मंगलवार, 16 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. »
  3. पर्यटन
  4. »
  5. धार्मिक स्थल
  6. अद्भुत शिल्प सौंदर्य से भरपूर भुवनेश्वर
Written By WD

अद्भुत शिल्प सौंदर्य से भरपूर भुवनेश्वर

आप भी जरूर देखें भुवनेश्वर

Bhubaneswar | अद्भुत शिल्प सौंदर्य से भरपूर भुवनेश्वर

देवताओं का घर : भुवनेश्व

- रमेश गुप्त
FILE


उड़ीसा भारत के पूर्वी तट पर स्थित बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित है। पूर्व में 'कलिंग' के नाम से विख्यात इस प्रांत को उत्कल भी कहा जाता रहा है। यहां का 480 किलोमीटर लंबा समुद्री किनारा बड़ा खूबसूरत है।

यहां पारादीप बंदरगाह है और महानदी का डेल्टा भी है। हीराकुंड बांध भी है, जो विश्व का सबसे लंबा मिट्टी का बांध है। पुरी में भगवान जगन्नाथ का मंदिर है तथा कोणार्क का विश्वप्रस‍िद्ध सूर्य मंदिर भी उड़ीसा में है।

भुवनेश्वर अत्यंत प्राचीन नगर है और वर्तमान में उड़ीसा की राजधानी है। भुवनेश्वर अर्थात 'देवताओं का घर'। भुवनेश्वर में अर्वाचीन तथा प्राचीन दोनों संस्कृतियों का संगम है। पुरी से भुवनेश्वर 60 किमी दूरी पर स्थित है।

FILE


भुवनेश्वर मंदिरों का नगर है। कहा जाता है कि भुवनेश्वर में हजारों मंदिर थे जिनमें से कुछ तो काल के गाल में समा गए और कुछ मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा नष्ट कर दिए गए। इसके पश्चात भी वर्तमान में 600 मंदिर यहां विद्यमान हैं।

यहां के मंदिरों में अद्भुत शिल्प सौंदर्य है। यहां का प्रसिद्ध लिंगराज मंदिर अत्यंत विशाल है, जो लगभग 5.74 एकड़ के क्षेत्र में फैला होकर चारदीवारी से घिरा हुआ है। यह दीवारें 7 फुट 6 इंच मोटी हैं। मंदिर का शिखर 180 फुट ऊंचा है।

यहां प्रवेश हेतु 4 द्वार हैं- प्रमुख द्वार को सिंहद्वार कहा जाता है। सिंहद्वार से प्रवेश करने पर पहले गणेशजी का मंदिर आता है। आगे विशाल नंदी स्तंभ है। जहां एक स्तंभ पर भगवान शिव का वाहन नंदी विराजमान है। उसके आगे मुख्य मंदिर का भोग मंडप है। इसी हरि-हर मंत्र से लिंगराज को भोग लगाया जाता है।

इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां 8 फुट व्यास का शिवलिंग है जिसे हरि तथा हर अर्थात भूतभावन शिवशंकर तथा भगवान विष्णु का संयुक्त विग्रह माना जाता है। अत: यहां दोनों स्वयंभू देवताओं की पूजा होती है। बिल्वपत्र के साथ-साथ तुलसी दल से पूजन-अर्चन होता है।

FILE


इस मंदिर को 11वीं सदी में कलिंग के सोमवंशी राजा ययाति केशरी ने बनवाया था। 1,000 वर्ष प्राचीन इस मंदिर में प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी आकर आराधना करते हैं। भगवान शंकर को त्रिभुवनेश्वर कहा जाता है अत: इस नगर का नाम भुवनेश्वर इसी के कारण पड़ा।

इस परिसर में सैकड़ों मंदिर हैं। प्रमुख मंदिर में भगवान नृसिंह, गणेशजी, कार्तिकेय एवं भुवनेश्वरी देवी विद्यमान हैं। कलिंग शैली के इस मंदिर में अनेक देवताओं, किन्नर, गंधर्व, अप्सराओं तथा पशु-पक्षियों का सुंदर चित्रण है। मंदिर में प्रवेश द्वार पर भगवान शिव का त्रिशूल है तो विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र भी है।

मुक्तेश्वर मंदिर यहां का अतिप्राचीन होकर 950 ईस्वीं के लगभग का निर्मित मंदिर है। यहां का स्थापत्य बेजोड़ है। इसका शिखर 35 फुट ऊंचा है तथा यहां का तोरणद्वार भी अत्यंत दर्शनीय है। भुवनेश्वर में परशुरामेश्वर तथा राजारानी के मंदिर प्रसिद्ध हैं।

FILE


भुवनेश्वर से 7 किलोमीटर दूरी पर स्थित है धोलागिरि शांति स्तूप जिसे सन् 1972 में जापान के बौद्ध बंधुओं ने बनाया था। ऊंची पहाड़ी पर स्थित धौलागिरि पर भगवान बुद्ध की विभिन्न प्रकार की प्रतिमाएं हैं। कहा जाता है कि यहीं पर इतिहास-प्रसिद्ध कलिंग युद्ध हुआ था। इस युद्ध में हुए भयानक नरसंहार ने सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन कर दिया था।

भुवनेश्वर से 6 ‍किलोमीटर पर आमने-सामने स्थित दो पहाड़ियां हैं जिन्हें उदयगिरि तथा खांडगिरि ने नाम से जाना जाता है। यहां जैन तथा बौद्ध गुफाएं हैं। उदयगिरि पर सम्राट खारनेल का शिलालेख भी है।

भुवनेश्वर का प्रमुख आकर्षण केंद्र है- 'नंदन कानन', जो नगर से 20 किलोमीटर की दूरी पर सन् 1960 में यहां के चंडक वन में निर्मित किया गया था। नंदन कानन देश का सबसे बड़ा जैविक उद्यान माना जाता है।



कंजिया झील के छलछलाते जल एवं हरीतिमायुक्त परिवेश के साथ यह उद्यान अप्रतिम सौन्दर्य से लबरेज है। यहां बॉटनिकल गार्डन है, प्राणी संग्रहालय है, देश का सबसे बड़ा लायन सफारी है तथा घड़ियालों का विशालतम प्रजनन केंद्र भी है।

यहां के प्राणी संग्रहालय में विश्व के सभी जाति-प्रजातियों के पशु-पक्षी हैं। शेर जैसा दिखने वाला मेकाक, पेंगोलियन, माउसडियर, गेंडा, दरियाई घोड़ा तो है ही, साथ-साथ यहां लगभग 30 सफेद बाघ भी हैं जिन्हें देखने हेतु संसारभर से दर्शक यहां आते हैं। इस दुर्लभ प्रजाति के बाघ की राजसी चहलकदमी को देखना एक अनुपम अनुभव है। यहां का रेप्टाइल पार्क भी विशेष आकर्षण का केंद्र है। संपूर्ण पार्क में भ्रमण हेतु यहां रोपवे भी है। इस पार्क को पूरी तरह से देखने के लिए कम से कम आधा दिन तो चाहिए ही। दर्शकों को इसी तैयारी से जाना चाहिए।

भुवनेश्वर उड़िया कला एवं संस्कृति का केंद्र स्थल है। यहां का 'ओडिसी नृत्य' कला का श्रेष्ठ नमूना है। कलाकार की भाव-प्रवणता, आकर्षक वेशभूषा, हावभाव एवं शरीर संचालन सचमुच अद्भुत है। कोणार्क महोत्सव पर विशाल सूर्य मंदिर परिसर में नृत्य, ताल एवं वाद्यों का अनुपम दृश्य उपस्थित हो जाता है। घुंघरुओं की झंकार से संपूर्ण परिसर गूंज उठता है। प्रकार एवं ध्वनि का यह कार्यक्रम देखने विश्वभर से दर्शक जुटते हैं।

उड़ीसा की पट्टचित्र पेंटिंग विख्यात है जिसमें देवी-देवताओं के कथाशिल्प के आधार पर कलात्मक चित्र बनाए जाते हैं। ओडिसी नृत्य कला, निष्णात पद्मभूषण केलुचरण महापात्र, संयुक्ता पाणिग्रही, गुरु पंकजचरण, कुमकुम मोहन्ती, इन्द्राणी रहमान, सोनल मानसिंग, प्रीतिमा गौरी विश्वविख्यात नाम हैं। कटक में चांदी पर आकर्षक कार्य होता है। यहां चांदी के तार से पशु-पक्षी तथा सुंदर आभूषण निर्मित होते हैं।

साभार - देवपुत्र