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Written By Author जयदीप कर्णिक

शिवकुमार शर्मा जितवाएंगे राजनाथसिंह को...

शिवकुमार शर्मा जितवाएंगे राजनाथसिंह को... -
लखनऊ। शिवकुमार शर्मा। एक ऐसी ‍शख्सियत, जो पिछले 37 साल से निजी सहायक के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हैं। उन्होंने अटलजी की राजनीति को करीब से देखा है, समझा है और परखा भी है। फिलहाल वे वाजपेयी के प्रतिनिधि के रूप में लखनऊ में मौजूद हैं और भाजपा अध्यक्ष राजनाथसिंह को चुनाव जिताने के लिए मोर्चा संभाल लिया है। वे मूलत: राजस्थान के रहने वाले हैं। राजनाथ को अटलजी द्वारा भेजा गया अंगवस्त्र भी वे ही लेकर आए थे।
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अटलजी को लखनऊ से चुनाव लड़वाने का श्रेय शिवकुमार को ही जाता है। वे राजनाथ की चुनाव कोर कमेटी के अध्यक्ष हैं। राजनाथ भी जानते हैं कि अटलजी के नाम के बिना वे चुनावी वैतरणी पार नहीं कर सकते। इसीलिए वे शिवकुमार को पूरी-पूरी अहमियत दे रहे हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी शिवकुमार को उन्होंने अपने पास ही बैठाया था ताकि वे अटलजी से अपनी निकटता दिखा सकें और उनके नाम का पूरा फायदा उठा सकें। वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक ने जब शिवकुमार जी से अटल बिहारी वाजपेयी, नरेन्द्र मोदी और राजनाथसिंह से जुड़े मुद्दों पर बातचीत की तो उन्होंने खुलकर सवालों के जवाब दिए। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश-

-अटलजी के साथ लंबे समय से रहते हुए आपने भाजपा की राजनीति को बहुत करीब से देखा है मगर लोगों को अब नई तरह की भाजपा दिखाई दे रही है। पहली बार ऐसा हुआ है जब किसी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया गया है। लोग कह रहे हैं कि यह अटलजी-आडवाणी वाली भाजपा नहीं है?

समय परिवर्तनशील है। हर चीज का परिवर्तन होता है। पहले टेलीफोन नहीं होता था, आज हर किसी के पास मोबाइल आ गया है। टेक्नोलॉजी बदल रही है। चुनाव की टेक्निक भी बदल रही है। भाजपा ने सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं किया है। पार्टी ने मिलकर तय किया है कि मोदीजी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया जाएगा।

-बात टेक्निक की नहीं, सिद्धांतों की है, कैडर की है। अटलजी के साथ स्वीकार्यता, दुनिया भर में सर्वग्राह्यता थी। भाजपा ने व्यक्ति के लिए अपने सिद्धांतों, अनुशासन के साथ समझौता किया है, स्वीकार्यता को खोया है?
अटलजी एक ही व्यक्ति थे, जो पार्टी को इतनी ऊंचाई पर ले गए थे। वे एक सीट से पार्टी को 184-185 तक लेकर गए। अटलजी के पीछे पार्टी थी। उन्होंने 50 साल से लगातार भारत का दौरा किया। मोदी ने भी प्रचारक के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की। गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद मोदी की स्वीकार्यता शुरू हुई। पार्टी को ऐसा चेहरा चाहिए था जो सभी को मान्य हो। पार्टी के सभी लोगों ने मोदी को माना है। आडवाणीजी ने भी मोदी को स्वीकार किया है।

-क्या पार्टी की वर्तमान दशा-दिशा पर अटलजी से कोई बात होती है, वे इस बारे में कोई विचार व्यक्त करते हैं?
अटलजी ने 2005 में मुंबई अधिवेशन में सार्वजनिक रूप से यह घोषणा कर दी थी कि वे आम चुनाव नहीं लड़ेंगे और राजनीति में भाग नहीं लेंगे। जब तक वे स्वस्थ थे, पार्टी की चर्चाओं में भाग लेते थे। अब न वे स्वस्थ हैं, न अस्वस्थ, वे वृ‍द्धावस्था नामक बीमारी से ग्रस्त हैं। वे भावों से अपनी बात बताते हैं।

-क्या वे मोदीजी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने से खुश हैं, क्या वे मानते हैं कि मोदी प्रधानमंत्री बन जाएंगे?
अटलजी भावों से बताते हैं कि वे मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाए जाने से खुश हैं। उनका कहना है अगर जनता चाहेगी तो मोदी प्रधानमंत्री बन जाएंगे।

-अटलजी ही वे व्यक्ति थे जिन्होंने गुजरात दंगों के बाद कहा था कि नरेन्द्र मोदी को राजधर्म का पालन करना चाहिए था?
अटलजी आज भी तो यह बात कह रहे हैं कि राजधर्म का पालन करना था। नरेन्द्र मोदी को राजा तो बनाओ तभी तो वे राजधर्म का पालन करेंगे। जहां तक माफी की बात है तो अटलजी ने उन्हें कोई सजा ही नहीं दी तो माफी कैसी। साथ ही वे कहते हैं कि यदि गुजरात दंगों के समय अटलजी और मोदी के बीच हुआ पत्राचार सार्वजनिक होता है तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती है।