सुचित्रा सेन : सौंदर्य और अभिनय की आंधी
एक-दो या दस-बीस नहीं पूरे तैंतीस साल से ज्यादा हो गए हैं तब से फिल्म तारिका सुचित्रा सेन ने अपने आपको कोलकाता के बेलीगंज सरकुलर रोड के चार अपार्टमेंट्स में से एक में नजरबंद कर रखा है। सिर्फ सूरज की धूप और हवाओं के स्पर्श जानते हैं कि सुचित्रा की दिनचर्या क्या और कैसी है। इन सालों में सिर्फ दो बार सुचित्रा को सार्वजनिक रूप से घर से बाहर देखा गया। पहली दफा 24 जुलाई 1980 को जब बांग्ला फिल्मों के महानायक उत्तम कुमार का निधन हुआ। अपनी कार से उतरकर वे सीधे उत्तम कुमार के शव के नजदीक आकर मौन खड़ी हो जाती हैं। फूलों की एक माला शव पर समर्पित कर चुपचाप कार में बैठ वापस आ जाती हैं। दूसरी बार कलकत्ता में 1982 में चल रहे फिल्मोत्सव के दौरान एक फिल्म देखने आई थीं, तब दर्शकों-प्रशंसकों ने परिचित सनग्लास पहने सुचित्रा की झलक भर देखी थी। इन्हीं वजहों से सुचित्रा की तुलना हॉलीवुड की तीस-चालीस के दशक की सर्वाधिक लोकप्रिय तारिका रही ग्रेटा गार्बो से की जाती है। ग्रेटा ने फिल्मों से संन्यास लेने के बाद न्यूयॉर्क के एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग का एक पूरा माला खरीद लिया था। एक फ्लैट में वे रहती थीं। शेष में उन्होंने ताले लगवाकर बंद कर दिए थे। उनके माले पर लिफ्ट नहीं ठहरती थी क्योंकि उन्होंने अपनी मंजिल का बटन भी बंद करा दिया था। पैंतीस वर्ष तक ग्रेटा गार्बो ने ग्लैमर से दूर गुमनामी के अंधेरे की जिंदगी अकेले बिताई। 1978
में फिल्मों से संन्यास लेकर सुचित्रा भी ऐसा ही जीवन जी रही हैं। कुछ वर्ष पहले दादा साहेब फालके अवॉर्ड के लिए उनसे सम्पर्क किया गया था। सुचित्रा ने प्रस्ताव यह कहकर ठुकरा दिया था कि वे अवॉर्ड लेने घर से बाहर नहीं निकलेंगी। भारतीय सिनेमा के इतिहास में सुचित्रा सेन एक नाम न रहकर अब एक घटना बन गया है। हर एंगल से ब्यूटीफुलसुचित्रा सेन की निजी धरोहर उनका सौन्दर्य रहा है। ऐसा फोटोजनिक फेस कम देखने को मिलता है। कैमरे के किसी भी कोण से सुचित्रा को निहारा जाए तो उनकी सुंदरता बढ़ते चन्द्रमा की तरह और अधिक सुंदर होती जाएगी। इसीलिए सुचित्रा की अधिकांश फिल्मों में सिनेमाटोग्राफर्स ने उनके चेहरे के क्लोज-अप्स का ज्यादा इस्तेमाल किया है। उनका क्लोज-अप में चेहरा देखना एक सम्मोहक शक्ति के वश में हो जाने जैसा है। अपनी सुंदरता के जरिये सुचित्रा ने बंगला फिल्मों को बेहद रोमांटिक बनाया और अपने प्रिय नायक उत्तम कुमार के साथ उन्होंने बीस बरसों तक दर्शकों को रोमांस की रोशनी से लगातार नहलाया। फिल्मों में दो कलाकारों की जोड़ी बनने का सीधा मतलब होता है कि रील-लाइफ का रोमांस रियल-लाइफ में भी पंख पसारने लगता है, लेकिन इकतीस फिल्मों में उत्तम कुमार के साथ लगातार काम करने, सफलता पाने और लोकप्रियता बटोरने के बावजूद उत्तम-सुचित्रा को लेकर प्रिंट मीडिया में कभी कोई गॉसिप या स्कैंडल नहीं छपे। दोनों कलाकारों ने पत्नी या प्रेमिका के किरदारों को परदे तक ही सीमित रखा। इसके दो कारण और भी हैं। पहला यह कि सुचित्रा निजी जीवन में हमेशा से अंतरमुखी रही हैं। प्रेस से एक दूरी बनाए रखी। फिजूल की पार्टियों में जाना और हर किसी से मिलना-जुलना उन्हें नापसंद था। दूसरे, उत्तम कुमार का आत्मीय रिश्ता सुप्रिया देवी से इतना गहरा था कि दूसरी स्त्री के बारे में उत्तम कुमार ने सोचा तक नहीं। सात फिल्में हिंदी मेंहिन्दी सिनेमा के दर्शकों के लिए सुचित्रा की पहचान सिर्फ सात फिल्मों से हैं। सबसे पहले बिमल राय की फिल्म देवदास (1955) में उन्होंने पार्वती (पारो) का रोल किया और फिल्म को यादगार बनाया। बिमल राय पहले इस रोल के लिए मीना कुमारी को लेना चाहते थे। लगातार शूटिंग डेट्स न दे पाने के कारण बिमल दा की दूसरी पसंद मधुबाला थी, लेकिन नया दौर फिल्म के दौरान उपजे विवाद की वजह से दिलीप साहब और मधुबाला में अनबन चल रही थी। इसलिए सुचित्रा सेन को पारो का किरदार मिला। दिलीप कुमार ने सुचित्रा सेन की प्रशंसा करते एक बार कहा था कि उन्होंने पहली बार किसी एक महिला में अद्भुत सौन्दर्य और बुद्धि दोनों को एक साथ महसूस किया है। सुचित्रा की हिन्दी में दूसरी फिल्म ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में बनी मुसाफिर (1957) है। इसमें दिलीप कुमार से भी सीनियर हीरो शेखर, सुचित्रा के नायक बने। इसके बाद चम्पाकली (1957) फिल्म में भारत भूषण के साथ सुचित्रा ने काम किया। ये दोनों कमजोर फिल्में साबित हुईं। देव आनंद के साथ सुचित्रा की दो फिल्में हैं- बम्बई का बाबू और सरहद (1960)। लेकिन देव आनंद ने सुचित्रा के अभिनय की तारीफ फिल्म आँधी के लिए की है। दरअसल देखा जाए, तो सुचित्रा सेन की अभिनय क्षमता, बॉडी लैंग्वेज और मैनेरिज्म का सही उपयोग गुलजार साहब ने फिल्म आँधी में काम किया है। संजीव कुमार के साथ उनकी जोड़ी लाजवाब रही और हिन्दी दर्शकों के एक बड़े समूह ने पहली बार सुचित्रा के सौन्दर्य और अभिनय प्रतिभा को नजदीक से देखा, जाना और समझा। आँधी और सरहद के बीच फिल्मकार असित सेन की हिन्दी फिल्म ममता (1966) में सुचित्रा ने माँ और बेटी के दोहरे किरदार को निभाया है। अशोक कुमार के साथ धर्मेन्द्र ने प्रेमी का रोल इस फिल्म में निभाया था। आँधी और काली आँधी