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Written By WD

परीक्षा विशेष : सुनो, यह जिन्दगी की परीक्षा नहीं है....

परीक्षा विशेष : सुनो, यह जिन्दगी की परीक्षा नहीं है.... - Exam Tips
डॉ. वी.एस पाल 
 
अनुनया की पढ़ाई को लेकर समूचा घर तनावग्रस्त है। उसका छोटा भाई अपने दोस्तों को घर नहीं ला सकता, क्योंकि इससे अनुनया डिस्टर्ब हो सकती है। उसकी मां अलार्म बजने के आधा घंटे पहले उठ जाती है यह देखने के लिए कि कहीं अनुनया अलार्म को नजरअंदाज न कर दे और सोती रह जाए। पापा का टीवी देखना बिलकुल बंद है, क्योंकि इससे अनुनया का जी भी ललचा सकता है। इसलिए दिसंबर से टीवी नाममात्र को चलता है। मां की चौकन्नी नजरों से अनुनया कभी ओझल नहीं होती। 


 
मसलन नहाने में वह इतनी देर क्यों लगा रही है, से लेकर फोन या दरवाजे की घंटी का जवाब देने तक वह उठती है या मगन होकर पढ़ती रहती है। इसमें से कुछ भी मां से छिपा नहीं है। दरअसल, इस किशोरी पर चारों ओर से पढ़ाई में अव्वल आने का इतना दबाव है कि वह सहन नहीं कर पा रही है। रही-सही कसर स्कूल वाले निकाल रहे हैं। स्कूल अनुनया की तरफ से पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही उसे बोर्ड एक्जाम में बैठने देगा। 
 
वह बार-बार ली गई नकली परीक्षा में 60 से अधिक नंबर नहीं ला सकी है। टीचर ने क्लास में सभी को वॉर्निंग दी है कि 60 प्रतिशत नंबर लाने वालों को बोर्ड एक्जाम में नहीं बैठने दिया जाएगा। बुद्धिमानी का पैमाना अब 95 प्रतिशत से अधिक नंबर लाना रह गया है। हर छात्र यह समझने के लिए मजबूर है कि उसे बारहवीं की बोर्ड परीक्षा एक ही बार में पार करनी है, तो क्या किसी के लिए भी दूसरा मौका नहीं है?
 
जिंदगी और मौत के इस अनिवार्य प्रश्न का उत्तर संसार की प्रतिस्पर्धा में छिपा है। हर छात्र जानता है कि 'फेल' शब्द उसके लिए दुनिया के हर रास्ते बंद करने वाला है। यही वजह है कि बोर्ड की परीक्षा का स्वरूप जिंदगी से भी बड़ा हो गया है। असफलता के मायने है आत्महत्या।


 
दबाव में आकर गलत निर्णय ना लें

आधुनिक युग में छात्रों पर नंबरों के प्रतिशत का इतना तनाव है कि वे किसी भी तरह दूसरों से अधिक नंबर लाना चाहते हैं, नहीं मिलने पर अवसादग्रस्त होना और आत्महत्या तक उतारू हो जाना बहुत आम है। इसके अलावा कई छात्र नशीली दवाओं में तनाव हल्का करने का प्रयत्न करते पाए जाते हैं। जिन्हें कोई रास्ता नहीं मिलता वे समझते हैं कि आत्महत्या अंतिम विकल्प है। 


 
क्या करें
छात्रों को यह बताना बहुत जरूरी है कि मंजिल पाना ही नहीं, बल्कि उसकी ओर चलते रहना अधिक महत्वपूर्ण है। सफलता की सीढ़ी हर बार 90 प्रतिशत नंबरों से नहीं बल्कि सामान्य बुद्धिमानी से हल किए गए सवालों के नतीजों के जरिए मंजिल तक ले जाती है। असफलता की आशंका में अपना आज खराब न करें। दूसरों से कभी भी तुलना न करें। सहपाठी की तैयारी देखकर कुंठा न पालें। अपने किए पर भरोसा रखें। खुद पर यकीन करें। अपने आपको कमतर न समझें। जिंदगी सबको एक समान फल नहीं देती, लेकिन अवसर सभी को एक सरीखे ही मिलते हैं। याद रखें कि हमेशा दूसरा, तीसरा और चौथा मौका मिलता है। 
 
हर नया दिन एक नया अवसर लेकर आता है। हर अवसर को अपना 100 प्रतिशत प्रयत्न देकर भुनाएँ। यकीन जानिए सफलता आपके आसपास ही मँडराएगी। नंबरों के प्रतिशत पर नहीं अपने प्रयत्न की ईमानदारी पर गर्व करना सीखिए। याद रखें कि सफलता और असफलता जिंदगी के दो पहलू हैं, केवल एक नहीं। हर असफलता के साए में छिपा है सफलता का अगला दरवाजा।



यह हर माता-पिता का कर्तव्य है कि वह अपने बच्चों को समझाएं कि -सुनो, यह जिंदगी की परीक्षा नहीं है।