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Written By प्रीति सोनी

सावधान! मार न दे यह मिलावट...

सावधान! मार न दे यह मिलावट... - Milawat
अन्न, फल, सब्जी, दूध या फिर अन्य खाद्य पदार्थ... सब कुछ तो कमोबेश दूषित हो चुके हैं, जहरीले हो चुके हैं। कुछ रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रभाव से तो कुछ मिलावटखोरों की दूषित मानसिकता और लाच से। तिल-तिल कर जहर आदमी के शरीर में जा रहा है। इससे वह गंभीर बीमारियों का भी शिकार हो रहा है। आम आदमी जानते हुए भी मजबूर है, क्योंकि उसके पास कोई विकल्प भी तो नहीं है। पेट भरने के लिए अन्न और सब्जियां तो खाएगा ही। लेकिन, कुछ गैर जरूरी चीजों से दूरी बनाकर वह अपने शरीर में जाने वाले जहर के कुछ अंश को तो कम कर ही सकता है....
वर्तमान में प्रत्येक सामान्य व्यक्ति यह बात अच्छी तरह से जान और समझ रहा है कि वह जिस खाद्य सामग्री का इस्तेमाल कर रहा है, वह मिलावट से अछूती नहीं है। लेकिन समय-समय पर खाद्य सामग्री में मिलावट की सूचनाओं को हवा मिलने के बाद स्वास्थ्य के प्रति हो रहे इस खिलवाड़ के प्रति जागरुकता बढ़ना स्वाभाविक है।
 
मैगी नूडल्स में सीसा पाए जाने का मामला ठंडा होने के बाद, हाल ही में सीएसई की जांच के दौरान ब्रेड में पोटेशियम ब्रोमेट और आयोडेट के व्यापक मात्रा पाए जाने और ब्रेड जैसी दैनिक उपभोग की वस्तुओं में कैंसर पैदा करने वाले हानिकारक पदार्थों की पुष्टि होने के बाद एक बार फिर आम इंसान सकते में है।
अब सवाल यह नहीं रहा के खाद्य पदार्थों में मिलावट है...अब सवाल यह है कि खाद्य पदार्थों में मिलावट को कैसे पहचाना जाए और उससे कैसे बचा जाए। आइए एक नजर डालते हैं यहां - 
  
 
हालांकि दैनिक उपभोग के खाद्य पदार्थों में मिलावट का यह कोई पहला मामला नहीं है। तकनीक के इस दौर में प्लास्ट‍िक के बने चावल हों या अंडे व पत्तागोभी  जैसी प्राकृतिक वस्तु, मिलावट के षड्यंत्र में इनकी भी नकल तैयार हो चुकी है। इससे पहले कार्बाइड के इंजेक्शन से पके फलों, सब्जियों, मसालों में बुरादे से लेकर रसायनों और तेल, घी, चीनी, दाल, चावल आदि के साथ-साथ अमृत माने जाने वाले दूध में भी मिलावट के इस विष का दंश लग चुका है।
 
न केवल दैनिक जीवन की वस्तुएं बल्कि, हमारे तीज-त्योहारों में मुंह मीठा करती दूध और मावे की बनी मिठाइयां भी अब मिलावट के चलते कई बार खुशियों भरे माहौल को गम में तब्दील करती नजर आती हैं, जिसका जीता जागता गवाह हमारा मीडिया और त्योहारों पर धड़ल्ले से पकड़ाने वाला दूषित जहारीला मावा है। 
 
फलों को जल्दी पकाने के लिए पेस्टीसाइड्स का इस्तेमाल और सब्जियों को जल्दी उगाने और बढ़ाने के लिए रसायनों का प्रयोग भी अब बेहद आम हो चुका है। फलों का चटख रंग अब उनके स्वाद और पौष्ट‍िकता की नहीं बल्कि मिलावट और रसायनिक प्रयोगों की निशानी है और लौकी, कद्दू व अन्य सब्जियों का बड़ा आकार रसायनों की कला मात्र। 
 
यहां तक की दवाओं में भी मिलावट का होना, गंभीरता के स्तर को दिखाने के लिए काफी है। भारत में 85 हजार करोड़ के दवा कारोबार में से 20 प्रतिशत, यानी 15 हजार करोड़ से करीब साढ़े सत्रह हजार करोड़ की दवाएं भारत में आयात हो रही हैं।
 
मुनाफे की चाह में कॉस्मेटिक से लेकर दैनिक उपयोग की चीजों और खाद्य पदार्थों तक की जाने वाली यह मिलावट संपूर्ण मनुष्य जाति के लिए एक भयानक षडयंत्र है। रोजाना सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक...आप, मैं और हम सब मिलावट के कितने ही षडयंत्रों से होकर गुजरते हैं, लेकिन न तो हमें इस षडयंत्र की भनक होती है ना ही उसके गंभीर परिणामों की।
 
खाद्य सामग्रियों पर गलत लेबल लगाने, मिलावट करने या असुरक्षित पदार्थ बेचने पर छह महीने से लेकर आजीवन कारावास का प्रावधान है। इसके साथ ही 10 लाख रुपये तक जुर्माना भी लगाया जा सकता है। 
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