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Written By WD

किंवदंतियों से‍ घिरा कामाख्या देवी मंदिर

Kamakhya Temple | किंवदंतियों से‍ घिरा कामाख्या देवी मंदिर
- सुशील सरित

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19 अप्रैल वह एक ताजगीभरी दोपहर थी, जब हम असम की राजधानी सुपारियों के लिए प्रसिद्ध नगर गुवाहाटी पहुंचे। 20 तारीख की सुबह ही हमने कामाख्या देवी के विश्वविख्यात मंदिर के पवित्र क्षे‍‍त्र में कदम रखा। देवी कामाख्या का विभिन्न किंवदंतियों, पौराणिक गाथाओं और ऐतिहासिक संदर्भों में रहस्यमय अलौकिक स्पर्श देने वाला मंदिर गुवाहाटी हृदय स्थल है।

नीले पर्वत और लाल नदी (ब्रह्मपुत्र को लाल नदी भी कहा जाता है और नीलांचल पर्वत को नीला पर्वत) के बीच मानो दोनों की गोद में खेलता प्राग् ज्योतिषपुर (इसी के विस्तृत स्वरूप को आज गुवाहाटी कहा जाता है।) से लगभग 2 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर निर्मित इस भव्य अलौकिक देवस्थल का इतिहास भी किसी रहस्यमय कथा की तरह गूढ़ार्थों से घिरा हुआ है।

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कहते हैं कि सती के आत्मदाह के बाद विरक्त ‍‍शिव जब समाधि में चले गए, तब मौका पाकर तारकासुर नामक दैत्य ने ब्रह्मा की तपस्या न कर केवल असीम शक्तियां प्राप्त कर लीं, वरन् तीनों लोकों में अन्याय और अत्याचार का वह पर्याय बन गया। इन्द्र की गद्दी छीन ली। देवों ने ब्रह्माजी से प्रार्थना की, तो ब्रह्माजी ने कहा कि शिव का पुत्र ही इस दैत्य का अंत कर सकता है।

शिव की समाधि भंग करने का कार्य कामदेव को सौंपा गया। कामदेव के बाणों से शिवजी की समाधि भंग तो हुई, किंतु अचानक समाधि टूटने का क्रोध कामदेव को भस्म कर गया। अब कामदेव की पत्नी रति एवं अन्य देवी-देवताओं ने शिव से कामदेव को जीवन देने की प्रार्थना की। तब तक सामान्य हो चुके शिव ने कामदेव को जीवनदान तो दे दिया, लेकिन कामदेव का रूप जो किसी को भी पागल कर देता था, वापस नहीं आया।


रूप और श्रीहीन कामदेव एवं रति ने निराश आंखों से शिव को देखा और पुन: याचना की- भगवन्! इस श्री एवं सौंदर्यहीन जीवन से क्या लाभ, इससे तो हम बिना शरीर के अच्‍छे थे।

शिव को भी कामदेव एवं रति की प्रार्थना का औचित्य समझ में आया। तुम्हें तुम्हारा पुराना रूप एवं श्री तो प्राप्त हो जाएगी किंतु कामरूप प्रदेश के नीलांचल पर्वत पर सती के जनन अंग हैं, उन पर एक भव्य देवस्थल का निर्माण करना होगा, शिव ने शर्त रखी।


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कामदेव ने विश्वकर्मा की सहायता से इस मंदिर का निर्माण कराया। इसमें भैरव एवं चौंसठ योगिनी की मूर्तियां भी स्थापित कीं। निर्माण पूरा होते ही कामदेव को अपना पुराना रूप वापस मिल गया। इसी कारण इस संपूर्ण स्थल का नाम कामरूप, अर्थात कामदेव ने जहां अपना रूप पुन: प्राप्त किया, पड़ा।

कामदेव द्वारा निर्मित मंदिर समय की धूल में दब गया। तब इसका पुनर्निर्माण अहोम राजाओं द्वारा कराया गया। यह उल्लेख ताम्रपत्रों पर आज भी मिलता है। इस संदर्भ में अहोम राजा रुद्रसिंह, जिन्होंने शिमला से कृष्णानंद नामक ब्राह्मण को न केवल पूजा-अर्चना वरन इस हेतु भी यहां लाकर बसाया कि वे शैव मत में दीक्षित कर सके, का नाम महत्वपूर्ण है।

1681 शक संवत् में महान अहोम राजा राजेश्वर सिंह द्वारा इस स्थल के पुनर्निर्माण का उल्लेख नट मंदिर पर उकेरा गया है। मंदिर की व्यवस्था का पूर्ण दायित्व एक ट्रस्ट पर है। ट्रस्ट के प्रतिनिधि विराज शर्मा बड़े विनम्र युवक लगे। बड़ी जल्दी उनसे अंतरंगता-सी हो गई।

विराज ने ही बताया कि अम्बूवासी उत्सव के बाद इस स्थल पर जैसे श्रद्धालुओं का तांता-सा ही लग जाता है। यूं प्रतिदिन 2 हजार से अधिक श्रद्धालु पर्यटक इस स्थल पर आते हैं, लेकिन अम्बूवासी उत्सव के बाद यह संख्या 10 गुना तक बढ़ जाती है।


कामाख्या देवस्थल पर देवधानी एक और महत्वपूर्ण उत्सव है। ड्रम, ढोल, खड़ताल आदि वाद्य यंत्रों के साथ में देवोत्सव नर्तकों के अनवरत नृत्य के साथ 2 दिन तक चलता है। नर्तक स्वप्रेरणा अथवा दैवीय प्रेरणा से महीनेभर पहले से ही इस नृत्य का अभ्यास करते हैं और अभ्यास के समय उन्हें पूर्ण सात्विक, संयमी एवं शाकाहारी जीवन जीना पड़ता है।

इन दो विशिष्ट उत्सवों के अतिरिक्त पुहाव, बियां (पुंसवन), दुर्गापूजा, रतिनी श्यामा पूजा, दुर्गादेओल, बासंती पूजा, मदन चतुरली एवं राजेश्वरी पूजा का आयोजन किया जाता है। कामाख्या पर आज 5 हजार से ज्यादा लोग निवास कर रहे हैं। यूं आतंकवाद का खतरा नजर नहीं आता, किंतु जितनी सुरक्षा की यहां आवश्यकता है, उतनी सुरक्षा व्यवस्था नहीं है।

यूं तो यहां संपूर्ण भारत से श्रद्धालुजन आते हैं, किंतु पश्चिम बंगाल का हिस्सा सबसे ज्यादा है। हां, दशहरे के आसपास बिहार एवं दिल्ली के श्रद्धालु पर्यटक अधिक आते हैं। एक बड़ी समस्या यहां अवश्य है पीने योग्य पानी की अनियमित पूर्ति जिसका समाधान होना ही चाहिए।

देवस्थल के अंदर पूर्ण आस्थायुक्त वातावरण तो है, लेकिन देवी कामाख्या का कोई विग्रह नहीं है। नीलांचन पर्वत का रम्य वातावरण, श्रद्धानत आंखों में छिपी दर्शन की प्यास, पूर्ण अनुशासित लंबी-लंबी पंक्तियां यही है कामाख्यादेवी का भावात्मक वर्णन। आप सब भी एक बार इसका दर्शन अवश्य कीजिए।

साभार - देवपुत्र