि ये मरीज 20 से 40 वर्ष आयु के हैं।
डॉ. तारे के अनुसार, हम ESI से बीमित व्यक्ति को प्रतिमाह 24 से 26 मशीनें (कान से सुनने की) उपलब्ध करवा रहे हैं। ध्वनि प्रदूषण की वजह से कान से कम सुनाई देने के पीड़ितों की संख्या बढ़ना वास्तव में चिंता का विषय है। मध्यप्रदेश सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद हम देख रहे हैं कि युवाओं में कम सुनाई देने की समस्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। इस समस्या को लेकर इंदौर के अलावा पीथमपुर और महू के मरीज भी हमारे पास आते हैं, जिनका हम उपचार करते हैं।

 कर्मचारी राज्य बीमा निगम के संयुक्त संचालक डॉक्टर प्रकाश तारे 
कम सुनाई देने के कारण : डॉक्टर तारे के मुताबिक, कम सुनाई देने के कारण हैं ध्वनि प्रदूषण, प्रेशर हॉर्न, डीजे की तेज आवाज, मोबाइल फोन, ईयर फोन लगाकर तेज आवाज में गाने सुनना आदि हैं। इसके अलावा कम सुनाई देने की एक वजह कान में अतिरिक्त वेक्स का जमा होना भी है। इस वजह के कारण कानों में सूजन आ जाती है।
 
कम सुनाई देने के लक्षण : 'मिनियर्स डिजीज़' में ध्वनि प्रदूषण के कारण मरीज को कान में सीटी बजने जैसी आवाज आने लगती है। इसके बाद से उसे चक्कर आने शुरू हो जाते हैं। धीरे-धीरे पीड़ित व्यक्ति को कम सुनाई देने लगता है। जब ये बीमारी अपने चरम पर पहुंचती है, तब व्यक्ति को कान से सुनाई देना पूरी तरह से बंद हो जाता है। इस अवस्था में कान से सुनने के लिए मशीन लगवाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं रह जाता है। 
 
सर्जरी करवाने से भी लाभ नहीं : डॉ. तारे ने बताया कि जिन लोगों को कान से सुनाई देना बंद हो जाता है, उसमें सर्जरी करवाने से कोई लाभ नहीं होता क्योंकि शरीर की संरचना में कान के भीतरी हिस्से की बनावट कुछ इस तरह की है, वहां पर जब एक बार सुनाई देना बंद हो जाता है तो उस जगह को किसी भी तरह की चीरफाड़ करके दुरुस्त नहीं किया जा सकता। एक बार यदि आपकी श्रवण क्षमता पूरी तरह से नष्ट हो गई तो उसका दूसरा विकल्प सिर्फ और सिर्फ मशीन के माध्यम से ही श्रवण क्षमता को प्राप्त किया जा सकता है।
 
श्रवण क्षमता को संरक्षित रखने के उपाय : उन्होंने बताया कि हम प्रकृति द्वारा प्रदत्‍त सुनने की क्षमता को जितना हो सके बचा सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले जरुरी यह है कि जो बच्चे या युवा घंटों तक संगीत का आनंद लेने के लिए ईयर फोन का इस्तेमाल करते हैं, वे उससे बचें। संगीत सुनना भी है तो उसे कम वॉल्यूम में सुनें लेकिन अधिक देर तक नहीं। लंबे समय तक मोबाइल को कान से चिपकाएं नहीं। डीजे पर बजने वाले तेज संगीत से बचें। जॉनसन बर्ड से अपने कान साफ करें। कान में कुछ भी दिक्कत हो तो सक्षम चिकित्सक से अपना उपचार कराएं। कान का मैल साफ करने वाले नीम-हकीम से दूर रहें क्योंकि वे उपचार करने के दौरान आपके कान का पर्दा तक फाड़ सकते हैं, यही नहीं इससे कान में चोट अथवा घाव तक हो सकता है।
 
शहर को स्मार्ट सिटी बनाने में योगदान दें : कर्मचारी राज्य बीमा निगम के संयुक्त संचालक डॉ. तारे ने प्रेशर हॉर्न का प्रयोग करने वाले वाहन चालकों से अपील है कि वे ध्वनि प्रदूषण नहीं फैलाएं। साथ ही जो युवा अपने वाहनों में तेज हॉर्न लगवाते हैं, वे भी उससे परहेज करें क्योंकि वे नहीं जानते कि तेज ध्वनि से वे दूसरे लोगों का कितना नुकसान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारा इंदौर शहर 'स्मार्ट सिटी' बनने जा रहा है और शहरवासियों को भी चाहिए कि वह अच्छे नागरिक होने का परिचय देते हुए ध्वनि प्रदूषण को जितना नियंत्रित कर सकते हैं, करें। इस बात को याद रखें कि एक बार कुदरती रूप से सुनने की क्षमता खत्म हो गई तो दुनिया की कोई भी सर्जरी उसे दोबारा नहीं लौटा सकती।