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Written By WD

इन्दौर का प्राणी संग्रहालय

इन्दौर का प्राणी संग्रहालय -
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केंद्रीय संग्रहालय, इंदौर एक राज्य स्तरीय संग्रहालय है, जहाँ मालवा से प्राप्त पुरावशेषों को एकत्रित कर शोधाथिर्यों एवं पर्यटकों एवं जनसामान्य को जानकारी उपलब्ध कराई जाती है। केंद्रीय संग्रहालय भवन में मूर्तियाँ, जो अधिकांश परमार कालीन विशेषता लिए हुए हैं, के अतिरिक्त अभिलेख, मुद्राएँ, इटैलियन कलाकृतियाँ प्रदर्शित की गई हैं।

केंद्रीय संग्रहालय इंदौर की स्थापना 29 नवंबर, 1923 में हुई थी। यह तत्कालीन आयुक्त डॉ. अरुण्डले के निर्देशन में नररत्न मंदिर से प्रारम्भ हुआ। इसमें सबसे पहले 60 छायाचित्र तथा इस्लामी पुस्तक तथा 100 ग्रंथ रखे गए। एक अक्टूबर 1929 को इस संस्था को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया और कृष्णपुरा स्थित भवन, जहाँ वर्तमान में देवलालीकर कला वीथिका है, में दर्शकों के लिए प्रारंभ किया गया।

सन् 1930 में दसवीं शती की प्रतिमाएँ और प्रस्तर अभिलेख, उनके छापे, कुछ ताम्रपत्र संग्रहीत किए गए। सन् 1931 में यह संग्रहालय, जो शिक्षा विभाग के अधीन था, पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया। स्थानीय लोगों के रुझान को देखते हुए आगरा-बाम्बे मार्ग पर नवीन संग्रहालय भवन की स्थापना कर यहाँ पर संग्रहालय विधा के अनुरूप पुरावशेषों को प्रदर्शित किया गया। इस संग्रहालय का कुल क्षेत्रफल 10804 वर्गफुट है तथा यह दोमंजिला है।

इस संग्रहालय में पुरावशेषों के प्रदर्शन के लिए छः वीथिकाएँ बनाई गई हैं। स्थानीय संग्रहों के साथ-साथ मध्यप्रदेश में हुए उत्खननों से प्राप्त पुरावशेष, सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों के प्रदर्शन के साथ-साथ हिंगलाजगढ़ की परमारकालीन विशिष्ट प्रतिमाओं का संग्रह इस संग्रहालय के लिए महत्वपू्र्ण माना जाता है। प्रस्तर अभिलेखों व उनके छापों के साथ-साथ ताम्र पत्रों को भी प्रदर्शित किया गया है। प्राचीन मुद्रा प्रणाली को जानने के लिए मुद्रा प्रचलन से लेकर मुगलकालीन सिक्कों तक को प्रदर्शित किया गया है।

पुरावस्तु वीथी
यहाँ से संग्रहालय का वास्तविक प्रदर्शन प्रारंभ होता है। सबसे पहले पुरावस्तु वीथिका है, जिसमें मानव का विकास तथा उसकी संस्कृतियों के विस्तार को क्रमबद्ध रूप में प्रदर्शित किया गया है। इनमें प्रदेश के विभिन्न स्थानों से प्राप्त मानव एवं पशुओं के जीवाश्म तथा पाषाण कालीन उपकरण प्रदर्शित हैं। बताया गया है कि इसी दीर्घा में सिंधु-घाटी की सभ्यता से संबंधित मोहन-जोदड़ो के उत्खनन में प्राप्त अश्मोपकरण, ताम्र उपकरण आदि प्रदर्शित हैं। इनकी तिथि 2350 ईसा पूर्व के लगभग मानी जाती है।

मालव मूर्तिकला वीथी
इस संग्रहालय की मूर्तिकला वीथिकाएँ देश में अपना अलग स्थान रखती हैं। मूर्तिकला की दृष्टि से पाषाण कलाकृतियाँ विभिन्न शैलियों और उनके क्रमिक विकास की परिचायक हैं। इस वीथिका में प्रारंभिक गुप्तकाल से उत्तर परमारकाल की कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है। यहाँ के कलाकार ने सहज, सरल और स्वाभाविक अभिव्यक्ति को सुघटित देह यष्टि और मांसल सौंदर्य के साथ जिस नजाकत, नफासत और बारीकी से तराशा है वह अद्वितीय है। इस काल में सम्पूर्ण मालवा इस प्रकार की कलाकृतियों से परिपूर्ण रहा है। इस वीथी में इंदौर व उज्जैन संभाग की कलाकृतियाँ प्रदर्शित हैं। इनमें भी उज्जैन संभाग में स्थित मंदसौर जिला इस काल में पुरातत्वीय दृष्टि से समृद्धतम रहा है।

इस दीर्घा में प्रदर्शित प्राचीनतम प्रतिमा मनासा से प्राप्त सरस्वती की है। प्रतिमा उस समय की
साम्प्रदायिक एकता को दर्शाती है। 5वीं शती ई. की अघोरिया से प्राप्त हरिहर प्रतिमा उस समय की साम्प्रदायिक एकता को दर्शाती है। वीथिका में हिंगलाजगढ़ से प्राप्त वरेश्वर तथा भानपुरा से प्राप्त त्रिमुखी कार्तिकेय को अपने वाहन मयूर के साथ ढाल व तलवार लिए हुए बताया गया है। शैवधर्म के अलावा वैष्णव धर्म से संबंधित प्रतिमाओं को भी स्थान दिया गया है। इनमें विष्णु के अवतारों में वामन व नृसिंह, युग्म प्रतिमाओं को सम्मिलित किया गया है। इस दीर्घा के बाहर बरामदे में भी हिंगलाजगढ़ से प्राप्त कलाकृतियाँ प्रदर्शित हैं। संग्रहालय कक्ष के बाहर बरामदे में देवी सरस्वती, शिव वैद्यनाथ, पार्वती और नटराज की मूर्तियाँ हैं।

बाह्य प्रदर्शन
संग्रहालय के बाहर खुले आकाश के नीचे भी प्रदर्शन किया गया है।

संग्रहालय के आँगन में

इस आँगन में 26 प्रतिमाओं को पादपीठ पर तथा 22 को दीवारों पर लगाकर प्रदर्शित किया गया है।

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संग्रहालय भवन के सामने
संग्रहालय के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने 45 प्रतिमाओं को तीन पंक्तियों में प्रदर्शित किया गया है।
यहाँ पर चार तोपें भी प्रदर्शित की गई हैं। संग्रहालय में प्रदर्शित लक्ष्मण मंदिर की प्रतिकृति के प्रागंण में 23 कलाकृतियाँ प्रदर्शित की गई हैं।

इस प्रदर्शन के अतिरिक्त संग्रहालय के आरक्षित संग्रह में भी अनेक कलाकृतियाँ, मुद्राएँ, अस्त्र-शस्त्र
एवं हस्तलिखित ग्रंथ आदि हैं। हथि्यारों में मुगल-मराठा संघर्ष के दौरान मल्हारराव होलकर को बँटवारे में प्राप्त बाबर की तोप सम्मिलित है।