गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. पर्यावरण विशेष
  4. climate change effects
Written By WD

नष्ट होते धरती के स्वर्ग, नर्क बनी निवासियों की जिन्दगी...

नष्ट होते धरती के स्वर्ग, नर्क बनी निवासियों की जिन्दगी... - climate change effects
धरती के स्वर्ग कहलाने वाले समुद्री वन सुन्दरवन डेल्टा जो अपने शीतल जल और मनोरम वातावरण के लिए याद किया जाता था, आज वहां की धरती और पानी दोनों ही इतने अधिक गर्म हो गए हैं जितना पहले कभी नहीं हुए। मैंग्रोव से आच्छादित इसे सुन्दरवन डेल्टा के दक्षिण-पश्चिम में एक द्वीप है मौसिमी। इसी द्वीप की गोद में बसा है बालिहार गांव। इस गांव में रहने वाले किसान, मुस्तफा अली खान की 12 बीघा जमीन पिछले साल समुद्र में चली गई। पिछले दस सालों में ऐसा तीसरी बार हुआ है कि मुस्तफा का घर पानी की भेंट चढ़ गया। अब वह मछलियां पकड़कर अपने परिवार के आठ सदस्यों का पेट भर रहा है।


 
सुन्दरवन के दक्षिणी किनारों पर बसे 13 द्वीप बाढ़ के कारण समुद्री स्तर बढ़ जाने से तेजी से समुद्र में डूब रहे हैं। दो द्वीप- 1000 परिवारों की आबादी वाला लोहाचारा और बंजर सुपारिभंगा, पहले ही समुद्र में डूब रहे हैं। ऐसा चौथी बार हुआ है कि बालिहार में समुद्री जल को रोकने वाली दीवार तक ढह गई है। पांचवी बार अब बन रही है। जिन 20 परिवारों के घर पिछले साल डूब गए वे जी जान से दीवार बनाने में जुटे हैं। समुद्र के किनारों पर निर्माण कार्य के लिए सरकार भी वित्तीय सहायता दे रही है।
 
पास ही के द्वीप-सागर में भी यही हाल है। दक्षिणी तट तेजी से नष्ट हो रहा है। गुरमारा की भी यही कहानी है। पिछले तीन दशकों में इसकी करीब आधी जमीन खत्म हो गई है यहां से लोग कोलकाता चले गए हैं और रिक्शा चलाकर अपनी आजीविका चला रहे हैं। जादवपुर विश्वविद्यालय में 'स्कूल ऑफ ऑशियनोग्राफी स्टडीज' की डायरेक्टर सुगाता हाजरा कहती हैं, 'यह एक नए प्रकार का शरणार्थी वर्ग है। मैं इन्हे आपदा ग्रसित पर्यावरणीय शरणार्थी कहती हूं। ये भूकम्प और सुनामी आदि से विस्थापित हुए लोगों से अलग हैं क्योंकि ये लोग वापिस नहीं जा सकते, उनकी जमीनें तो हमेशा के लिए खत्म हो गई हैं। सरकार के पास शरणार्थियों के इस वर्ग के लिए कोई योजना नहीं है।' सुन्दरवन की प्रतिवर्ष 100 वर्ग किमी. जमीन खत्म हो रही है।
 
यहां की जलवायु-भिन्नता भी गौर करने लायक है, वैज्ञानिकों के अनुसार यह ग्लोबल वार्मिंग की वजह से है। स्थानीय लोगों का भी कहना है कि समुद्र पहले से अधिक गर्म हो गए हैं और वर्षा भी अनियमित रूप से होती है। पिछले दशक में, बंगाल की खाड़ी में चक्रवातों की संख्या में कमी आई है लेकिन तीव्रता में वृद्धि हो गई है। इस बदलाव से कृषि भी अछूती नहीं रही है। पहले इस इलाके में धान की 28 किस्में थीं, उसमें से 11 में लवणता प्रतिरोधी क्षमता थी, अब वे सभी खत्म हो गई हैं।समुद्री जल इतना दूर तक आने लगा है कि जमीन की उर्वरा शक्ति खत्म हो रही है।
 
जलवायु परिवर्तन का बैरोमीटर : 
 
चक्रवात : समुद्र पहले से अधिक गर्म है, वर्षा अधिक अनियमित है। 
 
मानसून : मानसून मानसून का मौसम जुलाई-अगस्त से खिसककर सितम्बर-अक्टूबर तक चला गया है। परिणाम-स्वरूप धान की फसल की रोपाई आदि की पूरी पद्धति ही उलट-पलट हो गई है।
 
समुद्र तल : विश्व स्तर पर समुद्र तल में औसतन 1.8 मिमी. प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है लेकिन बंगाल बेसिन में 'निओ-टेक्टानिक मूवमेंट', जो अब पूर्व की ओर झुक रहा है, के कारण सुन्दरवन में अधिक वृद्धि हो रही है। सागर द्वीप पर यह वृद्धि 3-14 मिमी. है।
 
बाघ : कुछ स्थानों में खारा पानी डेल्टा के अन्दर 15 किमी. तक चला गया है, इससे बाघ घनी आबादी वाले द्वीप के उत्तरी भागों में पलायन कर गए हैं। परिणामत: मानव-पशु संघर्ष के खतरे बढ़ रहे हैं।
 
मछलियां : मछलियां मछलियां, जो कभी समुद्र के किनारे पर आसानी से मिल जाती थी, अब गहरे पानी में चली गई हैं। हताश ग्रामीण, जो कुछ भी मिलता है उसे ही पकड़ लेते हैं, यहां तक कि छोटी मछलियां भी, परिणामस्वरूप समुद्री खाद्य चक्र पर दवाब बढ़ रहा है।
 
जल-संतुलन: यदि जमीन के बताए गए हिस्से में उस जमीन में जितना पानी जमा होता है यानी वर्षा के जरिए या किसी अन्य तरीके से साफ पानी जमा होता है; उसकी तुलना में यदि उस क्षेत्र से अधिक पानी निकल जाता हो। जैसे -वाष्पीकरण, पंप द्वारा निकासी आदि के कारण तो उसके परिणामस्वरूप जल-स्तर घट जाता है, जो एक दीर्घकालीन संकट का कारण बनता है ।