बुधवार, 24 अप्रैल 2024
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Written By WD

गुड़ी पड़वा विशेष : 7 संदेश सीखें इस सुंदर पर्व से

गुड़ी पड़वा विशेष :  7 संदेश सीखें इस सुंदर पर्व से - gudi padwa special article
-डॉ. साधना सुनील विवरेकर
 
नव कोंपल, नवहर्ष लाया नववर्ष
खुलते मौसम का नव उल्लास
द्वार पर आनंद ध्वजा सी
लटकी गुड़ी बिखेरे मधुमास
नीम की कटुता कम करती श्रीखंड की मधुरता
साड़ी चूड़ी बिंदी में लिपटी सरलता को सजाती मोगरे की मादकता
सुख-दुख की माला है जीवन की यथार्थता
इसे सहजता से स्वीकारने में है जीवन की सार्थकता
नववर्ष का स्वागत करती
नीम की कोंपलें लाल
शास्त्र हमारे कहते
विक्रम संवत् का नया साल





विक्रम संवत् का प्रथम मास है चैत्र व इसका प्रथम दिन गुड़ी पड़वा। इस दिन से हिन्दू व भारतीय परंपरानुसार नए वर्ष का प्रारंभ होता है। चैत्र का स्वागत करने की, ऋतु परिवर्तन को समझने की इसे उत्सव या पर्व स्वरूप मनाने की परंपराएं प्राचीन समय से चली आ रही हैं। इस प्रकृति को परंपराओं के बहाने समझने, उसके सान्निध्य का महत्व समझने, उसे संरक्षण दे स्वहित में उससे आत्मीयता स्थापित करने की परिपाटियों का निर्वहन करने का संस्कार हमें विरासत में मिला है। 
 
आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल हो अपना अस्तित्व तक दांव पर लग चुका है। ऐसे में ये पर्व हमें याद दिलाते हैं कि सच्ची प्रगति का सुख व सुकून भौतिक सुखों की प्राप्ति में नहीं, ‍बल्कि स्वस्थ शरीर व प्रेमभरे रिश्तों में है। सच्चा आनंद प्रकृति के सान्निध्य में है व सच्ची प्रसन्नता अपनों के साथ परंपराओं के निर्वाह में है। गुड़ी पड़वा के साथ प्रारंभ होने वाला नववर्ष सृष्टि की संरचना के प्रथम दिन का स्वागत करने हेतु हमारे परिवारों में जो परंपराएं हैं उसका प्रत्येक चरण प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक का अपना महत्व है, जो हमें जीवन जीने की कला सहजता से सिखाती है। 

1. गुड़ी की सजावट : स्त्री सम्मान व सशक्तीकरण

हर परिवार में अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार जो भी सुंदर से सुंदर साड़ी घर की स्त्री की होती है, उसे लकड़ी पर लपेटकर उसके साथ खण (ब्लाउज का टुकड़ा), बिंदी, मंगलसूत्र, चूड़ी से सजाकर रस्सी से बांध घर के द्वार पर ध्वजा के रूप में फहराया जाता है, जो प्रतीक है स्त्री के सम्मान व सशक्तीकरण का। परिवार की हर स्त्री प्रगति व सफलता के परचम फहराए व ये आभूषण उसकी दुर्बलता नहीं गौरव व गरिमा के प्रतीक हैं, यही संदेश देती है सजी-संवरी गुड़ी। 




2. सूर्योदय के समय गुड़ी का बांधना : सूर्य ऊर्जा का महत्व 
हमारी संस्कृति में सूर्य का सबसे अधिक महत्व रहा है। सूर्य साक्षात ईश्वर है जिसे आप देख सकते हैं। उसकी ऊर्जा को महसूस कर महत्व समझते हैं व इसी की ऊर्जा से सृष्टि चलायमान है। सुबह की सूर्य किरणें पेड़-पौधों, पशु-पक्षी, इंसान सभी के लिए अतिमहत्वपूर्ण हैं अत: हमारी संस्कृ‍ति में हर कार्य सूर्योदय के होते ही करने की परंपराएं हैं। नई पीढ़ी जो विटामिन 'डी' की कमी से उत्पन्न रोगों का कष्ट भोगने को मजबूर है, ये परंपराएं अपना महत्व पुन: प्रतिपादित करने के लिए सक्षम हैं। 



सुबह जल्दी उठना व सारे काम सूर्योदय पूर्व करके नहा-धोकर अपने दैनिक जीवन की शुरुआत नए वर्ष से डालने की आदत जीवन को सरल व स्वस्थ बनाती हैं।

3. सामंजस्य : पुरुष बांधे, स्त्री थामे
गुड़ी को घर के पुरुष, भाई, पिता, पति या पुत्र बांधते हैं। पर हर चीज उपलब्ध पत्नी, मां या बेटी कराती है। हर परिवार स्त्री-पुरुष के आपसी सामंजस्य से ही चलता है। गुड़ी बांधे भले पुरुष, थामते तो स्त्री के ही हाथ हैं। गुड़ी के आगे रंगोली निकाल प्रथम पूजन का अधिकार स्त्री का ही है अत: सामंजस्य से जीवन चलाने का एक-दूसरे को सम्मान देना व एक-दूसरे का सम्मान बनाए रखना, प्रेम से रिश्तों को बनाना पर्व ही सिखाते हैं। 




 

4. नीम की कोंपलें : कड़वाहट को पचाने का जज्बा
गुड़ी को सजाने के लिए नीम की कोंपलें लगाई जातीं। ये स्वास्‍थ्यवर्धक हैं अत: प्रतीकस्वरूप पत्ता खाया भी जाता है। नीम की कड़वाहट प्रतीक है जीवन में सुख के साथ दुख, संघर्ष व वेदनाएं भी होंगी। उन्हें सहजता से स्वीकार करने की मानसिकता विकसित करनी ही होगी व उन्हें पचाने का, उनसे लड़ने का व उसमें भी आशा की किरणों को ढूंढने का प्रयास करना होगा।




5. शकर की गांठें : सुख में भी सब साथ 
गुड़ी को शकर की गांठों से सजाया जाता है। नीम की कड़वाहट को पचाने, बुरी यादों व बुरे दिनों को भूल मिठास के रस में डूब जाने का प्रतीक हैं ये गांठें। साथ ही माला प्रतीक है कि सुख में भी हम आत्मजनों, स्नेहीजनों, मित्रों से सदा जुड़े रहें, तभी सुख द्विगुणित होगा। 




 

6. श्रीखंड की मधुरता : रिश्तों की सरसता बनाए रखें
इस पर्व पर श्रीखंड बनाने का रिवाज है। ठंड के खत्म होते ही होली के प्रारंभ से ऋतु परिवर्तन हो जाता है। मौसम में गरमी छाने लगती है व ठंडे पदार्थों पर लगा प्रतिबंध खत्म। अत: श्रीखंड मधुरता, मिठास, स्निग्धता लिए हाजिर होता है ठंडक देने के लिए। इसे बनाते समय दही की खटास को शकर के संतुलन से कम कर मिठास भर दी जाती है। केसर, जायफल व इलायची का मिश्रण इसका जायका बढ़ाता है, रंग लाता है व महक बढ़ाता है। रिश्तों की सरसता ऐसे ही तो बनती है। अहं भाव का त्याग, प्रेम-स्नेह की मिठास व थोड़ा समर्पण, थोड़ा त्याग, थोड़ा मौन और आपसी विश्वास इनमें प्रगाढ़ता लाता है। 



 

7. मोगरे की माला : रिश्तों को महकाएं अपनत्व से
 
इस मौसम में मोगरा महकने लगता है। यह अपनी महक से मादकता बिखेरता है। इसके कोमल सफेद फूलों की माला गुड़ी की सुंदरता को चार चांद लगाती है। मोगरे के ये छोटे-छोटे फूल संदेश देते हैं कि महक का अपना आकर्षण व महत्व है। हम अपने रिश्तों को आत्मीयता की महक से इतना भर दें कि उनका बंधन ताउम्र सुख-सुकून दे। कुछ पाने की नहीं, मात्र देने की भावना रखें। और कुछ नहीं तो वाणी में कोमलता-मधुरता व अपनत्व ही झलके।



ऐसे प्रतीक चिह्नों से सजी-धजी गुड़ी जब हर घर फहराई जाती है तो नई पीढ़ी को संस्कारों की विरासत अनायास मिल जाती है। तभी तो सात समंदर पार बसे हमारे बच्चे भी जब इन पर्वों से जुड़े रहते हैं, परंपराओं का निर्वाह वहां भी करते हैं तो दिल एक सुख-सुकून से भर जाता है।
 
भारतीय परंपरा का यह पर्व नववर्ष का यह आगमन प्रकृति को परंपराओं के बहाने समझने, संरक्षित करने व उनसे सीख ले जीवन में सामंजस्य, संतुलन व स्नेह-प्रेम बनाए रखने की प्रेरणा देता है। आगे भी इन परंपराओं का महत्व उतना ही बना रहे, अपनी संस्कृति, सभ्यता की अच्‍छी परिपाटियों का वहन, उनका महत्व समझाना नई पीढ़ी को आत्मसात करवाना हमारा ही दायित्व है।