गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By Author जयदीप कर्णिक

तेजस्वी तेस्कर के हत्यारे...

तेजस्वी तेस्कर के हत्यारे... -
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भोपाल की रहने वाली 22 वर्षीय तेजस्वी तेस्कर ने भेल की सारंगपाणी झील में कूदकर ख़ुद्कुशी कर ली। तेजस्वी एक होनहार छात्रा थी और उसने डॉक्टर बनने के सपने संजोए थे। अपने साथ इन सपनों को लेकर ही वो झील में समा गई। आखिर ऐसा क्या हुआ कि पढ़ाई में होनहार ये छात्रा इतने गंभीर फैसले तक पहुँच गई? डॉक्टर बनने का उसने महज सपना ही नहीं देखा था, उसके लिए उसने कड़ी मेहनत भी की थी। उसने दिन-रात पढ़ाई की। उसने वर्ष 2012 और 2013 में पीएमटी परीक्षा दी, लेकिन दोनों बार वह 5-6 नंबरों से फेल हो गई। इसके बाद वह गहरे अवसाद में चली गई।

जब मध्यप्रदेश का व्यापम घोटाला सामने आया तब उसे पता चला कि असल में उसके सपनों के हत्यारे कौन थे। उसे ये भी पता चला कि वो पढ़ाई में कमजोर नहीं थी। उसकी मेहनत में भी कोई कमी नहीं थी। कमी तो उस व्यवस्था में थी जो होनहारों को परीक्षा के जरिए डॉक्टर बनाकर समाज तक पहुँचाने की जिम्मेदारी लिए बैठी थी। वो तो ये जाँच ही नहीं रहे थे कि कौन कितना होशियार है। वो तो ये देख रहे थे कि कौन कितने पैसे दे सकता है। और इस पैसे के बँटवारे में ऊपर से नीचे तक सब शामिल पाए गए हैं।

तेजस्वी-तुम्हें यों चले जाने की बजाय लड़ना था, हिसाब माँगना था तुम्हारे सपनों की मौत का, उन सभी की मौत का जिन्हें इस व्यवस्था ने हताश किया, निराश किया
इस पूरे रैकेट ने तेजस्वी की बजाय उन नाकारा और निकम्मों को पीएमटी में पास करवा दिया जिनके पास अक्ल कौड़ी की भी नहीं थी पर बाप के पास कौड़ियाँ बहुत थीं। इस नपुंसक व्यवस्था ने पिछले दस सालों में पता नहीं कितनी ही तेजस्विनियों का हक छीनकर नाकाबिलों की झोली में डाल दिया। केवल पैसों की ख़ातिर। ये भी नहीं सोचा की ये नाकारा डॉक्टर जब समाज में नासूर बनकर जिएँगे तो वो इनके परिवार वालों को भी ग़लत इंजेक्शन लगाकर मार सकते हैं? ये सब होता रहा और किसी ने इसकी गंभीरता नहीं समझी? दस साल तक? पूरी व्यवस्था ख़ामोश रही? अब गिरफ्तारियाँ हो रही हैं। दस सालों में तेजस्वी जैसे तामाम वो छात्र जो होनहार होते हुए भी डॉक्टर नहीं बन पाए, क्या उनका जीवन उनके सपने कोई लौटा सकता है? क्या इस घोटाले में शामिल सभी पर तेजस्वी की हत्या का केस नहीं दर्ज होना चाहिए?

तेजस्वी-तुम्हें यों चले जाने की बजाय लड़ना था, हिसाब माँगना था तुम्हारे सपनों की मौत का, उन सभी की मौत का जिन्हें इस व्यवस्था ने हताश किया, निराश किया। अब तुम्हारी लड़ाई किसी और को लड़नी होगी।