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Written By Author जयदीप कर्णिक

साहस, संघर्ष और सपनों के 14 साल

23 सितंबर 2013 : वेबदुनिया का 14 वां स्थापना दिवस

Special Editorial | साहस, संघर्ष और सपनों के 14 साल
विशेष संपादकीय


आज वेबदुनिया ने अपनी स्थापना के 14 साल पूरे कर लिए। 23 सितंबर 1999 को एक सपने ने आभासी दुनिया में आंख खोली थी और आज वह यथार्थ की दुनिया में अठखेलियां कर रहा है। एक ऐसा सपना जिसे सच होते हुए देखने के लिए कितने ही लोगों ने अपने समर्पण, निष्ठा, श्रम, स्वेद और कर्म की आहुति दी है। अपने सपनों को इसी वेबदुनिया से जोड़ दिया। अड़चनें भी आईं, हर बढ़ते कदम के साथ मंजिल दूर खिसकती चली गई लेकिन सफर जारी रहा। इस सफर में लोग मिले भी बिछुड़े भी। काफिला अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा।

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14 साल किसी संस्था के लिए बहुत लंबा वक्त नहीं है, लेकिन इंटरनेट की दुनिया में इन पिछले 14 सालों में जिस तेजी से परिवर्तन हुए हैं, वेबदुनिया का 14 साल का यह सफर और यह पड़ाव ख़ास अहमियत रखता है।

23 सितंबर 1999 को अपनी औपचारिक शुरुआत से बहुत पहले ही इस सपने ने अपनी यात्रा शुरु कर दी थी। नईदुनिया के इंदौर मुख्यालय स्थित पुराने दफ्तर के पीछे छोटी सी जगह जो गोदाम की तरह इस्तेमाल होती थी, वहां से निकलकर भारतीय भाषाओं को इंटरनेट पर प्रतिष्ठित करने का यह सफर बहुत रोमांचक रहा है। एक वह समय जब डायल अप कनेक्शन के जरिए इंटरनेट से जुड़ना बेहद तकलीफ भरा था,तब यह सोच पाना कि आने वाला युग इसी का है और उस पर भारतीय भाषाओं के लिए कुछ किया जाना चाहिए, यह सपना ही अपने आप में सलाम का हकदार है।

आज जब लगभग हर दूसरे हाथ में मोबाइल है और उस पर इंटरनेट उपलब्ध है, उस समय की चुनौतियों की कल्पना कुछ कठिन है। ऐसा लगता है जैसे एक युग बीत गया हो.... । इंटरनेट पर अंग्रेजी में कुछ देखना-पढ़ना ही इतना आसान नहीं था, भारतीय भाषाओं को प्रकाशित करना तो बेहद चुनौतीपूर्ण था। वेबदुनिया ने अपने तकनीकी कौशल से वह कर दिखाया, सबकुछ अपने दम पर। यह सब जुनून और पागलपन की हद तक अपने काम से प्यार के बिना संभव नहीं था।

आज हर कोई इंटरनेट पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाना चाहता है। तब सोचा यह गया था कि इस सूचना क्रांति के मायने उन लोगों के लिए क्या हैं जो सबकुछ अपनी भाषा में ही पढ़ना चाहते हैं? इसी बीज से उत्पन्न विचार बस अपने लिए जमीन बनाता गया। अंकुरित हुआ। कोंपले फूटी। खाद-पानी की कमी भी हुई... पर मुरझाया नहीं। अभी भी यह बस एक पौधा है जिसे सघन वृक्ष बनाने के लिए पूरी टीम जुटी हुई है। अनथक। यात्रा लंबी है और मंजिल दूर लेकिन टीम बस बशीर बद्र साहब को याद कर रही है -

जबसे चला हूं मंजिल पर नज़र है मेरी
आंखों ने अभी तक मील का पत्थर नहीं देखा।

वे सभी साथी जिन्होंने वेबदुनिया के इस 14 साल के सफर में योगदान दिया है उन्हें धन्यवाद और सलाम। वे सभी स्नेही और शुभचिंतक जिनके अपनत्व की ऊर्जा से यह सफर आगे बढ़ेगा उनसे गुजारिश है मोहब्बत बनाए रखिए....।