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Written By WD

बुखार रोग नहीं उपचार है, पढ़ें दिलचस्प संस्मरण

बुखार रोग नहीं उपचार है, पढ़ें दिलचस्प संस्मरण - बुखार रोग नहीं उपचार है, पढ़ें दिलचस्प संस्मरण
विजय कुमार सिंघल 

प्राकृतिक चिकित्सा का मानना है कि बुखार कोई रोग नहीं है, बल्कि शरीर में एकत्र हो गए विकारों को जलाने का प्रकृति का एक प्रयास है। इसे यों समझिए कि शरीर में एकत्र विकार एक प्रकार का ज्वलनशील पदार्थ या ईंधन है। जब वह विकार शरीर की सहनशक्ति से बाहर हो जाता है, तो शरीर उसे जलाने लगता है। इससे शरीर का तापमान बढ़ जाता है, जिसे हम बुखार कहते हैं। 


 

यदि हम प्रकृति के इस कार्य में हस्तक्षेप न करें और विकारों को जलने दें, तो सारे विकार जल जाने पर बुखार अपने आप ठीक हो जाता है और शरीर पहले से अधिक स्वस्थ हो जाता है। इस प्रकार बुखार कोई रोग नहीं, बल्कि एक प्रकार की दवा है, जो हमें स्वस्थ कर देती है। बुखार आना इस बात का सूचक है कि प्रकृति की रोग निवारक शक्तियां अभी भी हमारे शरीर में सक्रिय हैं।

दूसरे शब्दों में, बुखार रोगी में जीवनीशक्ति बची रहने का सबूत है अर्थात्‌ रोगी स्वस्थ हो सकता है। इसीलिए एक प्राकृतिक चिकित्सक कहा करते थे- 'तुम मुझे बुखार दो,मैं तुम्हें आरोग्य दूंगा।' यदि हम बुखार को जबर्दस्ती दबाएंगे, तो अगली बार वह और अधिक तेज होकर निकलेगा या किसी अन्य बड़े रोग के रूप में निकलेगा। इसके साथ ही रोगी की जीवनीशक्ति कमजोर हो जाएगी।
 
बुखार के संबंध में मैं यहां अपने ही एक अनुभव की चर्चा करना चाहता हूं। वाराणसी में एक बार मैं एक हितैषी के कहने पर एक ऐलोपैथिक डॉक्टर से अपने कानों का इलाज करा रहा था और कई प्रकार की दवाएं खा रहा था। लगभग दो माह दवा खाने के बाद मुझे कानों में तो कोई लाभ नहीं हुआ, लेकिन बुखार आ गया। बुखार ऐसा था कि छूने पर शरीर बहुत ठंडा लगता था और नापने पर तापमान 102 अंश आता था।

हमारी कॉलोनी के बाहर एक ऐलोपैथिक डॉक्टर थे। श्रीमतीजी मुझे उनके पास ले गईं। उन्होंने कुछ ऐसी दवा दी कि बुखार दो-तीन दिन में ठीक हो गया। लेकिन लगभग एक माह बाद फिर वैसा ही बुखार आ गया। एक बार फिर मुझे उन्हीं डॉक्टर महोदय के पास ले जाया गया और उनकी दवा से बुखार फिर तीन दिन में ठीक हो गया।
 
परन्तु उसके एक माह बाद फिर मुझे वैसा ही बुखार आ गया। अब मैं समझ गया कि दवाओं से यह बुखार नहीं जाएगा। इसलिए मैंने सभी प्रकार की दवाओं से तौबा कर ली और प्राकृतिक चिकित्सा अपनाने का निश्चय कर लिया। सबसे पहले तो मैंने उपवास शुरू किया अर्थात्‌ भोजन लेना बन्द कर दिया, केवल उबला हुआ पानी ठंडा करके पीने लगा। एक बार एनीमा भी लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि दूसरे दिन बुखार 101 पर आ गया। इससे मेरा विश्वास बढ़ा और उपवास जारी रहा। तीसरे दिन बुखार 100 पर, चौथे दिन 99 पर और पांचवे दिन सामान्य हो गया। छठे दिन मैं कार्यालय गया।
 
इस बीच मेरे जो मित्र और सहकारी मुझे देखने आते थे, वे यह जानकर बहुत नाराज होते थे कि मैं न तो कोई दवा ले रहा हूँ और न कुछ भी खा-पी रहा हूं। मैं अपने निश्चय पर डटा रहा और उस बुखार से सदा के लिए छुटकारा पा लिया। उसके बाद कई वर्ष तक मुझे कोई बुखार नहीं आया और मेरा स्वास्थ्य भी पहले से अच्छा हो गया। यदि मैं दवाओं पर ही निर्भर रहता, तो न जाने कितनी बीमारियां मुझे घेर लेतीं।
 
इस अनुभव के बाद प्राकृतिक चिकित्सा में मेरी आस्था दृढ़ हो गई। अपने किसी बच्चे को बुखार आ जाने पर भी मैं कोई दवा नहीं देता, बल्कि ठंडे पानी की पट्टियां आदि रखकर ही ठीक कर लेता हूं ईश्वर की कृपा है कि हमारे बच्चों का स्वास्थ्य दूसरे बच्चों से बेहतर है और वे बहुत कम बीमार पड़ते हैं। मेरे घर-परिवार और रिश्तेदारी में जो लोग मेरी सलाह पर चलते हैं, वे प्रायः स्वस्थ रहते हैं और बीमार हो जाने पर जल्दी स्वस्थ हो जाते हैं। परन्तु जो मेरी सलाह नहीं मानते, वे लगातार बीमार बने रहते हैं और दवाएं खाते रहते हैं।


 
यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि तीव्र रोग जैसे उल्टी, दस्त, जुकाम, बुखार, दर्द आदि शरीर के विकारों को निकालने का प्रकृति का प्रयास हैं। यदि हम इन प्रयासों में प्रकृति की सहायता करते हैं, तो बहुत शीघ्र रोगमुक्त हो सकते हैं और आगे हो सकने वाले बड़े रोगों से भी बचे रह सकते हैं। लेकिन यदि हम इन प्रयासों में बाधा डालते हैं, तो वे विकार निश्चय ही किसी अन्य रूप में या बड़े रोग के रूप में बाहर निकलेंगे, जिससे हमें और अधिक कष्ट उठाना पड़ेगा।
लेखक संपर्क -0522-2286542 (कार्या.), 0522-2235253 (निवास), मो. 9919997596