शनिवार, 20 अप्रैल 2024
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कुल्लू के दशहरे से जुड़ी प्रचलित कहानियां

कुल्लू के दशहरे से जुड़ी प्रचलित कहानियां - Kullu Dussehra story
कुल्लू में विजयादशमी का पर्व मनाने की परंपरा राजा जगत सिंह के समय से मानी जाती है।


 

कुल्लू के दशहरे को लेकर एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक साधु की सलाह पर राजा जगत सिंह ने कुल्लू में भगवान रघुनाथजी की प्रतिमा की स्थापना की। उन्होंने अयोध्या से एक मूर्ति लाकर कुल्लू में रघुनाथजी की स्थापना करवाई थी। 
 
कहते हैं कि राजा जगत सिंह किसी रोग से पीड़ित थे अत: साधु ने उसे इस रोग से मुक्ति पाने के लिए रघुनाथजी की स्थापना की सलाह दी। उस अयोध्या से लाई गई मूर्ति के कारण राजा धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा और उसने अपना संपूर्ण जीवन एवं राज्य भगवान रघुनाथ को समर्पित कर दिया।
 
एक अन्य किंवदंती के अनुसार जब राजा जगतसिंह को पता चलता कि मणिकर्ण के एक गांव में एक ब्राह्मण के पास बहुत कीमती रत्न है, तो राजा के मन में उस रत्न को पाने की इच्छा उत्पन्न होती है और वह अपने सैनिकों को उस ब्राह्मण से वह रत्न लाने का आदेश देता है। 
 
सैनिक उस ब्राह्मण को अनेक प्रकार से सताते हैं अत: यातनाओं से मुक्ति पाने के लिए वह ब्राह्मण परिवार समेत आत्महत्या कर लेता है, परंतु मरने से पहले वह राजा को श्राप देकर जाता है और इस श्राप के फलस्वरूप कुछ दिन बाद राजा का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है। 
 
तब एक संत राजा को श्रापमुक्त होने के लिए रघुनाथजी की मूर्ति लगवाने को कहता है और रघुनाथजी की इस मूर्ति के कारण राजा धीरे-धीरे ठीक होने लगता है। राजा ने स्वयं को भगवान रघुनाथ को समर्पित कर दिया था तभी से यहां दशहरा पूरी धूमधाम से मनाया जाने लगा।